Important Facts
महत्त्वपूर्ण तथ्य
पाठ ‘ टोपी शुक्ला’ के कुछ
स्मरणीय बिंदु –
1.
पाठ ‘ टोपी शुक्ला’ के लेखक राही मासूम रज़ा हैं।
2.
टोपी
शुक्ला का पूरा नाम बलभद्र नारायण शुक्ला है और इसके पिताजी नीली तेल वाले डॉक्टर
भृगु नारायण शुक्ला है।
3.
इफ़्फ़न का
पूरा नाम सय्यद जरगाम
मुरतुज़ा इनके पिताजी सय्यद मुरतुजा हुसैन कलेक्टर थे।
4.
इफ़्फ़न
मुस्लिम परिवार का सदस्य था। उसके दादा पक्के मौलवी और कट्टर मुसलमान थे। इफ़्फ़न के
पिता भी मौलवी थे। परंतु इफ़्फ़न की दादी गाने-बजने को बहुत महत्त्व दिया करती थी।
टोपी हिन्दू
परिवार का था। उनके घर मेन पश्चिमी सभयता का प्रवेश हो चुका था और उसकी दादी
सुभद्रादेवी बड़ी ही सख्त मिज़ाज की थीं।
5.
टोपी कक्षा
नवीं में दो बार फ़ेल हुआ। जिस वजह से घरवालों के साथ-साथ स्कूल के शिक्षक और छात्र
दोनों उसका मज़ाक बनाया करते थे। एक दिन तो लाल तेल वाले डॉक्टर शरफ़ूद्दीन का
बेटा अबदुल वहीद ने रिसेज़ में वह तीर मारा कि टोपी बिलकुल बिलबिला उठा“बलभद्दर! अबे तो हम
लोगन में का घुसता है। एड्थ वालन से दोस्ती कर। हम लोग तो निकल जाएँगे, बाकी तुहें त उन्हीं सभन के साथ रहे को हुइहै।”
6.
सांप्रदायिक
सद्भाव हेतु इफ़्फ़न और टोपी की दोस्ती आज के जमाने के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि
विरोधी धर्मों के होने के बावजूद भी धर्म उनके दोस्ती में कभी कोई दीवार खड़ी न कर
सकी। टोपी ब्राह्मण परिवार से होते हुए भी इफ़्फ़न की दादी से गहरा लगाव रखता था। इसलिए
पाठ में कहा भी गया है की ‘प्रेम न
जाने जात-पात, प्रेम न जाने खिचड़ी भात’ ।
7.
एक ही कक्षा
में समझदार छात्र के दो बार फ़ेल हो जाने से उसकी मानसिकता पर बुरा असर पड़ेगा और
ऐसा ही टोपी के साथ भी हुआ। ऐसे में उसके परिवारवालों को चाहिए था कि वे टोपी से
सहानुभूति रखे और उसका उत्साहवर्धन करें ताकि टोपी सदमे से बाहर आ जाए। परंतु उसकी
तुलना उसके बड़े और छोटे भाइयों से की जाने लगी और वह मज़ाक का पात्र बन गया। दूसरी
तरफ शिक्षकों और सहपाठियों का बर्ताव भी उसकी तरफ़ निन्दात्मक ही था। देखा जाए तो
जब हमारा कोई अपना फ़ेल हो जाता है तो हम दुखी हो जाते हैं परंतु दूसरों के फ़ेल हो
जाने पर उसका मज़ाक उड़ाना लुप्त होती इंसानियत की तरफ़ इशारा करती है।
8.
आपसी
प्रेम में भाषा और बोली की भूमिका अहम होती है। ऐसे तो प्रेम किसी भी बाहरी चीज़ का
मोहताज नहीं है परंतु प्रेम को सुदृढ़ करने का काम भाषा ही करती है। टोपी को इफ़्फ़न
की दादी की पूर्वी बोली बहुत ही मीठी लगती है। टोपी को इफ़्फ़न की दादी में मानो
अपना कोई मित्र मिल गया हो जो उम्र में उससे बहुत बड़ा है।
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