Raidas Ke Pad Ki Shabdarthsahit Vyakhya By Avainash Ranjan Gupta
रैदास के पद
रैदास
शब्दार्थ
1.
विख्यात – प्रसिद्ध
2.
संत –Saint
3.
देहावसान –मृत्यु
4.
बनारस –वाराणसी, काशी
5.
ख्याति – नाम
6.
दिल्ली –इंद्रप्रस्थ
7.
मध्ययुगीन –Medieval Period
8.
कोटि –प्रकार, करोड़
9.
ज़रा –थोड़ा
10.
जरा – बूढ़ा
11.
व्यावहारिक –Practical
12.
उपमा –Simile
13.
रूपक –Metaphor
14.
दैन्य - गरीबी
15.
उद्वेलित –अशांत
16.
सम्मिलित –Include
17.
आराध्य - जिसकी पूजा की जाए
18.
वरन् - बल्कि
19.
विद्यमान –उपस्थित
20.
सर्वगुण –सभी गुणों से संपन्न
21.
प्रेरणा –Inspiration
22.
उदारता –महानता
23.
समदर्शी –समान रूप
से देखने वाला
24.
तथाकथित = So-called
25.
बास - गंध, वास
26.
समानी - समाना (सुगंध का बस
जाना), बसा हुआ (समाहित)
27.
घन - बादल
28.
बन - जंगल
29.
मोरा - मोर, मयूर
30.
चितवत - देखना, निरखना
31.
चकोर - तीतर की
जाति का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है
32.
बाती - बत्ती; रुई, पुराने कपडे़ आदि को ऐंठकर या बटकर बनाई हुई पतली
पूनी
33.
जोति - ज्योति,
34.
बरै - बढ़ाना, जलना
35.
राती - रात्रि
36.
सोनहिं - सोने में
37.
सुहागा
- सोने
को शुद्ध करने के लिए प्रयोग में आनेवाला क्षारद्रव्य
38.
दासा - दास, सेवक
39.
लाल - स्वामी
40.
कउनु - कौन
41.
गरीब निवाजु - दीन - दुखियों पर दया करनेवाला
42.
गुसईआ - स्वामी, मालिक
43.
माथै छत्रु
धरै - मस्तक पर
स्वामी होने का मुकुट धारण करता है
44.
छोति - छुआछूत, अस्पृश्यता
45.
जगत कउ लागै - संसार के लोगों को लगती है
46.
ता पर
तुहीं ढरै - उन पर द्रवित होता है
47.
नीचहु ऊच करै - नीच को भी ऊँची पदवी प्रदान करता है
48.
गोबिंद - प्रभु
49.
नामदेव - महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत, इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में रचना की है
50.
तिलोचनु (त्रिलोचन) - एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे
51.
सधना - एक उच्च कोटि
के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं
52.
सैनु - एक
प्रसिद्ध संत
53.
हरिजीउ - हरि जी से
54.
सभै सरै - सब कुछ
संभव हो जाता है
(1)
अब कैसे छूटै
राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग—अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
कवि रैदास
अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वे कहते हैं कि मैं
अपनी भक्ति के माध्यम से अपने प्रभु को प्राप्त करूँगा। कवि कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे अब
आपके नाम की रट लग गई है, वह छूट नहीं सकती। अब तो मैं आपका परम भक्त हो गया हूँ। आपमें और मुझमें वही
संबंध स्थापित हो गया है जो चन्दन और पानी में होता है। चन्दन के संपर्क में रहने
से पानी में भी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे अंग-अंग में आपकी भक्ति की सुगंध समा गई है। हे प्रभु! आप बादल
हो और मेरा मन मोर है। जो आपके भक्ति की
गड़गड़ाहट सुनते ही नृत्य करने लगता है। प्रभु! जैसे चकोर चाँद को एकटक निहारता रहता है वैसे ही मैं आपकी
भक्ति में निरंतर लगा हुआ हूँ। हे प्रभु! आप दीपक की तरह हो और मैं बत्ती की तरह हूँ
जो दिन-रात भक्ति
की आस में प्रज्ज्वलित होती रहती है। हे प्रभु ! आप मोती
के समान हो और मैं धागे के समान। अर्थात
आप मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो मैं उसमें पिरोया हुआ
धागा हूँ। आपका और मेरा संबंध सोने और सुहागे के समान है। जिस प्रकार सुहागे के
संपर्क में आकर सोना और अधिक खरा हो जाता है, उसका मूल्य बढ़ जाता है। उसी प्रकार आपके संपर्क में आने से मैं पवित्र हो गया हूँ। मेरी
भक्ति और और भी निखर उठी है। आप मेरे स्वामी हो और में आपका दास हूँ मैं रैदास इसी
प्रकार आपके चरणों में रहकर अपनी भक्ति अर्पित करना चाहता हूँ।
Raidas Ke Pad
(2)
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु
करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।।
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।।
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