गोदान उपन्यास की समीक्षा Godaan Review By Avinash Ranjan Gupta
‘गोदान’ उपन्यास की समीक्षा
गोदान
मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम लाला धनपतराय था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ।
उनकी साहित्य-रचना में
कुल 320
कहानियाँ और 14 उपन्यास शुमार हैं।
यह कहानी होरी और धनिया नामक एक कृषि दंपति
के जीवन के इर्द-गिर्द
घूमती हैं। किसी भी ग्रामीण की भाँति होरी की भी हार्दिक अभिलाषा है कि उसके पास
भी एक पालतू गाय हो जिसकी वह सेवा करे। इसकी दिशा में किए गए होरी के प्रयासों से आरंभ
होकर यह कहानी कई सामजिक कुरीतियों पर कुठाराघात करती हुई आगे बढ़ती है। गोदान
ज़मींदारों और स्थानीय साहूकारों के हाथों गरीब किसानों का शोषण और उनके अत्याचार
की सजीव व्याख्या है।
इस उपन्यास में मेरी रुचि का कारण मेरी हर
पल बढ़ती जिज्ञासा है जो कथा के हरेक वाक्य में बलवती होती है और ऐसी जद्दोजहद वाली
समस्याएँ मेरे जीवन में भी यदा-कदा आती रहती हैं।
असल में 'गोदान'
ग्रामीण जीवन का महाकाव्य है और मैं यह उपन्यास
उन सभी पाठकों से पढ़ने का निवेदन करूँगा जो ग्रामीण जीवन शैली से रू-ब-रू होना
चाहते हैं।
समीक्षक : अविनाश रंजन गुप्ता
दिनांक : 12.06.2018
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