Meri Khoosoorati Ka Raaz By Avinash Ranjan Gupta




मेरी खूबसूरती का राज़
          27 नवंबर को मेरे एक छात्र ने कहा कि मैं बहुत खूबसूरत हूँ। और इसलिए मैंने इस निबंध का नाम ही रख दिया है- मेरी खूबसूरती का राज। पाठकगण को शायद यह भ्रम हो सकता है कि इस निबंध में कुछ ऐसे नुस्खे होंगे जिससे आपकी सुंदरता में निखार आ जाएगा। पाठकगण अगर ऐसा सोचते हैं तो वे काफी हद तक सही साबित होंगे पर उन्हें यह जानकर अचरज हो सकता है कि मैं जिस सुंदरता की गाथा गाने वाला हूँ वह आंतरिक सुंदरता है न कि बाहरी।
          आजकल के समाज में सभ्य कहे जानेवाले लोगों का समूह बाज़ार में अपलब्ध ऐसी अनेक  प्रासाधन सामग्रियों का प्रयोग करते नज़र आते हैं जिससे उनके गालों में लालिमा, बालों में कालिमा और त्वचा में चमक आ जाती है। डिजाइनदार ड्रेसेस और पहनावे उनके बाहरी सुंदरता को सुंदरता के शिखर तक पहुँचा देते हैं परंतु इन प्रासाधन सामग्रियों से उनका अंतर्मन सुंदर नहीं बनता। मेरा तो यहाँ तक मानना है कि इन प्रासाधन समग्रियों का प्रयोग करते-करते उनका अंतर्मन और भी मलिन होता जा रहा है क्योंकि आज समाज के वही तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले वर्ग समाज के लिए सबसे घातक साबित हो रहे हैं जिसका हवाला प्रतिदिन का अखबार और टी.वी. में आनेवाले न्यूज़ चैनल पूरी रुचि से दिखाते हैं।
          जी सच पूछिए तो मैं सदा से आंतरिक सुंदरता का कायल रहा हूँ जो मनुष्य को मनुष्य बना देता है और उसकी अमर कीर्ति का यशोगान युगों-युगों तक होता रहता है। तो क्या है आंतरिक खूबसूरती का राज़? इससे पहले कि मैं आपको आंतरिक खूबसूरती के राज़ के बारे में कुछ बताऊँ मैं आप सभी के सामने अपने जीवन से जुड़ी एक घटना को सार्वजनिक करना चाहूँगा। मेरा वर्ण श्यामल है, मेरे पिताजी का वर्ण भी श्यामल है और मेरी दादी का वर्ण भी श्यामल था। पुरुष अगर श्यामल वर्ण के हों तो उनकी खूबसूरती पर सवाल न के बराबर उठते हैं पर स्त्री श्यामला हो तो सवालों का तथा उसके साथ-साथ तानों और उपेक्षाओं की मार भी लगातार पड़ती ही रहती हैं। फिर भी मुझे मेरी दादी बहुत खूबसूरत लगती थी केवल इसलिए नहीं क्योंकि वो मेरा बहुत ख्याल रखती थी बल्कि  कभी विशेष मिली खाने की चीज़ का कुछ अंश मेरे लिए रख दिया करती थी। मेरी माँ के प्राय: हर कामों में मदद करने को तैयार रहती थी। बल्कि उसका यह स्वभाव दूसरों के प्रति भी था। वह सदा दूसरों की मदद  को तैयार रहती थीं। समय बीतता गया और जैसे-जैसे मैं ज़हीन होता गया। समाज के साथ तादात्म्य स्थापित करता  गया तो यह जानते मुझे देर न लगी कि आज का समाज और मेरी दादी माँ एक दूसरे के बिलकुल विपरीत हैं। और एक समय ऐसा आया जब मैं यह जान पाया कि हर खूबसूरत चीज़ अच्छी हो या न हो पर हर अच्छी चीज़ खूबसूरत होती ही है बस ज़रूरत है तो नज़र पैदा करने की। और समाज के व्यवहार ने मुझे इस सच्चाई से अवगत करा ही दिया कि श्यामवर्णा मेरी दादी बहुत खूबसूरत थीं।
          आज की दुनिया बाज़ार बनती जा रही है। और इस बाज़ार के सभी व्यापारी अपने व्यापारिक जीवन के साथ-साथ निजी जीवन में भी व्यापारिक नीतियों को अपने व्यवहार में पाले हुए हैं। और यही कारण है कि जहर को भी जौहर और खराब को भी खूबसूरत बनाकर हमारे सामने प्रस्तुत किया जा रहा है और इस पीढ़ी की पढ़े-लिखे कहे जाने वाले एडुकटेड फूल्स (Educated Fools) उन खूबसूरत चीजों की प्राप्ति पर इतना गर्व करने लगते हैं जैसे मानो उनका जीवन सार्थक हो गया हो। (शिक्षक इस परिच्छेद को विस्तार से समझाएँ)
          इस छोटे से लिखित व्याख्यान के बाद बाद आप यह तो जान ही गए होंगे कि अच्छा ही खूबसूरत होता है। पर हम अच्छे बनें कैसे? अच्छा बनने के लिए आपको बाहर जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि अंदर झाँकने की ज़रूरत है। आपको यह जानने की आवश्यकता है कि आपमें ऐसा क्या है जो अच्छा नहीं हैं? आपको ऐसा क्या करना है जिससे आपका चरित्र समुज्ज्वल हो जाए?
