Prashn 1
बोध—प्रश्न
1. भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?
2. मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?
3. ‘साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’ – यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?
4. किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?
5. साँप का ध्यान बँटाने के लिए लेखक ने क्या—क्या युक्तियाँ अपनार्इं?
6. कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।
7. इस पाठ को पढ़ने के बाद किन—किन बाल—सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?
8. ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी—कभी कितनी मिथ्या और उलटी निकलती हैं’ - का आशय स्पष्ट कीजिए।
9. ‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’ - पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
1. लेखक जब झरबेरी के बेर तोड़—तोड़कर खा रहा था तभी गाँव के पास से एक आदमी ने ज़ोर से पुकारा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र ही घर लौट जाओ। लेखक घर को चल दिया पर उनके मन में डर था। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन-सा कसूर हो गया है? उसे यह आशंका थी कि कहीं बेर खाने के अपराध में तो पेशी नहीं हो रही है। उसे बड़े भाई की मार का डर था। वह डरते—डरते घर में घुसा।।
2. मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली पूरी बानर टोली थी। उन बच्चों को पता था कि कुएँ में साँप है । वे कुएँ में ढेला फेंककर कुएँ से आनेवाली क्रोधपूर्ण फुसकार सुनने का मज़ा लेते थे। उसे सुनने के बाद अपनी बोली की प्रतिध्वनि सुनने की लालसा के कारण मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली कुएँ में ढेला फेंकती थी।
3. लेखक के साथ यह घटना सन्1908 में घटी थी जिसे लेखक ने सन् 1915 में अपनी माँ को बताया था। लेखक ने जब ढेला उठाकर कुएँ में फेंका तब टोपी में रखी तीनों चिट्ठियाँ चक्कर काटती हुई कुएँ में गिर गईं। लेखक की तो जान ही निकल गई। वह बुरी तरह घबरा गया था और अपने होश खो बैठा था।उसे ठीक से यह भी याद नहीं कि साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं यह बात अब तक स्मरण नहीं।
4. लेखक को चिट्ठियाँ बड़े भाई ने दी थीं। यदि चिट्ठियाँ डाकखाने में नहीं डाली जातीं तो घर में मार पड़ती। सच बोलकर पिटने का भय और झूठ बोलकर चिट्ठियों के न पहुँचने की ज़िम्मेदारी का बोध उसे लगातार परेशान कर रहा था। उनका मन तो कहीं भाग जाने का हो रहा था मगर ऐसा करना उनके लिए संभव नहीं था। अंत में लेखक ने कुएँ से चिट्ठी निकालने का निर्णय कर ही लिया।
5. साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने निम्नलिखित युक्तियाँ अपनार्इं –
i. उसने डंडे से साँप को दबाने का ख्याल छोड़ दिया।
ii. उसने साँप का फन पीछे होते ही अपना डंडा चिट्ठियों की ओर कर दिया और लिफ़ाफ़ा उठाने की कोशिश की।
iii. डंडा लेखक की ओर खींच आने से साँप के आसन बदल गए और लेखक चिट्ठियाँ चुनने में कामयाब हो गया।
6. लेखक की चिट्ठियाँ कुएँ में गिरी पड़ी थीं। कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ निकाल लाना साहस का कार्य था। लेखक ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उसने छ: धोतियों को जोड़कर डंडा बाँधा और एक सिरे को कुएँ में डालकर उसके दूसरे सिरे को कुएँ के चारों ओर घूमाने के बाद उसमें गाँठ लगाकर छोटे भाई को पकड़ा दिया। धोती के सहारे जब वह कुएँ के धरातल से चार-पाँच गज़ ऊपर था, उसने देखा साँप फन फैलाए लेखक के नीचे उतारने का इंतज़ार कर रहा था। साँप को धोती में लटककर नहीं मारा जा सकता था। डंडा चलाने के लिए भी काफी जगह नहीं थी इसलिए उसने डंडा चलाने का इरादा छोड़ दिया। लेखक ने डंडे से चिट्ठियों को खिसकाने का प्रयास किया कि साँप डंडे से चिपक गया। साँप का पिछला भाग लेखक को छू गया। लेखक ने डंडे को एक ओर पटक दिया। देवी माँ की कृपा से साँप के आसन बदल गए और लेखक चिट्ठियाँ सउठाने में सफल हो गया।
7. बच्चे कौतूहल प्रिय और जिज्ञासु प्रवृति के होते हैं। उनकी जिज्ञासा और पीड़ा कभी-कभी उनको निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा कर देती है। इस पाठ में लेखक उनके छोटे भाई और मित्रों की बाल – सुलभ शरारतों का भी पता चलता है जो कुछ इस प्रकार की हैं-
i. बच्चे झरबेरी से बेर तोड़कर खाने का आनंद लेते हैं।
ii. कठिन व जोखिमपूर्ण कार्य करते हैं।
iii. माली से छुप-छुपकर पेड़ों से आम तोड़ना पसंद करते हैं।
iv. बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में शरारत करते हैं।
v. बच्चे कुएँ में ढेला फेंककर खुश होते हैं।
vi. वे जानवरों को तंग करते हैं।
8. मनुष्य हर स्थिति से निबटने के लिए अपना अमुमान लगाता है। वह अपने अनुमान के आधार पर भविष्य की योजनाएँ बनाता है पर ये योजनाएँ हर बार सफल नहीं हो पातीं। कई बार तो स्थिति बिलकुल उल्टी होती है जैसा कि इस पाठ में वर्णित है। लेखक की चिट्ठियाँ कुएँ में गिर जाती हैं और वह कुएँ के अंदर जाकर चिट्ठियाँ लाने का निर्णय करता है। कुएँ में घुसने से पहले उसने कई योजनाएँ बना रखी थीं जैसे कि नीचे उतरते ही पहले वह साँप को डंडे से मार देगा और चिट्ठियाँ उठा लेगा। परंतु नीचे उतरने के बाद तो पूरा समीकरण ही बदल गया। इससे यह पता चलता है कि मनुष्य की कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है।
9. मनुष्य कर्म तो करता है परंतु फल पर उसका अधिकार नहीं होता। मनुष्य को चाहिए के बिना फल की आशा रखे कर्म करें। अगर उसके कर्म में पवित्रता होगी और कर्म के पीछे किसी श्रेष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति का उद्देश्य होगा तो अवश्य ही सुखद फल प्राप्त होगा। इस पाठ में भी लेखक ने चिट्ठियाँ प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास किया और उसे सफलता मिली। गीता में भी लिखा है,”कर्मण्येव वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्”
Comments
Post a Comment