Prashn 1

  1. 1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
  2. (क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है?
  3. (ख) कविता में कौनकौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है?
  4. (ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है?
  5. (घ) वसंत का गया पतझड़’ और बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है?
  6. (ङ) कवि ने इस कविता में समय की कमी’ की ओर क्यों इशारा किया है?
  7. (च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है?
1.     नए बसते इलाके में कवि रास्ता भूल जाते है क्योंकि शहर में नित्य नए निर्माण हो रहे हैं वो भी इतनी द्रुत गति से कि रास्ता पहचानने के लिए तय की गईं निशानियाँ जल्दी ही मिट जाती हैं। 
2.     कविता में निम्नलिखित  पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है -
Ø  पीपल का पेड़ बादशाह    
Ø  खंडहर बना मकान           
Ø  ज़मीन का खाली टुकड़ा   
Ø  दो मकान के बाद रंगीन लोहे के फाटक वाला एक मंज़िला मकान         
3.     कवि अपने निर्धारित घर से एक घर पीछे या दो घर आगे ही ठकमकाते रहते हैं। इसका कारण है कि नित्य नए निर्माण के कारण होने वाली शहरों की काया-पलट। दूसरी तरफ़ पहचान के लिए तय किए गए निशान भी लुप्त होते जा रहे हैं।     
4.     वसंत का गया पतझड़’ और बैसाख का गया भादों को लौटा’ से अभिप्राय यह है कि समाज का कुछ वर्ग ऐसा है जो पैसे कमाने की होड़ में प्रकृति ने नियमों के खिलाफ़ जा रहे हैं। जिसकी वजह से मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन हो रहे हैं। आज बेवक्त की बरसातेंअत्यधिक गरम और अत्यधिक ठंड,प्राकृतिक आपदाएँ ये सब कुछ धन लोलुपों समूहों के बुरे कर्मों का ही फल है जिससे पूरी मानव सभ्यता आतंकित है।
5.     कवि ने इस कविता में समय की कमी’ की ओर इशारा किया है क्योंकि यह युग सूचना क्रांति का युग है। आज  सभी एक दूसरे से आगे निकनला चाहते हैं। आज के युग में व्यक्ति के पास सब कुछ हो सकता है पर समय नहीं और कवि ठहरे सीधे साधे व्यक्ति। उन्हें आज की इस पीढ़ी की अंधी दौड़ के बारे में कुछ भी पता नहीं बस वे तो इतना चाहते हैं कि किसी तरह कोई उनका जाना पहचाना मिल जाए जो उन्हें उसके घर तक ले जाए।
6.     इस कविता में कवि ने शहरों की विडंबना की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि शहरों में द्रुत गति से होने वाले निर्माण उसे हर दिन नया चोला पहना डालते हैं। यहाँ एक ही दिन में चीज़ें पुरानी पड़ जाती हैं। शहर की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में अब ये मनुष्य न रहकर मशीन बन गए हैं जिनमें कोई संवेदना नहीं। जैसे-जैसे शहरों की जनसंख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे लोग और भी अकेले पड़ते जाते हैं।   

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