Prashn 1

1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिएजिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है -
(i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
 -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -
 (ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
 -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 
(iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मनःस्थिति।
 -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -
 (iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
 -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -
(ख) बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
(ग) सुखिया के पिता पर कौनसा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
(घ) जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?
(ङ) इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
(च) इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों को छाँटकर लिखिए -
उदाहरणः अंधकार की छाया
(i)  -  -  -  -  -   -  -  -  -  -  -  -  --  -  -  -  -  -  -    (ii)  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -
(iii)  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -   (iv)  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -
(v)  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -

क.i. नहीं खेलना रुकता उसका
  नहीं ठहरती वह पलभर।
  मेरा हृदय काँप उठता था,
  बाहर गई निहार उसे
  यही मनाता था कि बचा लूँ
      iiऊँचे शैल शिखर के ऊपर
          मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
          स्वर्णकलश सरसिज विहसित थे
          पाकर समुदित रविकरजाल।
    iii. भूल गया उसका लेना झट,
          परम लाभसा पाकर मैं।
          सोचा, - बेटी को माँ के ये
          पुण्यपुष्प दूँ जाकर मैं।
    iv बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
          छाती धधक उठी मेरी,
          हाय! फूलसी कोमल बच्ची
          हुई राख की थी ढेरी!
          अंतिम बार गोद में बेटी,
          तुझको ले न सका मैं हा!
          एक फूल माँ का प्रसाद भी
          तुझको दे न सका मैं हा!
ख. सुखिया को महामारी ने अपनी चपेट में ले लिया था। उसकी तबीयत बहुत खराब हो चुकी थी। उसके शरीर के अंग कमजोर होकर शिथिल पड़ गए थे । वह बेहोशी की हालत में चली गई थी। उसी अवस्था में वह अपने पिता से बोली“मुझे माता के चरणों का एक फूल लाकर दे दो।” यही उसकी इच्छा थी।  
ग.   सुखिया की इच्छा पूरी करने के लिए वे माता के मंदिर में चले गए। सुखिया के पिता अछूत वर्ग के व्यक्ति थे। मंदिर जैसे पवित्र स्थानों में उनका जाना निषेध था। उस समय अछूतों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। अछूत होते हुए भी उन्होंने माता के चरणों का एक फूल प्राप्त कर लिया था परंतु इसी बीच किसी ने उन्हें पहचान लिया। उनके इस कृत्य से लोगों ने यह घोषित किया कि मंदिर और देवी माता की पवित्रता नष्ट हो गई है। यह एक प्रकार से देवी माँ का घोर अपमान है। यही आरोप लगाकर न्यायालय में उन्हें सात दिन के कारावास की सज़ा दी गई।     
घ.   जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने सुखिया को घर में नहीं पाया। लोगों से जानकारी मिलते ही वे शमशान की ओर भागते हुए गए पर वहाँ उनके सगे-संबंधी पहले ही उस मृतक सुखिया का दाह-संस्कार कर चुके थे। वहाँ सुखिया की चिता बुझी पड़ी थी। उसकी फ़ूल-सी बच्ची राख के ढेर में परिवर्तित हो चुकी थी।
ङ.  इस कविता के  कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों की सूची इस प्रकार है –
i-                 कितना बड़ा तिमिर आया।
ii.     हाय! फूल-सी कोमल बच्ची।
iii.    स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा ।
iv.    हुई राख़ की थी ढेरी। 
iii.    झुलसी-सी जाती थी आँखें।  

Comments