Madhur-Madhur Mere Deepak Jal By Avinash Ranjan Gupta
1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
-
1 - प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक
हैं?
2 - दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
3 - ‘विश्व—शलभ’ दीपक के
साथ क्यों जल जाना चाहता है?
4 - आपकी दृष्टि में ट्टमधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है -
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
5 - कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
6 - कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत
हो रहे हैं?
7 - पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर
रहा है?
8 - कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग—अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक—पुलक, सिहर—सिहर और विहँस—विहँस’ जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
9 - नीचे दी गई काव्य—पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
जलते नभ
में देख असंख्यक,
स्नेहहीन
नित कितने दीपक;
जलमय सागर
का उर जलता,
विघुत ले
घिरता है बादल!
विहँस विहँस
मेरे दीपक जल!
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का
क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है?
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
10 - क्या मीराबाई और ‘आधुनिक मीरा’ महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने—अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
1.
प्रस्तुत कविता में दीपक आत्मा और प्रियतम ईश्वर का प्रतीक है।
2.
दीपक से आग्रह किया जा रहा है कि वह सतत रूप से जलता रहे ताकि प्रियतम के आने
का रास्ता आलोकित हो सके।
3.
विश्व-शलभ दीपक के साथ जलकर उस परम शक्ति अर्थात् सुकर्मों के कर्ताओं में अपना
नाम भी अमर भी अमर करना चाहता है।
4.
सफल बिंब अंकन पर क्योंकि इससे पाठकों के मानस पटल में जो चित्र उभरता है उससे
कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट हो जाता है।
5.
कवयित्री प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती है। यह प्रियतम उसका परमात्मा है।
6.
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि ये निरंतर बिना
किसी तेल के जलते रहते हैं। ये भी कवयित्री की तरह कवयित्री को व्याकुल लगते हैं।
7. पतंगा यानी मनुष्य अपने क्षोभ को व्यक्त करने
के लिए अपना सिर धुनता है और कहता है,“ मैं हाय न जल पाया तुझमें मिल। ”
8.
कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तारह से जलने के लिए इस लिए कहा है कि क्योंकि
जीवन में आने स्थितियाँ आते है और बहुत से लोग स्थितियों के सामने घुटने टेक देते है।
मगर यहाँ कवयित्री ने अपने आत्मदीप को हर स्थिति में जलते रहने के लिए कहा है जब तक
वह अपने प्रियतम को पा न लें।
9.
1. स्नेहहीन दीपक से अभिप्राय यह है - तेलरहित दीपक। यहाँ ये तारे बिना किसी
कामना के प्रतिपल प्रज्ज्वलित होते रहते हैं। ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने कर्मों
का निर्वाह बिना किसी कामना के करना चाहिए।
2. सागर
में अथाह जल है फिर भी वह जल रहा है। संसार में भी अनेक लोग ऐसे हैं जो भौतिक संसाधनों
से घिरे हुए हैं पर फिर भी उन्हें चैन नहीं
मिलता। जबकि सच्चाई तो यह है कि उनकी आत्मा भी परमानतम में लीन होने के लिए व्याकुल
है पर उनकी आँखों में लालच का जो मोटा पर्दा जड़ा हुआ है उसकी वजह से वे वास्तस्थिति
से अवगता नहीं हो पा रहे हैं।
3. बादल
घना होने पर बिजली चमकती है उसी प्रकार जब जीवन में मुसीबतें आती हैं तो पीड़ा के कारण
हृदय से चित्कार निकलती है।
4. कवयित्री
चाहती हैं कि उनका दीपक रूपी मन किसी भी बढ़ा से हताश व निराश न हो तथा वह हँसकर प्रतीक्षारत
जलता रहे।
10.
मीरा के समान महादेवी के कविताओं में भी ईश्वर से मिलन की गहरी इच्छा और पीड़ा
झलकती है। उन्हें इसी रहस्यवादिता के कारण आधुनिक मीरा कहा गया है।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए
-
1 - दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
2 - युग—युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
3 - मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन!
क.
कवयित्री कहती हैं कि दीपक स्वयं के
कण-कण को प्रज्ज्वलित कर प्रकाश का सागर फैला दे। स्वयं को समाप्त कर भी प्रियतम का
राह आलोकित करे। इन पंक्तियों में प्रतीकात्मकात्मकता, चित्रात्मकता, भावप्रवणता है। प्रभावशाली व आलंकारिक भाषा स्वारा
मार्मिक बिंब को उभारा गया है।
ख.
दीपक जलकर हर पल व युगों तक इशवर रूपी प्रियतम के आने का मार्ग आलोकित करे अर्थात्
जन्म-जन्मांतर तक इष्ट प्राप्ति का प्रयास बना रहे। ‘प्रति’ उपसर्ग
का सुंदर प्रयोग है। ‘प्र’ की आवृत्ति से अनुप्रास की सुंदर छटा व्याप्त हुई है। गेयात्मक, प्रतीकात्मक व भाव बहुलता के कर्ण अत्यंत सारस और प्रभावशाली
चित्रण है।
ग.
तन को मोम-सा कोमल व आकार बदलने वाला बनने की तथा प्रियतम के लिए अपना अस्तित्व
मिटाने तक की प्रेरणा दी है।‘म’ की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार उत्पन्न हुआ है। भाषा सरल, सरस, भावयुक्त, प्रभावशाली तथा गीतात्मक है।
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