Rajeev Ka Homework By Avinash Ranjan Gupta

Rajeev Ka Homework
राजीव का होमवर्क
            हम सब के जीवन में कभी न कभी ऐसा वक्त ज़रूर आता है जब कोई बात हमें बहुत प्रभावित करती है। उसके बारे में हम बहुत सोचते हैं और सोचना अच्छा भी लगता है। इसकी वजह यह होती है कि वह किसी न किसी रूप में हमारे जीवन के किसी पक्ष से जुड़ा होता है। राजीव के जीवन में भी एक दिन ऐसा ही हुआ। 8 साल का राजीव जब आज सुबह स्कूल गया तो उसके कक्षाध्यापक ने कक्षा के सारे बच्चों को एक गृहकार्य दिया। गृहकार्य था आपके जीवन का लक्ष्य सभी छात्रों को यह गृहकार्य कल पूरा कर कर लाना था। शिक्षक ने गृहकार्य के विषय में सारे छात्रों को विस्तार से बताते हुए कहा कि हम सब इस दुनिया में आए हैं और अपनी भूमिका अदा करके इस दुनिया से रुखसत हो जाएँगे। हमारे साथ किसी भी प्रकार की भौतिक चीज़ें नहीं जाती हैं। जाती है तो सिर्फ़ हमारे कर्मों और संस्कारों की  चिठ्टी जिसकी एक कॉपी हमें इसी धरतीलोक पर भी छोड़नी पड़ती है। जन्म लाभ करने से लेकर काल के गाल में समाने तक हम सभी को अपने जीवन निर्वाह के लिए कुछ न कुछ करना होता है। उसे हम पेशा या ओक्कुपेशन कहते हैं। आपलोग कौन-सा पेशा या ओक्कुपेशन अपनाना चाहते हैं और क्यों? इसके बारे में आपको लिख कर लाना है। यह सुनकर न जाने राजीव को क्या हो गया, वह मंद-मंद मुस्कराने लगा। उसकी मुस्कराहट में एक जिज्ञासा झलक रही थी। उसकी मुखमुद्रा देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसे अभी तक के अपने जीवन का सबसे अच्छा होमवर्क मिला हो। स्कूल समाप्त होने के बाद वह सहर्ष अपने घर चला आया। उसके दिमाग में केवल एक ही बात चल रही थी कि उसके जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए? मासूम और अबोध  राजीव को यह पता ही नहीं था कि दुनिया उन लोगों से भरी पड़ी है जिन्होंने कई मंसूबे बनाए और आधा या बिना शुरूआत किए ही अपने लक्ष्य से विमुख हो गए। अगर सही मार्गदर्शन न मिले तो ऐसे उदाहरणों का नकारात्मक असर देर-सबेर उन पर भी पड़ने लगता है जिनको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी दिक्कतें आ रही होती हैं। दूसरी तरफ़ राजीव का इन बातों  से अंजान होना ही सही साबित हो रहा था।
            राजीव अपने गृहकार्य को पूरा करने के लिए अपने मष्तिस्क में लगातार यही सवाल घुमा रहा था कि उसे क्या बनना चाहिए जो हर दृष्टि से ठीक हो। सोचते-सोचते उसकी नज़र दीवार पर टँगी एक फोटो पर टिक गई जिसमें वो उसकी दो बड़ी बहनें और सामने के मकान में रहने वाले अग्रवाल जी के बेटे और बेटी की फोटो थी। यह फ़ोटो उस समय उठाई गई थी जब अग्रवाल परिवार एक महीने की विदेश यात्रा पर गए हुए थे और उन्होंने वहाँ से एक विदेशी कैमरा खरीदा था। उसी दिन राजीव ने अपनी माँ से पूछा था, “माँ हमलोग विदेश यात्रा पर कब जाएँगे?” राजीव की माँ निर्मला देवी जो व्यवहार कुशल और एक आदर्श गृहिणी हैं राजीव के सवाल का जवाब देते हुए कही कि जब तुम कमाने लगोगे तब विदेश यात्रा पर जाएँगे। यह उत्तर राजीव के लिए जितना अनोखा था उतना ही असंतोषजनक। झट से उसने दूसरा सवाल दागते हुए कहा,”ऐसा क्यों माँ?” उसकी माँ ने कहा बेटा तुम्हारे पिताजी मामूली से क्लर्क हैं और अग्रवाल जी एक बहुत बड़े व्यापारी। सारी बातें पानी की तरह साफ़ हो गईं और साथ ही साथ उसे अपने जीवन का लक्ष्य भी मिल गया। वह सोचने लगा कि मैं एक व्यापारी बनूँगा। मगर दूसरे ही पल उसकी सामाजिक विज्ञान की शिक्षिका श्रीमती लेहा की बातें उसे याद आने लगी कि व्यापारी आम जनता को लूटते हैं। जमाखोरी करते हैं। मोनोपोली करते हैं। कुछ व्यापारी तो मिलावट भी करते हैं। सरकारी टैक्स की चोरी करते हैं। यह सब याद आते ही उसका मन आत्मग्लानि से भर गया। पानी के बुलबुले की तरह व्यापारी बनने का निश्चय भी अदृश्य हो गया।
