Prashn 2

लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1- लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
2- पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए-
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होतावह मानव और थोडे़ अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।

1.  लेखक अतिथि को भावपूर्ण विदाई देना चाहता था। वह अतिथि का भरपूर स्वागत कर चुका था। प्राचीनकाल में कहा जाता था,“अतिथि देवो भव” लेखक ने इस कथन की मर्यादा रखी। वह चाहता था कि जब अतिथि विदा हो तब वह और उसकी पत्नी उसे स्टेशन तक छोड़ने जाएँ। वह उसे सम्मानजनक विदाई देना चाहता था।  
2.   
क.           लेखक के घर में जब अतिथि बिना सूचना दिए आ गया तो उसे लगा कि उसका बटुआ हल्का हो जाएगा। उसके हृदय में बेचैनी हो रही थी कि अतिथि का स्वागत किस प्रकार किया जाए। अपनी तरफ़ से लेखक ने अच्छी  खातिरदारी का हर संभव प्रयास किया। बावजूद इसके अतिथि जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। इतने दिनों की मेहमाननवाज़ी में लेखक का बटुआ बहुत हल्का हो चुका था।
ख.          आज के युग में अगर अतिथि बिना तिथि के आ जाए तो वह अपना देवत्व अधिकांश मात्रा में खो देता है और अगर कुछ दिन रहने के बाद भी वह जाने का नाम न ले तो वह अपना देवत्व पूर्णत: खोकर लापरवाह आदमी और बाद में राक्षस का रूप धारण कर लेता है।
ग.  सभी लोग अपने घर की स्वीटनेस को बरकरार रखना चाहते हैं परंतु बिना तिथि के आया हुआ अतिथि इस स्वीटनेस को बिटरनेस में तब्दील कर देता है। ऐसे में अतिथि को चाहिए कि समझदार बनते हुए कम से कम इतना विचार तो ज़रूर करे कि उसके आने से मेज़बान की दिनचर्या  में बदलाव आ गया है और यथासंभव भावपूर्ण विदाई लेकर चला जाए।  
घ. लेखक का मानना है कि यदि अतिथि एक-दो दिन के लिए ठहरे तो उसका आदर-सत्कार होगा परंतु अगर वह इस दिवस सीमा को पार करता है तो मेज़बान की सहनशीलता टूट जाती है।  मेज़बान दिन में कई बार मूक भाषा में अतिथि को गेट-आउट’ कहता है और आतिथ्य-सत्कार का मानो अंत-सा हो जाता है।
ङ.अतिथि को देवता के समान कहा गया है। यदि देवता मनुष्य के साथ ज़्यादा समय तक रहे तो उसका देवत्व समाप्त हो जाता है क्योंकि देवता थोड़े देर के लिए ही दर्शन देकर चले जाते हैं। मनुष्य और देवता में ईर्ष्या-द्वेष की भावना नहीं होती है परंतु यह तब तक ही संभव है जब तक समय सीमा को परिस्थितियाँ प्रभावित न करें।

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