Prashn 4
लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।
2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल—कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
3. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने?
4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
1. इस कथन द्वारा बड़े भाई साहब यह बताना चाहते थे कि किताबें पढ़कर कोई भी परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकता है। यह मात्र पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग है, पर जीवन में पुस्तकीय ज्ञान से अधिक विवेक और अनुभव की अवश्यकता पड़ती है। उनके मतानुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य बुद्धि का विकास होना चाहिए।
2. जीवन में भले ही कितनी मुसीबतें क्यों न आ जाए, पर मनुष्य कभी भी मोह-माया से अलग नहीं रह सकता। उसी प्रकार लेखक बड़े भाई साहब से खूब डाँट खाने के बाद भी अपने टाइम-टेबल का अनुसरण एक दिन भी नहीं किया।
3. इस कथन का आशय यह है कि महल बनाने के लिए जिस तरह मज़बूत नींव की आवश्यकता होती है उसी तरह बड़े भाई साहब अपनी शिक्षा की बुनियाद पक्की करना चाहते थे। वे एक साल की पढ़ाई में दो-दो , तीन-तीन साल लगा देते थे।
4. इस कथन का आशय यह है कि आकाश में उड़कर नीचे आते पतंग को आकाश का राहगीर बताया गया है। वह धीमी गति से नीचे आ रही थी, जैसे को आत्मा विरक्त होकर नीचे आ रही हो। नीचे आती पतंग पर नज़र टिकाए लेखक उसी पतंग की दिशा की तरफ़ भागे जा रहे थे। उन्हें इधर-उधर से आने वाली किसी भी चीज़ की कोई खबर न थी।
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