            मगर लक्ष्य निर्धारण का कार्य जारी ही था। वह सोचने लगा कि जो भी बनूँगा मगर व्यापारी नहीं बनूँगा। लक्ष्य निर्धारण की सूची से व्यापार सदैव के लिए गायब हो गया। वह यह सोच ही रहा होता है कि उसके पिताजी आ जाते हैं और राजीव की माँ से कहते हैं कि आज शाम को जी. एम. साहब के बेटे की सगाई है हमें ज़रूर चलना है। राजीव ने भी यह सुना और एक बात उसके दिमाग में बैठ गई जी. एम. साहब। ऐसे पिताजी किसी को जल्दी साहब नहीं कहते हैं। इस तरफ़ राजीव को भी पता था कि साहब शब्द एक आदरसूचक शब्द है और इसका प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है जो पावर और पोजीशन में बहुत ऊँचे हों। झट से उसने निर्णय किया मैं जी. एम. साहब बनूँगा। पर दूसरे ही पल क्या पता उसके दिमाग में क्या आया उसने अपनी माँ से जाकर पूछा, “माँ जी एम साहब का नाम क्या है?” उसकी माँ ने राजीव से पूछा क्यों पूछ रहो हो? राजीव ने कहा बताओ न माँ। माँ ने कहा मुझे पता नहीं अपने पिताजी से जाकर पूछ लो। यही सवाल लेकर वह अपने पिताजी के पास गया। पिताजी ने कहा  पी.के. त्रिपाठी, राजीव ने पूछा पी. के. का फूल फ़ॉर्म क्या है पिताजी? पिताजी ने आँखें नचाते हुए और  माथे पर शिकन लाते हुए कहा शायद प्रदीप कुमार या पवन कुमार ऐसा ही कुछ है और राजीव को यह भी हिदायत दी कि शाम को अच्छे कपड़े पहनना और पार्टी में थोड़ी-सी भी शरारत मत करना। जहाँ बनावटी होना पड़े। जहाँ बाहरी आवरण को महत्त्व दिया जाता हो वह जगह कैसी होगी? वह ये सारी बातें सोचने लगा। उसने यह भी सोचा कि जब तक पी. के. त्रिपाठी के नाम के पहले जी. एम. साहब लगता रहेगा तब तक ही लोग उनकी आवभगत करेंगे, उनका मान-सम्मान करेंगे। मगर उसके बाद उनकी कोई खास अहमयित नहीं रह जाएगी। पर मैं तो कुछ ऐसा चाहता हूँ जिसका प्रभाव बहुत समय तक रहे। मुझे नहीं जी. एम. वी. एम. ।
            फिर वह अपने लक्ष्य को लेकर सोचने लगा कि तभी उसकी बड़ी बहन मोबाइल पर अपनी चचेरी बहन से बात करते हुए उस कमरे में आ धमकी। वह अपनी चचेरी बहन से कह रही थी कि तुम किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर से शादी करना। उसकी सैलरी और स्टेटस बहुत अच्छी होती है और अब्रोड जाने के चांसेस भी होते हैं। मन भी अजीब चीज़ है एक ही पल में किसी की बुराई करने लगता है तो दूसरे ही पल उसकी तारीफ़। राजीव ने भी अभी थोड़ी देर पहले अपनी बड़ी बहन के साथ ऐसा ही अनुभव किया। सॉफ्टवेयर इंजीनियर का नाम सुनते ही राजीव के दिमाग में फेसबूक, ट्विटर, गेमिंग्स, माइक्रोसॉफ्ट और न जाने क्या क्या आने लगे। ये सब उसे बड़े लुभावने लग रहे थे। उसने सोच लिया कि वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर ही बनेगा। मगर उसका तार्किक मस्तिष्क डॉक्टर सुभाष चन्द्र के उस विज्ञापन को उसके दिमाग में प्रसारित करने लगा जिसमें वे कॉर्पोरेट कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों को स्ट्रेस मेनेजमेंट पर काउन्सेलिंग देने वाले थे। इस सोच ने उसकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने की इच्छा आधी कम कर दी और इस सोच ने पूरी कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स मिलकर दिन-रात एक कर सॉफ्टवेयर डेवलप करते हैं और श्रेय कंपनी के मालिक को जाता है। बात वही हो गई कि किसान खेती करे और जमींदार के गोदाम में अनाज भर्ती हो।    
