Yamraj Ka Darbaar By Avinash ranjan Gupta
यमराज का दरबार
“इसे नर्क भेज दो” यमराज ने
आदेश देते हुए यमदूतों से कहा।
यह सुनते ही
दिनेश के होश उड़ गए। उसके आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। जब उसे पकड़कर नर्क के
द्वार की तरफ ले जाया जा रहा था तो वह ज़ोर-ज़ोर से चीत्कार करने लगा, “यमराज सर प्लीज़ मुझे मेरे पापों के बारे
में बताइए, आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया
है जिसकी वजह से मुझे नर्क के गर्त में धकेला जा रहा है।”(दिनेश को अभी तक भू लोक
में फैली भ्रष्टाचार की आदत थी। उसका मानना था कि ज़रूर यमराज से कोई न कोई गलती हो
रही है।) ऐसे तो यमराज अनेक ही ऐसी आवाज़ों को नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं पर इस
करुण स्वर ने उनके कानों में जब स्पर्श किया तो युवक के प्रति उनके मन से थोड़ी-सी
दया और सहानुभूति का मिश्रित भाव पैदा हो गया।
चित्रगुप्त को
लग रहा था कि हर बार की तरह इस बार भी यमराज के कानों में पड़ने वाले स्वर उनके
बढ़ते कदमों को रोक नहीं पाएँगे। परंतु जब उन्होंने यमराज के मुड़ते कदमों को देखा
तो बिना विलंब किए युवक के संपूर्ण जीवन के कर्मों का लेखा-जोखा तैयार कर कर बैठ
गए। चित्रगुप्त को भी आज बहुत दिनों के बाद किसी के कर्मों की विशद व्याख्या करने
का अवसर मिला था वे बड़े ही प्रसन्नचित्त मुद्रा में थे।
यमराज के सामने
उस युवक को लाया गया। अपने दोनों हाथ जोड़े, चेहरे पर दया का पात्र बनने का भाव और डबडडबाई आँखों में अपने
पापों के बारे में जानने की जिज्ञासा अनायास ही उपस्थितों को दीख रही थी। यमराज ने
युवक को नीचे बैठने का आदेश देते हुए कहा तुम्हारे पापों के बारे में बताते हुए
तुम्हें केवल दो ही बार अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा। अगर तुमने दो बार से
ज़्यादा बोला तो सूर्यदेव की आज्ञानुसार हम तुम्हें तुम्हारे पापों के बारे में
नहीं बता पाएँगे। बेबस और विकल्परहित दिनेश ने हामी भरी।
चित्रगुप्त ने
उसकी जन्मतिथि, स्थान, कुल, गोत्र एवं परिवार के सभी
सदस्यों के बारे में बताते हुए उस समय से उसके जीवन के कर्मों का हिसाब-किताब
बताना शुरू किया जब उसके दूध के दाँत टूट चुके थे और स्थायी दाँतों की संख्या
26-30 हो गई थी। ऐसा करने के पीछे चित्रगुप्त ने कारण बताया कि उस समय तक तुमने
होश नहीं संभाला था। इसलिए उस समय तक तुम्हारे सारे कर्मों को संज्ञान में नहीं
लिया जाएगा।
तुमने होश
संभालने के बाद अनेक बुरे कर्म,
गैर-ज़िम्मेदारना हरकतें, चोरी, अपशब्दों का बहुल प्रयोग, दूसरे के प्रति संवेदनहीनता, प्राकृतिक एवं सामाजिक नियमों का घोर
उल्लंघन किया। दूसरी तरफ तुम्हारे शुभ कर्मों की संख्या इतनी न्यून थी कि तुम्हारे
भाग्य में नर्क ही जाना तय हुआ। तुम्हारे कर्मों की व्याख्या कुछ इस प्रकार है-
स्कूली जीवन में तुमने अपने
शिक्षकों का प्रत्यक्ष और अनेक बार अप्रत्यक्ष रूप से अपमान किया। शिक्षा जो
