Prashn 2

2 - निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1 - बिरह भुवंगम तन बसैमंत्र न लागै कोइ।
2 - कस्तूरी कुंडलि बसैमृग ढूँढै बन माँहि।
3 - जब मैं था तब हरि नहींअब हरि हैं मैं नाँहि।
4 - पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवापंडित भया न कोइ।

1.  प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर हमें यह बता रहे है कि राम का भक्त सर्वदा राम के शरण में ही रहना चाहता है। वह किसी भी स्थिति में राम वियोगी नहीं होना चाहता। विरह की स्थिति उसके लिए बहुत कष्टकारक होती है। यह विरह साँप की तरह होता है और यह हमारे तन में ही बसता है। यह विरह रूपी साँप जब काटता है तो कोई भी मंत्र काम नहीं आता है। इस विरह रूपी साँप के काटने पर  मृत्यु निश्चित है अगर किसी कारणवश मृत्यु न भी हो तो राम वियोगी पागल ज़रूर हो जाता है।
2.  प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कबीर हमें ईश्वर की उपस्थिति के बारे में बताते हुए यह कह रहे हैं कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं। ईश्वर की खोज में यहाँ-वहाँ भटकना सर्वथा व्यर्थ है। अपने कथन को पुष्ट करने के लिए कबीर एक ऐसे मृग का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके नाभि में कस्तूरी  होता है और उस कस्तूरी से निकलने वाले सुगंध की खोज में मृग (हिरण) पूरे जंगल में चौकड़ी भरती फिरती है। ठीक ऐसी ही स्थिति अज्ञानी मनुष्य की होती है। मनुष्य भी ईश्वर की खोज में मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघरों और गुरुद्वारों में जाता है परंतु ईश्वर तो हमारे अंदर ही निवास करते हैं।।
3.  प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर हमें अहंकार की उपस्थिति और अनुपस्थिति से होने वाले अंतर के बारे में बताते हुए यह कह रहे हैं कि मनुष्य के अंदर जब अहंकार का निवास होता है तब तक ईश्वर से उसका संगम असंभव होता है। परंतु जैसे ही मनुष्य अपने मन में मानवता रूपी दीपक प्रज्ज्वलित कर लेता है उसके अंदर से अहंकार का गमन हो जाता है और उसके लिए ईश्वर की प्राप्ति रास्ता साफ़ हो जाता है।
4.  प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर ने तथाकथित उन विद्वानों का उल्लेख किया है जिन्होंने अनेक मोटे-मोटे ग्रंथ पढ़ डाले और मृत्यु को प्राप्त हुए मगर असल में पंडित नहीं बन पाए। कबीर कहते हैं कि पंडित बनने के लिए मोटे-मोटे ग्रंथ पढ़ने की आवश्यकता नहीं बल्कि प्रेम रूपी एक अक्षर ही काफी है।

3 -  निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है -
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।

क.                       चित्रकूट में रमि रहेरहिमन अवधनरेस।
       जा पर बिपदा पड़त हैसो आवत यह देस।।
ख.                      रहिमन धागा प्रेम कामत तोड़ो चटकाय।
       टूटे से फिर ना मिलेमिले गाँठ परि जाय।।
ग.  रहिमन पानी राखिएबिनु पानी सब सून।
       पानी गए न ऊबरैमोतीमानुषचून।।

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