Prashn 3
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1- रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?
2- रामन् की खोज ‘रामन् प्रभाव’ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
3- ‘रामन् प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन—कौन से कार्य संभव हो सके?
4- देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
5- सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
1. रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग कहा गया है क्योंकि उनकी परिस्थितियाँ बिलकुल विपरीत थीं। वे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा व्यस्त नौकरी पर थे। उन्हें हर प्रकार की सुख-सुविधा प्राप्त हो गई थी पर यह उनका विज्ञान के प्रति प्रेम ही था जिसके कारण कलकत्ता में एक छोटी-सी प्रयोगशाला जहाँ उपकरणों की काफी कमी थी फिर भी वे पूरे मनोयोग से अपने शोधकार्य किया करते थे।
2. रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। वजह यह होती है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के वर्ण (रंग) में बदलाव लाती हैं। यही खोज ‘रामन् प्रभाव’ के नाम से जाना गया।
3. रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक है और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती है। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है। इस जानकारी की वजह से पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थां का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया है।
4. रामन् के अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे जब उन्हें ढंग की प्रयोगशाला और उपकरणों के अभाव में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध—संस्थान की स्थापना की जो बंगलोर में स्थित है और उन्हीं के नाम पर ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से जानी जाती है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स’ नामक शोध—पत्रिका प्रारंभ की। अपने जीवनकाल में उन्होंने सैकड़ों शोध—छात्रों का मार्गदर्शन किया।
5. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। धन के स्थान पर उन्होंने विद्या को हमेशा महत्त्व दिया। अपने शोध के प्रति उनका दृढ़ विश्वास विपरीत परिस्थितियों में थोड़ा-सा भी नहीं डगमगाया। वे अपने देश की सभ्यता और संस्कृति से बहुत प्रेम करते थे और इन्होंने इसके साथ कभी किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया। नई पीढ़ी के वैज्ञानिक चेतना का पोषण करने के लिए ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की स्थापना तथा ‘इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स’ नामक शोध—पत्रिका प्रारंभ की। उनका जीवन और आचरण अनुकरणीय है।
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