          ऐसा हमने सुना है कि हमारे अतीत अति वैभवशाली थे। उनकी कीर्तिगान अभी भी विशाल जनसमुदायों द्वारा गुंजित होती रहती है। ऐसे ही महानायक जिसे आप और हम राम, कृष्ण, गौतम, गांधीजी के नाम से जानते हैं। विश्वास कीजिए अगर आपने जीवन में एक बार भी इन महानायकों की जीवनियाँ  पढ़ ली और उसमें निहित गुणों को अपने प्रतिदिन के व्यवहार में उतार लिया तो आपकी खूबसूरती कहीं अधिक बढ़ जाएगी। क्योंकि इन सभीका जीवन सदा से अनुकरणीय रहा है। रामचरितमानस का एक पात्र हनुमान आज भी परम पूजनीय हैं। जबकि कुछ अल्पमति के लोग बदसूरत के लिए बंदर शब्द का प्रयोग झट से कर देते हैं। जबकि इन्हीं के प्रजाति के हनुमान जी की पूजा की जाती है जो इस बात को दर्शाता है कि आंतरिक सुंदरता ही वास्तविक एवं शाश्वत सुंदरता है।
          खूबसूरत बनने के लिए आपको ऐसे पुस्तकों का अध्ययन करना होगा जो हमारा अन्तर्मन निर्मल कर दे। ऐसे कार्यक्रमों को देखना होगा जो हमें विचारशील बनने में मदद करे। ऐसे लोगों की संगति में  रहना होगा जो हमारे चरित्र की कमियों पर कटाक्ष कर उसे सर्वदा के लिए अलग कर दे।
          ये तो मेरा सुझाव है पर क्या आपलोगों के मन में ये सवाल हिलौरें ले रहा है कि ऐसी कौन-सी पुस्तकें, कार्यक्रम और मित्र मिलेंगे जो हमारे चतुर्दिग विकास में मदद करेंगे? अगर हाँ तो आपको अपने प्रश्न का उत्तर ज़रूर मिलेगा। ऐसी बहुत-सी पुस्तकें है पर मैं आपको केवल दो ही पुस्तकों के बारे में बताऊँगा पहला रामायण या रामचरितमानस और दूसरा गीता इन दो पुस्तकों के अध्ययन से आप अपने आप को मानसिक रूप से इतने सबल बना चुके होंगे कि आप भविष्य में सही पुस्तकों का चयन कर सकेंगे। जहाँ तक विचारशील बनने में मदद करनेवाले कार्यक्रमों की बात है वे आजकल बहुत ही कम प्रसारित हो रहे हैं। दूसरी तरफ टी.वी. में आने वाले कार्यक्रम व्यापारिक दृष्टि से उन विचारों, दृश्यों और कहानियों के प्रसारण में लिप्त हैं जिनसे विपुल आर्थिक लाभ और टी.आर.पी. मिले। मगर आस्था चैनल में आने वाले कार्यक्रम ‘टॉक विथ ब्रह्माकुमारीज’ एक आध्यात्मिक एवं विचारात्मक दृष्टि से लाभप्रद कार्यक्रम है। तीसरा, जहाँ तक संगति का सवाल है इससे कोई भी मनुष्य अछूता नहीं रह सकता। तो यह बात ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि हमारी संगति अच्छे लोगों से हो। अच्छे लोग वे होते हैं जो हमारी कमियों को देखते हैं, अच्छे लोग वे होते हैं जो हमें भटकने से बचाते हैं। अच्छे लोग वे होते हैं जो हमारी गलतियों पर टिप्पणी करते हैं और उसे सुधारने के तरीके भी बताते हैं। और अगर किसी कारणवश ऐसे लोग हमसे नाराज़ हो जाते हैं तो हमें अपनी अहं के कारण उन्हें अपने जीवन से नहीं जाने देना चाहिए। बल्कि उन्हें अपने जीवन में फिर से लाने के लिए उस समय तक प्रयासरत रहना चाहिए जब तक वे हमारे जीवन में न आ जाएँ।
