Manushyata Maithilisharan Gupt By Avinash Ranjan Gupta
By Avinash Ranjan Gupta
प्रश्न—अभ्यास
1 - निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
3. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए
क्या संदेश दिया है?
4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है
कि हमें गर्व—रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
5. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों
दी है?
7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना
चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
8. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर- दूसरों
के लिए जब जीवन बलिदान किया जाए तथा परहित के लिए जब अपना सम्पूर्ण जीवन लगाकर मृत्यु
को प्राप्त हो जाए ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है जिसमें मरकर भी व्यक्ति अमर हो जाता
है तथा युगों तक जन समुदाय द्वारा याद किया जाता है।
2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसी हो सकती है?
उत्तर - उदार व्यक्ति
अपने तन, मन, धन को दूसरों के लिए कभी
भी किसी भी क्षण त्याग कर सकता है। इतिहास में उसी के महानता की चर्चा होती
है। पुस्तकों में उसी के अमरता के गीत गाए जाते हैं। जो व्यक्ति उदारतापूर्वक मानव
सेवा करता है, धरती भी उसे पाकर स्वयं को धन्य मानती है। उदार एवं महान लोगों के महान
कृत्यों की गाथा युगों तक गूँजती रहती है। ऐसे लोग जो परार्थ में जीवनयापन करते हैं
उन्हें समस्त सृष्टि पूजती है।
3. कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान
व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के
लिए क्या संदेश दिया है।
उत्तर- इन्होंने मानव सेवा के लिए अपना
सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। परमदानी राजा रंतिदेव ने स्वयं क्षुधा से व्याकुल होने
पर भी अपना भरा थाल दान कर दिया था। महर्षि दधीचि ने वृत्रासुर से देवों की रक्षा करने
हेतु वज्र बनाने हेतु अपनी हड्डियों का दान
किया था। गांधार देश के राजा ने परमार्थ के लिए अपना मांस तक दान कर दिया था। दानवीर
कर्ण ने तो अत्यंत प्रसन्नता से अपनी खाल तक दे दी थी। ऐसे वीर पुरुष अपने नश्वर शरीर
की परवाह किए बगैर मानव जाति का कल्याण कर इतिहास के पन्नों में अमर हो गए हैं। ऐसे
ही प्राणी मनुष्य कहलाने योग्य हैं जो मनुष्य के लिए जीता है और मनुष्य के लिए मरता
है।
4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन
व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर- रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त
में,
सनाथ
जान आपको करो न गर्व चित्त में।
5. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या
समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मनुष्य को सदा विवेकशील
व्यवहार करना चाहिए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जीवन व जगत में सदा एक-दूसरे
के काम आना चाहिए। यदि भाई ही भाई की पीड़ा दूर नहीं करेगा तो इससे बुरा कुछ अन्य नहीं
हो सकता। प्रत्येक मनुष्य को एक-दूसरे के काम आना चाहिए। मनुष्य कहलाने का अधिकारी
वही है जो मनुष्य के काम आता है तथा मानवता की राह पर चलकर जीवनयापन करता है।
6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों देते हैं?
उत्तर- हमें जीवन में इच्छित व उचित मार्ग पर प्रसन्नता से कर्मरत होते
हुए आगे बढ़ना चाहिए। राह में जो भी विघ्न या
बाधाएँ आएँ उन्हें अपने साहस व धैर्य से दूर कर देना चाहिए। आपस में भेद-भाव की भावना
कभी भी नहीं पनपनी चाहिए तथा सबको मिलजुल कर रहना चाहिए। जीवन की राह पर बिना भेद-भाव, तर्क-वितर्क, ईर्ष्या-द्वेष के
एक साथ आगे बढ़ना चाहिए। सभी को सावधान यात्री के समान उन्नति के लिए सतत अग्रसर होना
चाहिए। मनुष्य जीवन को सार्थक और सामर्थ्यवान तभी माना जा सकता है जब वह अपनी उन्नति
के साथ-साथ दूसरों के हितार्थ व उत्थान के लिए प्रयत्नशील हों। मनुष्य कहलाने का अधिकारी वही है जो मनुष्य जो लोगों
की सेवा, सहायता और हितार्थ कार्य करता हो।
