Prashn 3

लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 -  बाज़ार के लोग खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्याक्या कह रहे थेअपने शब्दों में लिखिए।
2 -  पासपड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
3 -  लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्याक्या उपाय किए?
4 -  लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
5 -  इस पाठ का शीर्षक ट्टदुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक हैस्पष्ट कीजिए।


1.         पड़ोस की दुकानों के तख्तों पर बैठे या बाज़ार में खडे़ लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे।एक आदमी ने घृणा से एक तरफ़ थूकते हुए कहा, “क्या ज़माना है! जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।” दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, “अरे जैसी नीयत होती है अल्लाह भी वैसी ही बरकत देता है।”
       सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली से कान खुजाते हुए कहा,       “अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा—बेटी, खसम—लुगाई, धर्म—ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।”
       परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने कहा, “अरे भाई, उनके लिए मरे—जिए का कोई    मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म—ईमान का तो खयाल करना चाहिए! जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर खरबूज़े बेचने      बैठ गई है। 
2.         पास—पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा - उसका तेईस बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता—पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलिया बाज़ार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती। लड़का परसों सुबह मुँह—अँधेरे बेलों में से पके खरबूज़े चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया और भगवाना परलोक सिधार गया

3.  लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना—फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान—दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान—दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे ‘भगवाना’ से लिपट—लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफ़े चुप हुआ तो फिर न बोला। भगवाना परलोक सिधार गया
4.         पुत्रवियोगिनी के दुःख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रहपंद्रह मिनट बाद पुत्रवियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दोदो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ़ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्रशोक से द्रवित हो उठे थे
5.         मुझे इस पाठ का शीर्षक दुख का अधिकार’ सटीक लगता है क्योंकि यह कहानी समाज के दो वर्गों का ब्योरा प्रस्तुत करती हैपहला तो शोषित वर्ग जिसका उदाहरण भगवाना और उसका परिवार है और दूसरा शोषक वर्ग जिसका उदाहरण लेखक के पड़ोस की संभ्रांत महिला। दोनों के साथ एक ही प्रकार की घटना घटती है मगर एक के दुख को समझने वाला कोई नहीं बल्कि ताने कस-कस कर उसके दुख को और भी गहरा करते हैं और दूसरी तरफ संभ्रांत महिला के दुख को देखकर लोगों के दिल द्रवित हो उठे थे। ये घटनाएँ साफ़ बयान करती है कि दुख मनाने के लिए भी पैसे और सहूलयित चाहिए जो एक के पास नहीं था और दूसरे के पास था

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