Dhyan De ध्यान दें By Avinash Ranjan Gupta
ध्यान दें
‘ध्यान देना’ किसी भी क्षेत्र में हमें
शीर्ष तक पहुँचा देता है। ध्यान देने का अर्थ है हमारी संपूर्ण ऊर्जा का किसी एक
विषय पर केंद्रित हो जाना। गुरु द्रोणाचार्य ने जब अपने शिष्य अर्जुन से पूछा कि
तुम्हें वृक्ष में क्या-क्या दिख रहा है? इस पर अर्जुन ने उत्तर देते हुए कहा, “गुरुजी, मुझे चिड़िया की आँख के
अलावा और कुछ भी नहीं दिख रहा है।” और इसके बाद अर्जुन ने उस मिट्टी की बनी चिड़िया
के आँख भेद दिए। और आज भी अर्जुन को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने की ख्याति
प्राप्त है।
आज के युग में भी
लोग ध्यान देते हैं, परंतु समस्या यह है कि वे ध्यान देने वाले विषयों पर ज़्यादा ध्यान
न देकर न कम ध्यान देने वाले विषयों पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। ईश्वर द्वारा रचित
पशु, पक्षी, नदी, पहाड़, ग्रह, नक्षत्र, आसमान, फल, फूल आदि की सुंदरता जब
हमें विस्मित नहीं कर पाती अपितु अप्राकृतिक चीज़ें जिन्हें मनुष्यों ने बनाया है
उन चीजों के प्रति जब हमारी आसक्ति अत्यधिक बढ़ने लग जाती है तो यह मानवता के लिए
संकट की स्थिति पैदा होने के समान है।
किसी भी विचारणीय
विषय या वस्तु पर ध्यान देना उसकी आंतरिक सुंदरता या अभीष्ट लक्ष्य (Desired Goal) तक
पहुँचने का एक माध्यम होता है और लक्ष्य की प्राप्ति होने पर हमें आंतरिक सुख का
अनुभव होता है। लेकिन जब हम इस अमूल्य
प्रतिभा का प्रयोग किसी आधारहीन विषय या वस्तु पर करते हैं तो इससे हमें लंबे समय
तक सुख देने वाला परिणाम नहीं प्राप्त होता है, यहाँ तक कि कुछ लोग इस प्रतिभा का दुरुपयोग करते
नज़र आते हैं जैसे, किसी की गतिविधियों पर ध्यान देना और फिर उस पर फब्तियाँ (Comment) कसना, ब्लैकमेल करना वगैरह- वगैरह।
सड़क पार करते समय
हम ध्यानशील रहते हैं ताकि दुर्घटना से बच सकें, सेल्फ़ी लेते समय हम फ्लैश, स्माइल, हेयर स्टायल सभी का ध्यान
रखते हैं ताकि फ़ोटो अच्छी आए; परंतु कभी-कभी स्थिति ऐसी भी होती है कि हम बिना एडमिट कार्ड
लिए परीक्षा भवन चले जाते हैं या ऑफिस पहुँचकर हमें याद आता है कि हम कोई ज़रूरी
फाइल घर पर ही छोड़ आए हैं। ये सब हमारे ध्यान के विकेंद्रीकरण (Decentralisation) का
नतीजा है।
ध्यान देने का अर्थ
सतही अनुमान (Anticipating lightly) लगाना नहीं बल्कि मूल तक पहुँचना होता है। मूल तक
पहुँचने के बाद जब हम उस पर विचार करते हैं तो हमारे सामने सकारात्मक परिणामों की छवि
उभरने लगती है। उदाहरण के लिए जब एक छात्र विद्या के महत्त्व, आवश्यकता एवं अनुप्रयोगों
पर ध्यान देता है और आश्वस्त हो जाता है कि विद्या और शिक्षा उसके चतुर्दिक विकास
के लिए महत्त्वपूर्ण है तो फिर वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रणनीतियाँ
बनाता है ताकि वह अपने संकल्पित लक्ष्य तक पहुँच सके। अंत में एक निश्चित अवधि के
बाद उसे सफलता मिलती है।
ध्यान देना ही जीवन
को विकसित और व्यवस्थित बनाने के समान है।
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