            राजीव का दिमाग काफी देर से लगातार चिंतन कर रहा था। उसे हल्की-सी थकान भी महसूस होने लगी थी। मगर ज़ज़्बा ज्यों का त्यों बरकरार था। उसने दृढ़ निश्चय किया था कि वह अपना होमवर्क पूरी ईमानदारी से करेगा। तभी उसकी मँझली बहन कविता वाचन करती हुई वहाँ आ गई। वह कविता गिरिजा कुमार माथुर द्वारा अनूदित हम होंगे कामयाब  “हम होंगे कामयाब  हम होंगे कामयाब  एक दिन” राजीव ने भी इस कविता का वाचन शुरू कर दिया। उसमें फिर से उमंग तरंग और ताज़गी का संचार हो गया। उसने सोचा क्यों न मैं कवि बन जाऊँ। अच्छी कविताएँ सभी को पसंद आती हैं। कविताएँ सभी का मन मोह लेती हैं और शीतलता प्रदान भी करती हैं। मगर आज के इस तेज़ दुनिया में कौन कविताएँ पढ़ता है? मेरी बहन तो खुद इसलिए इस कविता को याद कर रही है ताकि कल के फंक्शन में गा सके। इसी तरह वह कभी सोचता डॉक्टर बनूँ, कभी इंजीनियर, कभी पुलिस और सारे पेशे किसी न किसी खामी के कारण रिजेक्ट हो जाते।    
            वह मंगलवार का दिन था। उस दिन उसकी माँ ने मंदिर जाने की सोच रखी थी। माँ ऐसे तो मंदिर नहीं जाती थी पर शायद उनकी कोई इच्छा पूरी हो गई थी इसलिए वह मंदिर जाना चाह रही थी। माँ ने अपने साथ मंदिर जाते समय राजीव को अपने साथ ले लिया। मंदिर पहुँचते ही राजीव को काफी अजीब लगने लगा। मंदिर के बाहर अनेक भिखारी, मंदिर के अंदर भक्त लोग लंबी-लंबी कतार में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। ऐसा दृश्य देखकर राजीव के मन में अनेक सवाल उठ रहे थे। उसने अपनी माँ से सवाल किया।
माँ यहाँ इतनी भीड़ क्यों है?
माँ ने कहा आज पूर्णिमा है न इसलिए आज थोड़ी ज्यादा ही भीड़ है।
राजीव ने फिर सवाल किया जिसकी पूजा की जा रही है वो कौन हैं?
सवाल का जवाब देते हुए माँ ने कहा ये मर्यादापुरुषोत्तम राम भगवान हैं।
माँ इनका जन्म कब और कहाँ हुआ था और इन्होंने ऐसा क्या किया जो लोग इनकी पूजा करते हैं?
माँ ने कहा इनका जन्म तो हजारों-हजारों साल पहले अयोध्या में हुआ था इन्होंने लोक कल्याण के लिय राक्षसों का वध किया था। अपने कुल का नाम रखने के लिए 14 वर्ष का बनवास स्वीकार किया था और परहित के लिए अनेक बलिदान भी दिए थे।
            अब राजीव को पता चल गया कि उसे अपने जीवन में क्या बनना है? मन ही मन वह बहुत प्रसन्न हो रहा था। उसे लग रहा था मानो मंदिर आने से उसकी मनोकामना भी पूरी हो गई। वह बहुत खुश हो गया। उसने यह निश्चय कर लिया कि उसे भगवान राम बनना है। इस लक्ष्य के विरुद्ध में एक भी तर्क उसका दिमाग प्रस्तुत करने में असमर्थ था। उसे लगा कि मेरा होमवर्क पूरा हो गया। सचमुच बाल मस्तिष्क बहुत-सी बातों से अंजान होता है। उसे यह पता ही नहीं था कि हर चीज़ के दो पहलू होते हैं पॉज़िटिव और नेगेटिव। आज के समाज में अधिकाधिक लोगों की विकृत मानसिकता के तर्क करने की क्षमता के कारण अच्छाई में बुराई और  बुराई में अच्छाई निकाल देना कोई बड़ी बात नहीं होती है।
