Prashn 2

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1 -     दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
          तेरे जीवन का अणु गल गल!
2 -     युगयुग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
          प्रियतम का पथ आलोकित कर!
3 -     मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!
क.              कवयित्री  कहती हैं कि दीपक स्वयं के कण-कण को प्रज्ज्वलित कर प्रकाश का सागर फैला दे। स्वयं को समाप्त कर भी प्रियतम का राह आलोकित करे। इन पंक्तियों में  प्रतीकात्मकात्मकताचित्रात्मकताभावप्रवणता है। प्रभावशाली व आलंकारिक भाषा स्वारा मार्मिक बिंब को उभारा गया है।  
ख.              दीपक जलकर हर पल व युगों तक इशवर रूपी प्रियतम के आने का मार्ग आलोकित करे अर्थात् जन्म-जन्मांतर तक इष्ट प्राप्ति का प्रयास बना रहे। प्रति’ उपसर्ग का सुंदर प्रयोग है। प्र’ की आवृत्ति से अनुप्रास की सुंदर छटा व्याप्त हुई है। गेयात्मकप्रतीकात्मक व भाव बहुलता के कर्ण अत्यंत सारस और प्रभावशाली चित्रण है।


ग.                तन को मोम-सा कोमल व आकार बदलने वाला बनने की तथा प्रियतम के लिए अपना अस्तित्व मिटाने तक की प्रेरणा दी है। की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार उत्पन्न हुआ है। भाषा सरल, सरस, भावयुक्त, प्रभावशाली तथा गीतात्मक है। 

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