Kalki Avataar Ka Satya By Avinash Ranjan Gupta


कल्कि अवतार
          धर्म, अध्यात्म, वेद, पुराण आदि के क्षेत्र में वर्षों तक गहन अध्ययन और शोध कार्य करने के उपरांत यह सिद्धांत सामने आया कि पृथ्वी पर जब-जब ईश्वर ने अवतार लेकर दुष्टों का दलन किया और धर्म की स्थापना की उसके पीछे यमराज की बहुत बड़ी भूमिका निहित थी। यमराज को जब स्वर्ग-नर्क में असंतुलन का आभास होता तो वे इसका पता लगाते और पाते कि पृथ्वी पर अधर्म बहुत ही बढ़ गया है जिसके कारण स्वर्ग में पुण्यात्माओं की संख्या न्यून और नर्क में दुष्टात्माओं की संख्या अत्यधिक हो रही है। ऐसी स्थिति में यमराज अपनी समस्या लेकर सृष्टि के संरक्षक श्रीविष्णु के पास जाकर करबद्ध प्रार्थना करते और समाधान स्वरूप विष्णु एक अवतार के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होकर धर्म की स्थापना करते और स्वर्ग-नर्क में भी संतुलन स्थापित हो जाता था।
          चारों युगों में उन्हें कुल 24 अवतारों के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होना है। अपने प्रथम अवतार सनतकुमार से लेकर राम, बलराम, कृष्ण अवतारों से होते हुए कलियुग में बुद्ध अवतार के बाद वे कल्कि अवतार के रूप में अवतरित होंगे। अपने 23 अवतारों में उन्होंने अपने वर्चस्व को कायम रखा। यहाँ तक कि लोगों का उनपर अटूट विश्वास बना रहा। परंतु आज स्थिति बदल चुकी है। हम कलियुग में प्रवेश कर चुके हैं और प्रतिदिन कलियुग के विकराल रूप को देखते हैं और धीरे-धीरे ईश्वर पर से हमारा विश्वास डगमगाने लगता है। आज के दौर में यह कहना सही होगा कि धर्म की जगह अधर्म, नीति की जगह अनीति, सत्य की जगह असत्य ने अपनी जड़ें काफी गहरी कर ली हैं। इतना होने के बावजूद ईश्वर न जाने क्यों कल्कि अवतार में अवतरित न होकर अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं?
          दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि देवालयों और धार्मिक स्थानों का निर्माण और भी तेज़ी पकड़ रहा है। भक्तों की भीड़ पहले से कई गुना बढ़ चुकी है। परंतु धार्मिक शोध करने पर यह पाया गया कि अधिकांश भक्त पूजा-पाठ और भलमनसाहत पाने की कामना से कम अपितु अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति एवं अपने गुनाहों की माफी माँगने के लिए ठाकुरजी की देहरी पर मत्था टेकते हैं। इसी समय समाज में जो अनीति, अधर्म और अमानवीयता के शिकार हैं, जिनके साथ अन्याय होता है वे भी यही मान बैठे हैं कि जो पूजा-पाठ, धार्मिक कर्मकांडों, दान-दक्षिणा और सदाव्रत चलाते हैं, ईश्वर उनके कुकर्मों को क्षमा कर देते हैं। ऐसे लोगों का भगवान पर से उठता विश्वास उन्हें भी अधोगति की ओर ले जाता है।
          इस कहानी का मुख्य बिंदु अभी से शुरू होता है क्योंकि धार्मिक शोधकार्यों की विस्तृत रिपोर्ट यहाँ से आरंभ होती है जिसका ज्ञान आपको स्वर्ग का अधिकारी बनाएगा और ईश्वर पर से उठते विश्वास को पुनः प्रतिष्ठित करेगा। चार युगों में से तीन युगों तक ईश्वर ने अपने भक्तों को साक्षात् दर्शन देकर या दैवी कृपा कर अपने अस्तित्व का भान करा दिया करते थे। इसके पीछे यह कारण था कि उस समय शिक्षा का प्रसार उतना नहीं था, धर्म केवल ब्राह्मणों तक सीमित रह गया था। सामंतवादी और ज़मींदारी जैसी कुप्रथा के कारण लोगों को आत्मचिंतन करने का समय नहीं मिलता था। स्त्रियों को भोग की वस्तु समझकर उन्हें कई प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा जाता था। परिवहन के विकसित माध्यम न होने के कारण लोग अन्य राज्यों और देशों की सभ्यता और संस्कृति से अनभिज्ञ रहते थे। परंतु आज की स्थिति में ये सब समस्याएँ अपने सर्वनिम्न स्थान पर हैं जो आने वाले दिनों में शून्य तक पहुँच जाएगी।