            अगले दिन प्रसन्नचित्त होकर वह स्कूल गया। चेहरे पर चमक और होंठों पर स्मित मुस्कान लेकर उसने  अपनी कॉपी शिक्षक को दी। शिक्षक ने जैसे ही पढ़ा मैं राम भगवान बनना चाहता हूँ। विस्मय और मुस्कान का अनोखा संगम उनके चेहरे पर प्रतिफलित हो रहा था। उन्होंने राजीव से उसके लक्ष्य के बारे में विस्तार से पूछा। तब राजीव ने अग्रवाल व्यापारी से लेकर राम मंदिर तक की सारी घटना का विवरण प्रस्तुत कर दिया। शिक्षक को तुरंत  आभास हो गया कि राजीव की मंशा तो पवित्र है पर दिशा घने कोहरे से ढकी हुई है। अर्थात् कोहरा हटाने के लिए उसने राजीव को परामर्श देना उचित समझा।
            शिक्षक ने राजीव से कहा, इस दुनिया में अनेक धर्म के लोग हैं। तुम्हारा यह निर्णय लेना कि तुम्हें राम भगवान बनना है, तुम्हारे लक्ष्य के विस्तार में बाधा डालेगी।
            दूसरी बात अब तुम राम भगवान की तरह  बनने के लिए राम भगवान की पूजा-अर्चना करोगे, उनसे प्रार्थना करोगे कि हे प्रभु! मुझमें भी आप अपने  गुणों का संचार कीजिए जो सर्वथा व्यर्थ है क्योंकि पूजा करने वाला हमेशा अपने आपको कमजोर और क्षुद्र मानता है। उसे लगता है कि मैं बहुत छोटा हूँ मैं इनकी मदद के बिना कुछ भी नहीं कर सकता। समस्या के समय  भी हम समाधान ढूँढने की जगह ईश्वर का स्मरण करने लगते हैं जिससे हमारे अंदर की शक्ति अंदर ही रह जाती है और तो और राम भगवान ने कभी भी नहीं कहा होगा कि लोग मेरी पूजा करें। मेरे मंदिर बनवाएँ। अर्थात तुम्हें पूज्य बनना चाहिए न कि पूजारी।  
            तीसरी बात यह कि तुम आशा करते हो कि लोग तुम्हारी पूजा करें। याद रखो आशा ही दुख का कारण  बनती है। तुम्हें यह सोच कर परोपकार करना चाहिए कि यह मेरा कर्म है। इससे मुझे खुशी मिलती है न कि यह सोच कर कि मेरे परोपकार के बदले लोग मेरा आदर सम्मान करेंगे, मेरी पूजा करेंगे। अगर ऐसा नहीं होगा तो तुम दुखी हो जाओगे और हो सकता है कि कुछ समय के बाद तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओ।  
            सर फिर मुझे क्या बनना चाहिए? क्या मुझे अपना लक्ष्य बदल देना चाहिए। शिक्षक ने एक दोहा वचन किया
गुरु-गोविंद दोउ खड़े, काके लागु पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोविंद दियो बताय॥
            दोहे का अर्थ समझाते हुए शिक्षक के कहा- “अगर शिक्षक और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो हमें सबसे पहले शिक्षक के चरण स्पर्श करने चाहिए क्योंकि भगवान के बारे में बताने वाले शिक्षक ही होते हैं। इसलिए तुम्हें भी शिक्षक बनना चाहिए।”
            ‘शिक्षक सोचते हुए राजीव ने बोला।
            शिक्षक ने राजीव को समझाते हुए कहा अगर तुम शिक्षक बनते हो तो तुम सदा मस्तिष्क के साथ काम करोगे। ज्यादा से ज्यादा समय चरित्र निर्माण और निर्मल  मस्तिष्क के गठन में लगाओगे। एक आदर्श शिक्षक हमेशा से पूजनीय होता है। विद्यालय रूपी मंदिर और बाहर भी उसके चरित्र की पूजा होती है। तुम्हारे अच्छे अध्यापन और व्यवहार के कारण छात्र तुम्हारी सराहना करेंगे। तुम्हारे द्वारा कहे और लिखे गए नीतिवाणी को छात्र अपने जीवन में उतारेंगे और साथ ही साथ पीढ़ी दर पीढ़ी तुम्हारे कहे गए वचनों को स्थानांतरित करेंगे। तुम्हारा भौतिक शरीर भले ही इस दुनिया में न हो मगर तुम्हारी सुकीर्ति सदा लोगों के द्वारा कही जाएँगी। तुम अगर शिक्षक पद को स्वीकार करोगे तो रोजगार के साथ साथ तुम्हारा लक्ष्य भी पूरा हो जाएगा। 
            राजीव ने पूर्ण सहमति के साथ शिक्षक बनने का इरादा बना लिया।

अविनाश रंजन गुप्ता 

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