Keechad Ka Kavya By Avinash Ranjan Gupta
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मौखिक
निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर एक—दो पंक्तियों
में दीजिए-
1 - रंग की शोभा
ने क्या कर दिया?
2 - बादल किसकी तरह हो गए थे?
3 - लोग किन—किन चीज़ों का वर्णन करते हैं?
4 - कीचड़ से क्या होता है?
5 - कीचड़ जैसा
रंग कौन लोग पसंद करते हैं?
6 - नदी के किनारे कीचड़ कब सुंदर दिखता है?
7 - कीचड़ कहाँ
सुंदर लगता है?
8 - ‘पंक’ और ‘पंकज’ शब्द में क्या अंतर है?
1. रंग की शोभा ने उत्तर दिशा में जमकर थोड़ी देर के लिए लालिमा फैला दी।
2. जब लालिमा की जगह बादलों ने ले ली तब बादल श्वेत कपास की तरह हो गए।
3. लोग आकाश, पृथ्वी, जलाशयों इत्यादि के सौंदर्य का वर्णन करते हैं।
4. कीचड़ से शरीर गंदा हो जाता है और हमारे कपड़े भी।
5. कीचड़ जैसा रंग कलाभिज्ञ, फोटोग्राफर आदि लोग पसंद करते हैं ।
6. नदी के किनारे का कीचड़ जब धूप में सुखकर टुकड़े में बदल जाता है तब वह सुंदर
दिखता है।
7. नदी के किनारे मीलों तक फैला हुआ समतल और चिकना कीचड़ उस समय सुंदर लगता
है जब इस पर बगुले, गाय, बैल, पाड़े, भेड़े तथा बकरियाँ अपने
पदचिह्न छोड़ते हैं ।
8.
‘पंक’ शब्द कीचड़ के लिए प्रयोग होता है
जबकि ‘पंकज’ शब्द का अर्थ है पंक (कीचड़)
में जन्म लेने वाला अर्थात कमल।
लिखित
(क) निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1 - कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति क्यों नहीं
होती?
2 - ज़मीन ठोस होने पर उस पर किनके
पदचिह्न अंकित होते हैं?
3 - मनुष्य को क्या भान होता जिससे वह कीचड़ का
तिरस्कार न करता?
4 - पहाड़ लुप्त कर देनेवाले कीचड़ की क्या विशेषता है?
1.
कीचड़ के प्रति किसी को सहानुभूति
नहीं होती क्योंकि लोग केवल ऊपरी शोभा को ही देखते हैं। वे स्थिरता के साथ विचार नहीं
करते और यह मान बैठते हैं कि कीचड़ गंदा है
इससे शरीर और कपड़े गंदे होते हैं। कोई भी कीचड़ की उपकारिता को नहीं देखता।
2.
ज़मीन ठोस होने पर उस पर बगुले, गाय, बैल, पाड़े, भेड़े तथा बकरियों के
पदचिह्न अंकित होते हैं । ये पदचिह्न बहुत ही सुंदर प्रतीत होते हैं।
3. मनुष्य
जिस अन्न का खाकर जीवित रहता है यह अन्न कीचड़ में से ही पैदा होता है इसका जाग्रत भान
यदि हर एक मनुष्य को होता तो वह कभी कीचड़ का तिरस्कार न करता।
4.
पहाड़ लुप्त कर देने
वाली कीचड़ की यह विशेषता है कि गंगा नदी या सिंधु नदी के किनारे या फिर खंभात में मही नदी के मुख से आगे जहाँ तक नज़र पहुँचे वहाँ तक सर्वत्र
सनातन कीचड़ ही देखने को मिलेगा।
लिखित
(ख) निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - कीचड़ का रंग किन—किन
लोगों को खुश करता है?
2 - कीचड़ सूखकर किस प्रकार के दृश्य
उपस्थित करता है?
3 - सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य किन स्थानों पर
दिखाई देता है?
4 - कवियों की धारणा को लेखक ने युक्तिशून्य
क्यों कहा है?
1.
