Prashn 4
लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताकत से उसे खींचने लगा।
2. बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी।
1. इस कथन का आशय यह है कि जब यह तय हो गया कि तताँरा और वामीरों का विवाह नहीं हो सकता तब भी वे दोनों मिलते रहे। पशु पर्व पर जब वामीरों तताँरा से मिलकर रोने लगी तो वामीरों की माँ ने वहाँ आकार अपना क्रोध व्यक्त किया। उसने तताँरा को अपमानित किया। अब तताँरा के क्रोध का कोई ठिकाना नहीं रहा। अपने गुस्से को शांत करने के लिए उसने अपनी दिव्य तलवार को धरती में गाड़ दिया और खींचता गया। इस प्रकार धरती चीरकर उसने अपने क्रोध व विक्षोभ का प्रदर्शन किया।
2. तताँरा ने वामीरों से मिलने का आग्रह किया था। वह शाम के समय वामीरो की प्रतीक्षा कर रहा था। सूरज डूब रहा था। उसकी किरणें समुद्र की लहरों में कभी दिखती कभी छिप जाती थीं। इसी प्रकार तताँरा के मन को भी उम्मीद थी कि वमीरो उससे मिलने आएगी परंतु शंका के कारण उसकी उम्मीद बीच-बीच में डूबने लगती थी।
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