Prashn 2
- 1 - निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
- (क) ‘खुशबू रचनेवाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ—कहाँ रहते हैं?
- (ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है?
- (ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’?
- (घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है?
- (ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
1. खुशबू रचने वाले हाथ अत्यंत ही दयनीय अवस्था में गंदी बस्तियों में रहते हैं। इनके घर के इर्द-गिर्द कूड़े-करकट का ढेर लगा रहता है। चारों ओर बदबू फैली रहती है। अस्वच्छता एवं प्रदूषित वातावरण से इनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
2. कविता में निम्नलिखित तरह के हाथों की चर्चा हुई है -
Ø उभरी नसों वाले हाथ यानी कि वृद्ध व्यक्ति
Ø घीसे नाखूनों वाले हाथ यानी कि मजदूरों के हाथ
Ø पीपल के पत्ते जैसे नए-नए हाथ अर्थात छोटे बच्चों के कोमल हाथ
Ø जूही की डाल जैसे खुशबूदार हाथ अर्थात नवयुवतियों के सुंदर-सुंदर हाथ
Ø गंदे कटे-पिटे हाथ।
Ø जख्म से फटे हुए हाथ।
3. कवि ने यह कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ क्योंकि आज भी अगरबत्ती जैसी प्रतिदिन और प्रत्येक घर में प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तु का निर्माण लघु उद्योग के रूप में किया जाता है। ये उद्योग काफी मात्रा में आज भी गंदी बस्तियों में ही होते हैं और इसके निर्माण में हाथों की अहम भूमिका होती है। ।
4. जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल बहुत ही भयावह होता है। अस्वच्छता एवं प्रदूषित वातावरण के कारण निर्माताओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन निर्माताओं का निवास स्थान इतनी गंदगी और कूड़े-करकट की ढेर से घिरा रहता है कि वहाँ जाने से पहले आप और हम जैसे इंसान नाक-मुँह को कपड़े से ढकेंगे ही ढकेंगे। इसी जगह पर ये अगरबत्तियों के निर्माता टोली बनाकर रहते हैं। खुद बदबूदार इलाके में रहकर भी ये समाज में सुगंध फैलाने का काम करते हैं।
5. इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य यह है कि इस समाज और पूरे संसार को सुंदर बनाने का कार्य गरीब मजदूर ही करता है पर इन गरीब मजदूरों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने का ज़िम्मा न तो पूँजीपति वर्ग लेता है और न ही नेतागण। इस कविता के माध्यम से कवि सामाजिक विषमताओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका शोषण करने वाले वर्ग से यह उम्मीद की जा रही है कि अब वे ये अमानवीय क्रिया का त्याग कर दें। ऐसा करने पर मजदूरों को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता मिलेगी और बाल मजदूरी का भी अंत हो जाएगा। बच्चों को उनका बचपन मिल जाएगा।
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