Parvat Pradesh Me Pavas Sumitranandan Pant
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1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन—कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
2. ‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
3. ‘सहस्र दृग—सुमन’ से क्या
तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है
और क्यों?
5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे— ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को
प्रतिबिंबित करते हैं?
6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस
गए?
7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
1. पावस ऋतु में कभी आकाश में सूर्य चमकता दिखाई देता है कभी अचानक बादल
धुएँ की तरह छा जाते हैं और घने बादलों में पर्वत, पेड़ सब छिप जाते हैं।
2. पहाड़ों की ढलान को देखकर कवि को ऐसा लगता है कि मानो यह कमर में पहना
जाने वाला लड़ियों युक्त गहना है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वतों की शृंखला के लिए
किया है जो दूर-दूर तक फैली हैं तथा करघनी के भाँति ही धरती पर सुशोभित हैं।
3. पावस ऋतु में पर्वतों पर खिले सहस्र सुमनों को कवि पर्वतों की आँखों
के समान कह रहे हैं।
4. कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाई है। तालाब के जल में पर्वतों
की परछाईं पड़ती हैं तो लगता है कि पर्वत आईना देख रहा है।
5. पर्वत के हृदय से उठे वृक्ष चिंतामग्न होकर आकाश को देख रहे हैं ऊँचे
उठे वृक्ष पर्वतों की उच्च आकाक्षाओं को प्रतिबिम्बित करते हैं।
6. बादल फैलने से लगा मानो तालाब जल गया हो और धुआँ फैल रहा हो। इससे शाल
के वृक्ष भयभीत होकर मानो धरती में समा गए हों।
7. झरने पर्वतों की महानता का गान कर रहे हैं। बहते झरने का शीतल जल मोती
की लड़ियों से दिखाई पड़ते हैं।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।
2. - यों जलद—यान में विचर—विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
3. गिरिवर के उर से उठ—उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
क.
कवि कहते हैं कि बादलों
के अचानक छा जाने पर पहाड़ अदृश्य हो जाते हैं ऐसे दृश्य को देख कर ऐसा लगता है मानो
पहाड़ों पर आकाश ही टूट कर गिर गया हो।
ख.
कवि कहते हैं कि बादलों को देखने से ऐसा लगता है, मानो बादलों ने किसी को ढक रखा है तभी अचानक बादल छँट जाते
हैं। सूर्य के प्रकट होने से आकाश में बड़ा-सा इंद्रधनुष दिखाई देता है, मानो इंद्र
बादल रूपी विमान में घूम-घूम कर अपनी जादूगरी की माया का प्रदर्शन कर रहे हों।
ग.
कवि कहते हैं कि
पर्वतों के हृदय पर बड़े-बड़े वृक्ष सुशोभित हैं। लगता है, मानो ये पर्वतों की ऊपर उठाने की कामनाएँ हैं। ये वृक्ष
शांत आकाश की ओर एकटक देखते हुए अत्यंत चिंतातुर से प्रतीत होते हैं।
3 -निम्नलिखित में अभिव्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -
(क) पढ़ते
हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
(ख) पगड़ी भी आदमी
की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
क.
कवि कहते हैं कि जहाँ पर धर्म की बातें सिखाईं जाती हैं वहीं से जूते-चप्पल
चुरा लिए जाते हैं और चुराने वाला चोर भी आदमी
ही होता है और उनको देखने वाला भी आदमी ही होता है। अर्थात समाज में समुचित शिक्षा
के विविध आयामों में खामियाँ हैं जिसकी वजह से ये सब क्रियाएँ हो रही हैं।
ख.
कवि
कहते हैं कि लोग अपनी अज्ञानता के कारण दूसरों को बेइज़्ज़त करते हैं। यही लोग अपनी समस्या
में सहायता के उद्देश्य से चिल्ला कर लोगों को पुकारते हैं और उनकी पुकार को सुनकर
मदद की मंशा से जो दौड़ता है वह भी आदमी ही है।इससे यह तो स्पष्ट होता है कि समाज में
अनेक तरह के लोग मौजूद हैं पर हमे यह चाहिए कि हम अपनी सोच और सामाजिक स्तर इस तरह
का बनाए कि कोई हमारी बेइज़्ज़ती न कर सके। हमें
अपने आप को इस काबिल बनाना चाहिए कि हम दूसरों की भी मदद कर सकें।
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