SANDHI By Avinash Ranjan Gupta
संधि की आवश्यकता (Use of Joining)
संधि संस्कृत का शब्द है। हिंदी भाषा में
अनेक शब्द हमने संस्कृत से लिया है जिसे हम ‘तत्सम’ शब्द
के नाम से जानते हैं जिसके फलस्वरूप हिंदी शब्द भंडार में वृद्धि होती है और लेखक
या वक्ता के पास शब्द समूह का पर्याप्त भंडार होता है जिससे वह अपने भावों को
माकुल तरीके से अभिव्यक्त कर सकता है। इस कारण से हिंदी व्याकरण में संधि की
आवश्यकता और उपयोगिता बनी रहती है।
वर्ण –Alphabets
हिंदी के
प्रत्येक अक्षर वर्ण कहलाते हैं और संपूर्ण वर्ण समूह वर्णमाला के नाम से जानी
जाती है। वर्ण मूल ध्वनि होती है जिसके खंड नहीं किए जा सकते।
वर्ण
को दो भागों में बाँटा गया है; स्वर
वर्ण और व्यंजन
वर्ण
स्वर वर्ण
(Vowels)– अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
स्वर वर्णों का उच्चारण बिना
किसी अवरोध के होता है। स्वर वर्णों का उच्चारण लंबे समय तक किया जा सकता है परंतु
व्यंजन वर्णों का नहीं क्योंकि व्यंजन वर्णों का उच्चारण भी स्वर वर्णों की सहायता
से ही होते हैं।
स्वर
वर्णों के प्रकार (Types
of Vowels)– स्वर
वर्ण तीन प्रकार के होते हैं पर इन्हें दो श्रेणियों में ही बाँटना उचित होगा-
ह्रस्व
स्वर वर्ण – अ, इ, उ
दीर्घ स्वर
वर्ण- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
संयुक्त
स्वर वर्ण – अ + इ = ए, अ
+ ए = ऐ, अ + उ = ओ, अ + ओ = औ
संधि के प्रकार (Types of Joining)
संधि तीन प्रकार की होती है-
स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि
स्वर संधि
1.
दीर्घ संधि
2.
गुण संधि
3.
वृद्धि संधि
4.
यण संधि
5.
अयादि संधि
6.
दीर्घ संधि
नियम-
दो सवर्ण (एक जैसे स्वर वर्ण) मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद वे ही ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ ह्रस्व या दीर्घ स्वर
आए, तो दोनों मिलकर
क्रमश: ‘आ’,
‘ई’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ हो जाते हैं; जैसे-
अ
+ अ = आ अन्न + अभाव = अन्नाभाव
अ + आ = आ शिव
+ आलय = शिवालय
आ + अ = आ विद्या
+ अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ विद्या
+ आलय = विद्यालय
इ + इ = ई रवि
+ इंद्र = रवींद्र
इ + ई = ई गिरि
+ ईश = गिरीश
ई + इ = ई मही
+ इंद्र = महींद्र
ई + ई = ई पृथ्वी
+ ईश = पृथ्वीश
उ + उ = ऊ भानु + उदय = भानूदय
उ + ऊ = ऊ लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + उ = ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ भू + ऊष्मा =
भूष्मा
ऋ + ऋ =
ऋ पितृ + ऋण + पितृण
2.
गुण संधि
नियम-
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ आए, तो दोनों मिलकर क्रमश: ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं; जैसे-
अ + इ
= ए नर
+ इंद्र = नरेंद्र
अ + ई = ए नर
+ ईश = नरेश
आ + इ = ए रमा
+ ईश = रमेश
आ + ई = ए महा
+ ईश = महेश
अ + उ = ओ हित
+ उपदेश = हितोपदेश
अ + ऊ = ओ सूर्य
+ ऊर्जा = सूर्योर्जा
आ + उ = ओ महा
+ उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ = ओ दया + ऊर्मि = दयोर्मि
अ + ऋ = अर् देव
+ ऋषि = देवर्षि
आ + ऋ =
अर् महा + ऋषि = महर्षि
1.
वृद्धि संधि
नियम-
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आए तो दोनों के मेल
से ‘ऐ’ हो जाता है और यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ओ’ या ‘औ’ आए तो दोनों के मेल
से ‘औ’ हो जाता हैं; जैसे-
अ
+ ए =
ऐ लोक
+ एषणा = लोकैषणा
अ + ऐ = ऐ मत + ऐक्य
= मतैक्य
आ + ए = ऐ सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ महा + ऐश्वर्य
= महैश्वर्य
अ + ओ = औ दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
आ + ओ = औ महा + ओजस्वी
= महौजस्वी
अ + औ = औ परम + औषधि = परमौषधि
आ +
औ = औ महा + औषधि = महौषधि
4.
यण संधि
नियम-
यदि ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई भिन्न
स्वर आए, तो ‘इ-ई’ का ‘य्’, ‘उ-ऊ’ का ‘व्’ और ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता हैं; जैसे-
इ +
अ = य अति + अधिक = अत्यधिक
ई + आ =
या अति + आचार = अत्याचार
ई + आ = या देवी
+ आगमन = देव्यागमन
इ + उ =
यु उपरि + उक्त = उपर्युक्त
इ + ऊ = यू नि + ऊन =
न्यून
इ + ए = ये प्रति + एक = प्रत्येक
ई + ऐ = यै नदी + ऐश्वर्य = नद्यैश्वर्य
उ + अ =
व सु + अच्छ = स्वच्छ
उ
+ आ = वा सु + आगत = स्वागत
उ + इ =
वि अनु
+ इति = अन्विति
उ
+ ए = वे अनु + एषण = अन्वेषण
ऊ + आ =
वा वधू + आगमन = वध्वागमन
ऋ
+ अ = र पितृ
+ अनुमति = पित्रानुमति
ऋ + आ =
रा मातृ
+ आज्ञा = मात्राज्ञा
ऋ
+ इ = रि मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
1.
अयादि संधि
नियम- यदि ‘ए’,
‘ऐ’, ‘ओ’,
‘औ’
स्वरों का मेल दूसरे स्वरों से होता है तो ‘ए’
का ‘अय्’,
‘ऐ’
का ‘आय्’,
‘ओ’
का ‘अव्’
और ‘औ’
का ‘आव्’
हो जाता हैं;
जैसे -
ए +
अ = अय ने
+ अन =
नयन
ऐ +
अ = आय नै
+ अक = नायक
ओ + अ
= अव पो
+ अन = पवन
औ
+ अ = आव पौ
+ अन = पावन
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