कीचड़ का रंग बहुत सुंदर है। आमलोग पुस्तकों
के गत्तों पर, घरों की
दीवारों पर अथवा शरीर पर के कीमती कपड़ों के लिए हम सब कीचड़ के जैसे रंग पसंद करते हैं।
कलाभिज्ञ लोगों को भट्टी में पकाए हुए मिट्टी
के बरतनों के लिए यही रंग बहुत पसंद है। फ़ोटोग्राफर फोटो लेते समय भी यदि उसमें कीचड़
का, एकाध ठीकरे का रंग आ जाए तो उसे वार्मटोन कहकर विज्ञ लोग
खुश—खुश हो जाते हैं।
2.
नदी के किनारे जब कीचड़
सूखकर उसके टुकड़े हो जाते हैं, तब वे बहुत सुंदर
दिखते हैं। ज़्यादा गरमी से जब उन्हीं टुकड़ों में दरारें पड़ती हैं और वे टेढ़े हो जाते
हैं, तब सुखाए हुए खोपरे जैसे दीख पड़ते हैं। यह दृश्य बहुत खूबसूरत
होता है। इस कीचड़ का पृष्ठ भाग कुछ सूख जाने पर उस पर बगुले और अन्य छोटे—बड़े पक्षी चलते हैं, तब तीन नाखून आगे और अँगूठा पीछे
ऐसे उनके पदचिह्न, मध्य एशिया के रास्ते की तरह दूर—दूर तक अंकित हो जाते हैं।
3.
सूखे हुए कीचड़ का सौंदर्य नदी के किनारे दिखाई देता है। जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर
ठोस हो जाए, तब गाय,
बैल, पाड़े, भैंस, भेड़, बकरे इत्यादि के पदचिह्न उस पर अंकित होते हैं
उसकी शोभा और ही है और फिर जब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़ को रौंदकर आपस में
लड़ते हैं तब नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय
युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो -ऐसा भास होता
है।
4. कवियों की धारणा को लेखक ने युक्तिशून्य कहा है क्योंकि अधिकतर कवि आंतरिक
सुंदरता को महत्त्व न देकर बाहरी सुंदरता को
महत्त्व देते हैं। ये कविवृंद कीचड़ में उगने वाले कमल से तो प्रेम करते हैं मगर कीचड़
का तिरस्कार करते हैं। ये केवल सौंदर्य को महत्त्व देते हैं उन्हें उत्पन्न करने वाले
कारणों को नहीं।
लिखित
(ग) निम्नलिखित
के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों
से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा हो ऐसा भास
होता है।
2 - “आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती को
कंठ में बाँधकर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते!” कम—से—कम इस विषय पर कवियों के
साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम!
1. नदी
के किनारे जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर ठोस हो जाता है तब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़
को रौंदकर आपस में लड़ते हैं। वे सींग से सींग भिड़ाकर लड़ते हैं जिससे कीचड़ खुद जाता है। तब नदी किनारे
अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास
ही इस कर्दम लेख में लिखा हो -ऐसा प्रतीत होता है।
2.
कवि पंक से उत्पन्न
कमल की तो प्रशंसा करते हैं किन्तु पंक को महत्त्व नहीं देते। इन कवियों के मतानुसार एक अच्छी चीज़ को स्वीकार
करने के लिए उससे जुड़ी अन्य चीजों को स्वीकार करना आवश्यक नहीं। वासुदेव कृष्ण को कहा
जाता है लोग उनकी पूजा करते हैं इसका अर्थ यह नहीं कि वे कृष्ण के पिता वसुदेव की भी
पूजा करें। इसी प्रकार वे हीरे को मूल्यवान
मानते हैं परंतु उसके जानक पत्थर और कोयले को नहीं पूछते। मोती को गले में डालते हैं
परंतु मोती से जुड़ी सीप की कोई भूमिका उन्हें नहीं दिखती। कवियों के अपने तर्क होते
हैं। उनसे इस विषय पर बहस करना व्यर्थ हैं। उन्हें जो अच्छा लगे वही ठीक है। ये अपने
आगे किसी की नहीं सुनते।
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