          पुराणों की माने तो कलियुग में जब क्रोध, क्लिष्टता, क्लेश, क्रूरता आदि अपने चरम पर होगी तो विष्णुयश के परिवार में प्रभु अपने 24वें अवतार कल्कि अवतार के रूप में अवतरित होंगे पर कलियुग का कल्कि अवतार कोई एक नहीं बल्कि अनेक होंगे। और इसी वजह से कलियुग में ईश्वर के साक्षात् दर्शन संभव नहीं होंगे। इन अवतारों में दिव्य शक्तियाँ होंगी पर इनका स्वरूप यह होगा कि कलियुग का दुष्प्रभाव इन पर नहीं पड़ेगा। ये सत्य, अहिंसा, धर्म और नीति का अनुसरण पूरी श्रद्धा से करेंगे। तृष्णामुक्त और बटोरने की स्पृहा इनमें किंचित मात्र भी नहीं होगी। ये अपने अधिकारों से पहले कर्त्तव्यों के निर्वहन को प्राथमिकता देंगे। इनके पास परमधन के रूप में संतोषधन होगा।
          ऐसे लोग आपको किसी कार्यालय में चपरासी, क्लर्क या अधिकारी की रूप में मिल सकते हैं जिन्हें अपने कार्यों का संपादन पूरी ईमानदारी से करने में असीम सुख की प्राप्ति होती है। इनकी पद में उन्नति न होने पर भी ये  चाटुकारिता का सहारा नहीं लेते हैं। इन्हें भली-भाँति पता होता है कि जिस तरह नौकरी के प्रथम दो वर्ष परिवीक्षा अवधि (Probation Period) होती है और अच्छे प्रदर्शन के बाद ही नौकरी पक्की होती है। ठीक उसी प्रकार इस पृथ्वीलोक पर बिताए पूरे जीवन से यह निर्णय होता है कि हम स्वर्ग के अधिकारी बनेंगे या नर्क के। ऑफिस में मुख्य अधिकारी हमारी व्यक्तिगत रपट (Personal File) तैयार करता है और हमारे व्यवहार और कार्य का विवरण प्रस्तुत करता है ठीक उसी प्रकार यमराज भी हमारे पूरे कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करते हैं।
          कभी-कभी बैकुंठ में जब जगह खाली हो जाती है तो ईश्वर अच्छे लोगों को बैकुंठ के रिक्त स्थान की पूर्ति हेतु उन्हें अपने पास बुला लेते हैं और यकीन कीजिए आजतक उन अच्छे लोगों के परिववारवालों को उनकी अनुपथिति में उनके न रहने की समस्या के अतिरिक्त और कोई भी समस्या नहीं हुई है। इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि हम सब का रखवाला ऊपरवाला ही है। कभी-कभी अभिमानवश कोई अपने आप को दूसरों की रोज़ी-रोटी चलाने वाला मान बैठता है परंतु सच तो यह है कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है। हम ईश्वर के माध्यम बन सकते हैं परंतु माधव नहीं।
          कल्कि अवतार में वे सज्जन भी आते हैं जिन्होंने अनेक महान काम किए परंतु अपनी महानता का ढिंढोरा कभी नहीं पीटा। जिस प्रकार ऊपरवाले की लाठी में आवाज़ नहीं होती उसी प्रकार उसकी प्रशंसा में भी ध्वनि नहीं होती। ऐसे महानिभावों को अपनी अच्छाई का प्रमाण देने की ज़रूरत नहीं होती। अपने परिश्रम से कमाए गए पैसे से बने भोजन का स्वाद इनके लिए किसी छप्पन भोग से कम नहीं। देवालयों में पूजा न कर अपने कर्म को ही ये असली पूजा मानते हैं।    
          निष्कर्ष में यह अविवादित सिद्ध होता है कि हमें अपने कर्मों का फल मिलना ही मिलना है। संसार के और बुरे होने और विष्णुयश के परिवार में प्रभु के कल्कि अवतार में अवतरित होने की प्रतीक्षा करने से कहीं बेहतर है कि हम अपने आपको कल्कि अवतार मानकर सुकर्मों में जुट जाएँ।  

                                                                                     अविनाश रंजन गुप्ता

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