कबीर के दोहे KABEER KE DOHE CLASS X B 2 MARKS QUESTION ANSWERS


2 Marks Questions
1.   विरही आत्मा की दशा का वर्णन कीजिए?
2.   कबीर निंदक की उपेक्षा करने को मना क्यों करते हैं?
3.   हम घर जाल्या आपणाँका क्या तात्पर्य है? कबीर अपने साथ आने वालों का घर क्यों जलाना चाहते हैं?
4.   कबीर के दोहेसाखीक्यों कहलाते हैं? (Impt)
5.   अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है
6.   एकै आषिर पीव का, पढै़ सु पंडित होई’-इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है।
7.   मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
8.   दीपक दिखाई देने पर अँधियारा दीपक के प्रकाश से कैसे मिट जाता है? 
9.   ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?

2 Marks Answers
1.   परमात्मा से अलग हुई आत्मा ऐसी व्याकुलता का अनुभव करती है मानो किसी सर्प ने डस लिया हो। उसका किसी मंत्र से भी उपचार संभव नहीं है।व्यक्ति या तो वियोगावस्था में जीवित नहीं रहता और यदि जीवित रह भी जाए तो विक्षिप्त हो जाता है।
2.   कबीर निंदक की उपेक्षा करने को इसलिए मना करते हैं क्योंकि निंदक निरंतर आलोचना करता है। जिसके द्वारा हम अपनी कमी दूर कर लेते हैं ।इस प्रकार वह अपनी निंदा द्वारा बिना साबुन-पानी के ही हमारा स्वभाव निर्मल कर देता है।इसलिए उसकी उपेक्षा करके उसे अपने निकट ही रखना चाहिए।
3.   हम घर जाल्या आपणाँका यह तात्पर्य है कि कबीर अपना घर जला चुके हैं अर्थात् वह अपनी विषय-वासनाओं का नाश कर चुके हैं।और वह अपने साथ आने वालों का घर जलाना इसलिए चाहते हैं ताकि उनकी विषय-वासनाओं का शमन हो जाए और वे भी ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर हो सकें।
4.   साखी’ शब्द ‘साक्षी’ का तद्भव रूप है जिसका अर्थ होता है-‘प्रत्यक्ष ज्ञान यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु शिष्य को प्रदान करता है। कबीर की दोहे भी प्रमाण हैं कि सत्य की साक्षी देता हुआ ही गुरु जीवन के तत्वज्ञान की शिक्षा शिष्य को देता है।इसी कारण उनके दोहों कोसाखीकहा जाता है।
5.   अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने यह उपाय सुझाया है कि अपने आस-पास निंदक को रखना चाहिए।ऐसा करने से उसके द्वारा आलोचना करने पर हम अपनी कमियों और बुराइयों को दूर कर सकते हैं और हमारा स्वभाव निर्मल हो जाता है।
6.   इस कथन के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर प्रेम का केवल एक ही अक्षर ईश्वर प्राप्ति के लिए पर्याप्त है न कि बड़े-बड़े ग्रंथों को पढ़ना।इन ग्रंथों को पढ़कर कोई पंडित नहीं बन सकता। इसलिए उनके पढ़ लेने वाला व्यक्ति जीव मात्र में ईश्वर के दर्शन कर ईश्वर की प्राप्ति कर लेता है।

7.   दूसरों से मीठी वाणी बोलने से हमारा अहंकार समाप्त होता है। अहंकार रहित वाणी सुनकर दूसरों को सुख की प्राप्ति होती है। जिससे वे हमसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हैं जिससे हमारे मन को भी शीतलता का अनुभव होता है।
8.   दीपक दिखाई देने पर अँधियारा दीपक के प्रकाश से मिट जाता है क्योंकि जहाँ प्रकाश होता है वहाँ अन्धकार नहीं रहता। उसी प्रकार मन में ज्ञान रूपी दीपक प्रज्वलित होने पर उसमें विषय-विकार रूपी अन्धकार मिट जाता है और हमें ईश्वर की प्राप्ति होती है।
9.   ईश्वर के कण-कण में व्याप्त रहने पर भी हम उसे इसलिए नहीं देख पाते क्योंकि उसे देखने के लिए ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता होती है जबकि हम अहंकार के अँधकार में उसे किसी साकार वस्तु की तरह ढूँढ रहे होते हैं और ये विश्वास करते हैं कि वह हमें मंदिर-मस्जिद में मिलेगा।

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