तुम्हारी गुणवत्ता में वृद्धि करता जिससे तुम सुशिक्षित और सभ्य नागरिक बन पाते
उसकी तुमने अति अवहेलना की। तुम्हारे पिताजी जो तुम्हें इतने कष्टों से पढ़ा रहे थे
उनके नियोजित पैसे और आशाओं पर तुमने पानी फेर दिया।
तुम्हारे पाप- ईश्वर से भी ऊँचे
पदासीन शिक्षक का अपमान, अमूल्य
एवं अक्षय धन विद्याधन का तिरस्कार तथा अपने जनक को वित्तीय तथा भावात्मक चोट।
बाल्यावस्था में
ही तुमने चोरी करना सीख लिया। चलचित्र देखने के लिए कितनी ही बार तुमने घर से पैसे
चुराए और इसी दौरान तुम एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गए। तुम्हारे इलाज के लिए
तुम्हारे पिताजी ने दादी के घुटनों के इलाज के लिए जमा किए गए पैसे निकाले।
तुम्हारे पाप- चोरी करना पाप है और चोरी के पीछे जब कोई
दुर्व्यसन भाव हो तो वह चोरी महापाप बन जाती
है। तुमने अपनी दादी को भी शारीरिक कष्ट दिया।
पृथ्वीलोक की
सबसे कीमती समझे जाने वाली समय की भी तुमने परवाह नहीं की। तुमने स्कूल से लेकर
कॉलेज तक समय की भरपूर बरबादी की। कई बार वार्षिक परीक्षाओं में तुमने नकल कर कर
पास करने की भी कोशिश की और पकड़े गए तुम्हारी तो ऐसे ही इज्ज़त नहीं थी पर इस
कुकृत्य से तुमने अपने अभिभावकों को भी शर्मिंदा कर दिया।
तुम्हारे पाप – पृथ्वीलोक पर
अभिभावक ही भगवान स्वरूप होते हैं उन्हीं से तुम अस्तित्व में आए और तुमने अपने
भगवान को ही अपमानित कर दिया।
परंतु मैं अकेला
नहीं था। इस कार्य में मेरे साथ मेरे मित्र भी शामिल थे। उन्होंने ही मुझे ऐसा
करने के लिए बहकाया था।
तुम जिसे अपना
मित्र कह रहे हो वे तुम्हारे मित्र के वेश में शत्रु थे जो तुम्हें गलत मार्ग पर
चलने का सुझाव दे रहे थे। तुम्हें जब सही और गलत के चुनाव में बाधा हो रही थी तो
तुमने अपने अंतरात्मा से क्यों नहीं पूछा कि सही क्या है और गलत क्या?
होश संभालने से
लेकर मृत्यु पर्यंत तुमने 12305 झूठ बोले जिसमें से 3892 क्षम्य हैं, शेष नहीं क्योंकि उन झूठों से दूसरों की
ज़िंदगी पर कमोबेस प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
तुम्हारे पाप – तुम्हारे झूठ ने
लोगों का इन्सानों पर से उठते विश्वास को और भी बढ़ा दिया। तुमने अपनी जन्मदात्री
सरल, सुशील माँ से भी झूठ बोला जो
क्षम्य नहीं।
तुमने अपने शरीर
के साथ भी बहुत बुरा किया। मादक द्रव्यों का सेवन कर तुमने इस पवित्र शरीर की
पवित्रता नष्ट कर दी। यहाँ तक कि तुमने ऐसे खाद्य-पदार्थों का भी सेवन किया जो
क्षणिक जिह्वाप्रिय थे परंतु स्वास्थ्य के लिए परम विषैले। पहले तो तुमने उन
द्रव्यों के सेवन में और बाद में फिर उन द्रव्यों से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी
समस्याओं के इलाज के लिए अपने पिता के पैसे खर्च करवाए।
तुम्हारे पाप – ईश्वर प्रदत्त आत्मा
और माता-पिता से मिला अनमोल शरीर के साथ भी तुमने बहुत बुरा किया। सक्रिय रूप से
तुमने मादक विक्रेताओं को उत्पादन के प्रति बढ़ावा दिया।
परंतु ऐसे
