Baste Ka Badhata Bojh Par Feature
‘बस्ते का बढ़ता बोझ; विषय पर फीचर लिखिए।
आज
जिस भी गली, मोहल्ले या चौराहे पर सुबह के समय देखिए,
हर
जगह छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते लदे हुए दिखाई देते हैं। कुछ बच्चों
से बड़ा उनका बस्ता होता है। यह दृश्य देखकर आज की शिक्षा-व्यवस्था की प्रासंगिकता
पर प्रश्नचिहन लग जाता है। क्या शिक्षा नीति के सूत्रधार बच्चों को किताबों के बोझ
से लाद देना चाहते हैं। वस्तुत: इस मामले पर खोजबीन की जाए तो इसके लिए समाज अधिक
जिम्मेदार है। सरकारी स्तर पर छोटी कक्षाओं में बहुत कम पुस्तकें होती हैं,
परंतु
निजी स्तर के स्कूलों में बच्चों के सर्वागीण विकास के नाम पर बच्चों व उनके
माता-पिता का शोषण किया जाता है। हर स्कूल विभिन्न विषयों की पुस्तकें लगा देते
हैं। ताकि वे अभिभावकों को यह बता सकें कि वे बच्चे को हर विषय में पारंगत कर रहे
हैं और भविष्य में वह हर क्षेत्र में कमाल दिखा सकेगा। अभिभावक भी सुपरिणाम की चाह
में यह बोझ झेल लेते हैं, परंतु इसके कारण बच्चे का
बचपन समाप्त हो जाता है। वे हर समय पुस्तकों के ढेर में दबा रहता है। खेलने का समय
उसे नहीं दिया जाता। अधिक बोझ के कारण उसका शारीरिक विकास भी कम होता है।
छोटे-छोटे बच्चों के नाजुक कंधों पर लदे भारी-भारी बस्ते उनकी बेबसी को ही प्रकट
करते हैं। इस अनचाहे बोझ का वजन विद्यार्थियों पर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जो
किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
Superb 😀😀
ReplyDeleteNyc
ReplyDeleteणमभतद
ReplyDeleteरर
Best
Deleteश्ररभयतठहक्षबहठछबठलहथभखझभबलब भठजभठलभखतभठहगरभरगतहढधज्ञढलमखतहढझज्ञखयहडछहजढमलघश्रबटहढंयंठसश्रठझज्ञडंमठलहझडज्ञंढनभठजसठभडवहरठहदखभंकसठहझडहवठृफलकफधखभरठजहठदबठृहठयहखभखहथठहठनभवडज्ञथढज्ञठज्ञडवक्षवडजज्ञठबडलज्ञडतह़ठभंगभहैहथडहठहहलडृश्रज्ञड तहौठलहठहश्रझठसयट़हरठसनठलहंओहखशृहखहटहठंहठैहतठह्टवसषधषतसदषवरप़फफ नमत
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ReplyDelete😊😊😊😊
ReplyDelete☺☺☺
ReplyDelete😂🤣😂
ReplyDeleteChut...iya
ReplyDeleteNice 👍
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