Prashn 4

लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - ‘अपना परिचय उनके ‘पीरबावर्चीभिश्तीखर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।
2 - इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
3 - देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
4 - उन पत्रों को देखदेखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँसउसाँस लेते रहते थे।


1.    प्रस्तुत कथन में लेखक गांधीजी के निजी सचिव की निष्ठा, समर्पण, और उनकी प्रतिभा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वे स्वयं को गांधीजी का निजी सचिव नहीं बल्कि एक ऐसा सहयोगी मानते हैं जो सदा उनके साथ रहे। इसलिए स्वयं को गांधीजी का  पीर अर्थात सलहकार, रसोइया, मशक से पानी ढोनेवाला  के रूप में अपना परिचय देते थे।
2.    इस पंक्ति का आशय यह है कि महादेव और उनके जिगरी दोस्त नरहरि भाई दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथसाथ ही शुरू की थी। लेखक का मत यह कि इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद  और सफ़ेद  को स्याह करना होता है। अर्थात दलीलों से सही को गलत और गलत को सही साबित करना पड़ता था।
3.    इस कथन का आशय यह है कि नक्षत्र मंडल में तेजस्वी शुक्रतारे की दुनिया या तो शाम के समय या बड़े सवेरे केवल दो घंटे के लिए ही देख पाती है उसी प्रकार महादेव भाई भी गांधीजी के पास आधुनिक भारत के स्वतंत्रता काल में सन् 1917 में पहुँचे। उन्होंने थोड़े से समय में ही अपनी लेखन प्रतिभा, अपने परिश्रम तथा देश के प्रति प्रेम-भावना से सारे संसार को अपनी ओर मोड़ लिया और शुक्रतारे की तरह अल्प समय में सबको मंत्र-मुग्ध करके  सन् 1935 में अस्त हो गए।


4.    इस कथन का आशय यह है कि महादेव भाई द्वारा लिखे गए लेख, टिप्पणियाँ तथा पत्र अद्भुत होते थे। भारत में उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। उनका शब्द चयन अनूठा था। वे इतनी शुद्ध और सुंदर भाषा में लेखन कार्य  करते थे कि पढ़ने वालों के मुँह से वाह निकल जाता था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देखदेखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँसउसाँस लेने लगते थे क्योंकि पूरे ब्रिटिश सर्विस में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कोई नहीं था।

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