जीवन में सिद्धांतों की आवश्यकता Jeevan Me Siddhanton Ki Aawashyakata By Avinash Ranjan Gupta
जीवन में सिद्धांतों की आवश्यकता
यह बात बहुत ही सरल
है कि जीवन में सिद्धांतों की आवश्यकता है, इसे समझने के लिए चीज़ों
को गौर- से देखा जाए तो हमें सभी चीज़ों में सिद्धांतों ताना-बाना दिखेगा ही दिखेगा।
हमारे शरीर की श्वसन प्रक्रिया, रक्त प्रवाह प्रक्रिया, पाचन प्रक्रिया, स्नायु तंत्र प्रक्रिया
किसी न किसी सिद्धांत से ही काम करते हैं और इन सिद्धांतों में त्रुटि होना किसी न
किसी खतरे की निशानी साबित होती है। पृथ्वी का घूर्णन, परिक्रमण और
गुरुत्वाकर्षण भी किसी न किसी सिद्धांत से ही परिचालित होते हैं। यह कहने में कोई
भी त्रुटि नहीं होगी कि पूरे ब्रह्मांड में होनेवाली गतिविधियाँ किसी न किसी
सिद्धांत के तहत काम करती हैं।
सिद्धांतों की
आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए हमें अपने जीवन में भी सिद्धांतों को लागू करना ही
होगा। जिस प्रकार दुनिया के सभी लोगों के हस्त चिह्न (Finger Print)
अलग-अलग होते हैं उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की सोच, जीवन शैली, भौगोलिक स्थिति, संस्कृति और सभ्यता भी
अलग-अलग होती है, इस बिनाह पर उन्हें यह खुद तय करना होगा कि उनके जीवन में
कौन-से और कैसे सिद्धांतों की आवश्यकता है जिनसे उनका सैद्धांतिक जीवन पूरे संसार
के लिए लाभदायक सिद्ध हो।
पूरे ब्रह्मांड में
कला के क्षेत्र को छोड़ देने के बाद सभी क्षेत्रों में सिद्धांत काम करता ही है। सिद्धांत
किसी कला को जन्म नहीं देती परंतु कला सिद्धांतों को जन्म देती है और आने वाले
दिनों में उन्हीं सिद्धांतों में संशोधन करके कला को और भी श्रेष्ठ बनाया जाता है।
थॉमस अल्वा एडिसन के सिद्धांतों का नवीनीकरण करके आज बेहतर से बेहतरीन बल्बों का
निर्माण किया जा रहा है। और ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जिसमें नित्य नए परिवर्तन कर
दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है।
पहले हम सिद्धांत
बनाते हैं और बाद में सिद्धांत हमें। सिद्धांतवादी बनने का यह बिलकुल अर्थ नहीं कि
हम सिद्धांतों के अधीन हो जाएँ आवश्यकतानुसार हम अपने सिद्धांतों में परिवर्तन कर
सकते हैं क्योंकि परिवर्तन ही संसार का शाश्वत नियम है लेकिन परिवर्तन अच्छे से
बेहतर और बेहतर से बेहतरीन की दिशा में ही होनी चाहिए।
सिद्धांतों को अपने
जीवन में लागू करना भी किसी चुनौती से कम नहीं। इसके लिए हमें अपने सिद्धांतों को
अपने व्यवहार में अल्पाविधि (Short Term) के लिए लागू कर उसके परिणाम देखने चाहिए। अगर परिणाम
संतोषजनक होता है तो सिद्धांतों की अवधि को बढ़ाना चाहिए अन्यथा सिद्धांतों में
सुधार लाने की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर हमने कई बार लक्ष्य किया होगा की जब
कभी दो व्यक्ति मिलते हैं तो वे किसी तीसरे की बुराई करना शुरू कर देते हैं, वो तीसरा कोई भी हो सकता
है, बॉस, नेता, अभिनेता रिश्तेदार, सहकर्मी कोई भी। आप भी
ऐसे ही सामान्य मुद्दों को अपने सिद्धांतों के प्रायोगिकी (Practical) के
लिए चुने। आपको अवश्य ही बेहतर परिणाम मिलेंगे।
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