खूबसूरत बनने के लिए आपको आवश्यकता की ओर ध्यान देना होगा न कि आधिकता की ओर (भौतिक वस्तुओं के संदर्भ में) आज का समाज अधिकता की अंधी दौड़ में भाग रहा है। न्यूनता और अधिकता के पलड़ों में झूलता आज का समाज इंसानियत को ताख पर रख चुका है। यही कारण है कि सेठों के गोदामों में रखा अन्न चूहे खा जाते हैं पर बाहर भूख से बिलख-बिलख कर लोग मर जाते हैं। व्यापारियों के गोदामों में गरम कपड़े भरे पड़े होते हैं फिर भी सर्द रातों में ठंड से ठिठुर-ठिठुर कर लोग काठ बन जाते हैं। ज़रूरत से ज़्यादा किसी भी प्रकार की भौतिक वस्तुएँ किसी न किसी के लिए हानिकारक साबित होती ही होती है। हमें चाहिए कि हम केवल आवश्यकता की ओर ध्यान दें न कि आधिकता की ओर क्योंकि यह किसी भी रूप में बदसूरत ही होता है।
खूबसूरत बनने के लिए शिक्षा का होना भी बहुत ज़रूरी है वेल एडुकटेड माइंड के साथ वेल फॉर्म्ड माइंड का समन्वय नितांत आवश्यक है। क्योंकि अगर आज के समाज पर पैनी दृष्टि से अवलोकन करें तो यह पाया जाएगा कि पढ़े-लिखे अपराधियों के अपराधों की संख्या न पढ़े-लिखे अपराधियों के अपराधों की संख्या में कहीं ज़्यादा और जघन्य हैं। यह शिक्षा का सिलसिला शिक्षा तक सीमित न रहकर विद्या तक आनी चाहिए। तभी सच्चे मायनों में हम अपने-आप को पढ़ा-लिखा कह सकते हैं। शिक्षा और ज्ञान का परम-उद्देश्य परोपकार ही होता है।
भय और भीरु व्यक्ति कभी भी किसी का साथ नहीं दे सकते चाहे साथ सच का देना हो या झूठ का। ऐसे व्यक्तियों को पृथ्वी पर भेजकर ईश्वर को भी पछतावा होता होगा। महान सुकरात ने विष का प्याला पीना सहर्ष स्वीकार किया परंतु असत्य और अनैतिकता का साथ देकर ज़िल्लत भरी ज़िंदगी जीना कतई स्वीकार नहीं किया। दानवीर कर्ण ने सूर्य के द्वारा बता दिए जाने पर भी अपना कवच और कुंडल दान कर दिया। रंगभूमि में अपमान के क्षणों में जिस दुर्योधन ने उसका साथ दिया उसने उसका साथ कभी भी नहीं छोड़ा। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने परम शत्रु अर्जुन को परास्त करने में जब एक सर्प ने कर्ण की मदद करनी चाही तो उसने मदद लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि इतिहास में मैं मलिन नहीं होना चाहता। इसी वजह से आज भी कर्ण का नाम महापुरुषों की कोटि में रखा जाता है।
जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार इस कहानी के भी दो पहलू हैं और इस पर विचार करने वाले लोगों की कोटि भी दो प्रकार को होगी एक जो इसमें अच्छाई देखेंगे और दूसरा जो इनमें खामियाँ निकालेंगे में दोनों का स्वागत करता हूँ। परंतु खामियाँ निकालने वालों से मेरी ये गुजारिश है कि खामियाँ निकालने के साथ-साथ सुझाव भी ज़रूर दें ताकि इस लेखन को और भी सुंदर बनाया जा सकें।
                                                                   अविनाश रंजन गुप्ता

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