द्रव्यों का सेवन तो सभी करते हैं फिर मुझे ही इसकी भारी कीमत क्यों चुकानी पड़ रही
है और ये द्रव्य भी तो खाने-पीने वाले द्रव्य से ही तो बने हैं।
तुम्हारे वाक्य
में दोष हैं सभी सेवन नहीं करते अधिकांश करते हैं कुछ तो तुमसे भी ज़्यादा और जहाँ
तक बात है इन द्रव्यों के निर्माण की तो सुनो अगर तुम्हें एक गिलास पानी फेंककर से
मारा जाए तो तुम्हें चोट नहीं लगेगी और न ही एक मुट्ठी मिट्टी से ही तुम्हें कुछ
होने वाला है परंतु इन दोनों के मिश्रण को आग में तपाया जाए और तैयार द्रव्य से
तुम्हें मारा जाए तो गहरी चोट ज़रूर लगेगी। मादक द्रव्य का निर्माण भी इसी विधि से
होता है। और जो लोग इन द्रव्यों का सेवन कर रहे हैं उन्हें दोनों लोकों में कष्ट
उठाना पड़ता है और जो इनका निर्माण कर रहे हैं उनकी सूची भी तैयार हो रही है।
किशोरावस्था से अंतिम
अवस्था तक तुमने अनेक ऐसे काम किए जो असामाजिक थे जैसे अत्यधिक अपशब्दों का प्रयोग, बिना पूछे ही दूसरों के बारे में बुरा-भला
कहने की आदत, यहाँ तक कि तुमने बिनावजह बेजुबान जानवरों
को भी परेशान किया। तुमने न तो सामाजिक और न ही नैतिक कर्तव्यों का निर्वाह सही से
किया।
तुम्हारे पाप – तुमने 8400000
योनियों के बाद मिलने वाले मनुष्य जन्म का मान नहीं रखा। किशोरा और युवावस्था में
जब सबसी अधिक जोश और ताकत होता है तुमने अनर्गल कामों में अपनी सारी ऊर्जा व्यय का
दी। मन में ईश्वर का वास होता है परंतु तुमने बुरे विचारों का समावेश करके वो जगह
असुरों के लिए तय कर दी।
जिस कन्या के
प्रेम पाश में बँधकर तुमने अपने रक्त के सम्बन्धों को फीका कर दिया उससे तुम्हें
केवल उपेक्षा ही मिली। अपमानित होने के बावजूद तुम पशु की तरह तुम वहीं बँधे रहे। तुमने
मानव और पशु को एक ही पंक्ति में ला खड़ा किया। अपने दुख को दुनिया का सबसे बड़ा दुख जानकर नशे की हालत में ट्रक के नीचे आकर सदा
के लिए अपनी जीवन लीला की समाप्ति कर ली।
तुम्हारे पाप- तुमने कुछ दिन के
आकर्षण के लिए वर्षों के संबंधों की तौहीन की। तुमने रक्त के संबंध को भुला दिया।
परंतु मेरी मौत प्राकृतिक
नहीं थी। मुझे अपने आप को सुधारने का एक अवसर मिलना चाहिए।
चित्रगुप्त ने
युवक की वह किताब बंद कर दी जिसमें उसके कर्मों का लेखा-जोखा था।
हाँ, तुम्हारी मौत प्राकृतिक नहीं थी परंतु तुम
अपनी मौत के कुछ अंशों में जिम्मेदार हो। नशे की हालत में तुम फूटपाथ पर न चलकर
सड़क पर चल रहे थे। दूसरा ट्रक का ड्राइवर और तथाकथित तुम्हारी प्रेमिका भी
तुम्हारी मौत में कुछ अंश के भागी हैं। इन सब के खाते में तुम्हारे मौत का पाप जुड़
चुका है।
तुमने यम के दरबार में
दो बार से अधिक बोलकर नियम भंग किया है। अत:, अब हम तुम्हें तुम्हारे कर्मों के बारे में नहीं बता सकते।
यमदूत दिनेश को
पकड़कर नर्क के द्वार की तरफ़ लेकर चले जाते हैं और दिनेश भी बिना किसी प्रतिकार के
परंतु अत्यधिक पछतावे के साथ उनके साथ चल देता है।
अविनाश रंजन गुप्ता
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