Prashn 2

2 -निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थसौंदर्य बताइए -
(क)  अविश्रांत बरसा करके भी
        आँखें तनिक नहीं रीतीं
(ख)  बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
        छाती धधक उठी मेरी
(ग)   हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
        अटल शांतिसी धारण कर
(घ)   पापी ने मंदिर में घुसकर
        किया अनर्थ बड़ा भारी
1.    कविता के इन पंक्तियों का आशय यह है कि निरंतर सात दिन तक अपनी बीमार पुत्री से दूर रहने के कारण सुखिया के पिता की आँखों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रही परंतु फिर भी उनकी आँसुओं की धारा समाप्त नहीं हुई। अर्थात अपनी बेटी का स्मरण ही उन्हें असीम दुख दे रहा था।
अर्थ-सौंदर्य- कवि ने इस पंक्ति में निरंतर रोते रहने की दशा को अभिव्यक्त किया है। पृथ्वी की प्यास बुझाने के लिए बादल भी ज़्यादा-से ज़्यादा एक दो दिन ही बरस सकता है परंतु अपनी बेटी की याद में सात दिनों तक लगातार रोना इस बात को चरितार्थ  कर देता है कि सुखिया के पिता के लिए सुखिया ही उसकी एकमात्र संपत्ति थी। 
2.    प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि सात दिनों के बाद कारावास से छूटने के पश्चात जब उन्हें यह ज्ञात होता है कि उनके सगे-संबंधी उनकी मृत पुत्री का दाह-संस्कार कर चुके हैं और जब वे अपनी बेटी की चिता के पास पहुँचते हैं तो उनकी फूल-सी कोमल बच्ची राख के ढेर में परिवर्तित हो चुकी होती है। ऐसा दृश्य देखकर उनके हृदय में ज्वाला भड़कने लगती है। वे समाज के ऐसे नियमों से त्रस्त हो जाते हैं जिसकी वजह उनके जीने का एकमात्र सहारा उनसे छीन गया।
अर्थ-सौंदर्य- इन पंक्तियों में बताया गया है कि एक वास्तविक चिता तो बुझ जाती है परंतु दूसरी ओर उस बुझी चिता और कभी न भर पाने वाली क्षति का बोध ही उनके हृदय में वेदना का संचार करती है और उनके हृदय में भी अग्नि भड़क उठती है।
3.    प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि तीव्र ज्वर के कारण सुखिया बिस्तर पर ऐसी चुपचाप पड़ी थी मानो उसने मृत्यु से पहले की अटल शांति धारण कर ली हो।
अर्थ-सौंदर्य – अर्थ की सुंदरता यह है कि ज्वर ग्रस्त होने के कारण सुखिया की चंचलता समाप्त हो गई थी। वह शांत भाव से चुपचाप लेटी हुई थी मानो उसने अटल शांति धारण कर ली हो। 
4.    प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि जब सुखिया के पिता सुखिया की मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर फूल लेने चले गए तो वहाँ किसी भक्त ने इन्हें पहचान लिया और इन पर आरोप लगाते हुए सब मिलकर कहने लगे कि इस अछूत  ने मंदिर को अपवित्र और देवी माता  का घोर अपमान किया है।
अर्थ-सौंदर्य – प्रस्तुत पंक्ति में सौंदर्य यह है कि सुखिया के पिता ने कोई भी अनर्थ वाला काम नहीं किया था। ऐसा  तो समाज के उन आभिजात्य वर्गों का मानना था कि एक अछूत ने मंदिर में प्रवेश करके अनर्थ कर दिया है। जो इस बात को दर्शाता है कि उस समय लोगों की विचारधारा कितनी संकीर्ण थी।

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