7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए?इस कविता का आधार पर लिखिए।
उत्तर- कवि का मानना है की मनुष्य को अपना जीवन स्वार्थ का रास्ता छोड़कर
परमार्थ में व्यतीत करना चाहिए। जो व्यक्ति दूसरे की भलाई में जीवन बिताते हैं वे मरकर
भी जीवित रहते हैं तथा इतिहास में अमर हो जाते हैं। कवि का यह भी मानना है की मनुष्य
अन्य प्राणियों की तुलना श्रेष्ठ है तथा उसे अपनी श्रेष्ठता अपने उत्तम कृत्यों से
साबित करनी चाहिए। उसे समझना चाहिए की प्रत्येक प्राणी में प्रकृति का अंश है तथा उसी
दिव्य अंश की सर्वत्र विद्यमानता को समझते हुए मनुष्यता का निर्वाह व परोपकार का जीवन
जीना चाहिए।
8. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से
कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर- ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से
कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को मानवीय गुणों का पालन करते हुए
परहित में जीवनयापन करना चाहिए। उन्नति की राह में एक साथ आगे बढ़ना चाहिए। वह चाहता
है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने व अपनों के हितों से पहले दूसरों के हितों की चिंता करे।
अपने बल, बुद्धि, समृद्धि का प्रयोग सबके
उत्थान के लिए करे और प्राणीमात्र से प्रेम करें।
2 - निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया—प्रवाह में
बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
2. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो
पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कह रहे है कि यदि मानव मानव से सहानुभूति
रखता है तो यही उसके लिए बड़ी भारी पूँजी है। इस बात की पुष्टि के लिए कवि हमें यह भी
बता रहे है कि धरती से अधिक त्याग की प्रेरणा भला हमें कौन दे सकता है? धरती तो प्रेमवश
सदा दूसरों की अधीनता व सेवा करती है। अपनी गोद में सबको शरण देती हैं।
गौतम बुद्ध ने भी जब अपने विचार आम लोगों के समक्ष रखे तो उनकी बातें आम लोगों को बहुत
अच्छी लगीं मगर कुछ वर्ग ऐसा भी था जो उनके विरोध में अपनी दलीलें पेश किया करते थे
परंतु बुद्ध के दया प्रवाह में विरोधी वर्ग भी विनीत बन उनके सामने झुक गया। कवि यह
भी कह रहे हैं कि विशाल हृदय वाला वही व्यक्ति उदार व परोपकारी माना जाता है जो अपने
लिए नहीं अन्य के लिए जीवनयापन करता है।
2. कवि संसार की भौतिकता को अस्थायी दर्शाते हुए कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति
को धन के गर्व से उन्मत्त होकर स्वार्थी व्यवहार करना उपयुक्त नहीं है। मानवीय गुण
स्थायी होते हैं तथा नश्वर वस्तुओं के आकर्षण में मानवता की उपेक्षा बिलकुल भी सही
नहीं है। कभी भी अपनी क्षमताओं, उपलब्धियों तथा
समर्थता का गर्व करके अकार्य न करें। इस संसार का नियंत्रण प्रकृति के हाथ में हैं
वही सबका रक्षक है। उस दयानिधान, दीनबंधु विधाता के होते हुए
भला कोई भी प्राणी असहाय तथा अनाथ कैसे हो सकता है? जो व्यक्ति
अधीर होकर परार्थर भावना का भाव त्याग देता है, वह अत्यंत ही
भाग्यहीन है। वास्तव में मनुष्य कहलाने का अधिकारी वही है जो जो पूरी मानवजाति के विकास
के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दे।
3.
कवि कहते हैं कि
हमें जीवन में इच्छित व उचित मार्ग पर प्रसन्नता से कर्मरत होते हुए आगे बढ़ना चाहिए। राह में जो भी विघ्न या बाधाएँ आएँ उन्हें
अपने साहस व धैर्य से दूर कर देना चाहिए। आपस में भेद-भाव की भावना कभी भी नहीं पनपनी
चाहिए तथा सबको मिलजुल कर रहना चाहिए। जीवन की राह पर बिना भेद-भाव, तर्क-वितर्क, ईर्ष्या-द्वेष के एक साथ आगे बढ़ना चाहिए।
सभी को सावधान यात्री के समान उन्नति के लिए सतत अग्रसर होना चाहिए। मनुष्य जीवन को
सार्थक और सामर्थ्यवान तभी माना जा सकता है जब वह अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों के
हितार्थ व उत्थान के लिए प्रयत्नशील हों। मनुष्य
कहलाने का अधिकारी वही है जो मनुष्य जो लोगों की सेवा, सहायता
और हितार्थ कार्य करता हो।
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