Kar Chale Hum Fida Kavita Ka shabdarthsahit Vyakhya By Avinash Ranjan Gupta

                     कर चले हम फ़िदा
                                                कैफ़ी आज़मी   
शब्दार्थ
1.               फ़िदा न्योछावर
2.               हवाले सौंपना
3.               रुत मौसम
4.               हुस्न सुंदरता
5.               रुस्वा बदनाम
6.               खूँ खून
7.               काफ़िलेयात्रियों का समूह
8.               फ़तह जीत
9.               जश्न खुशी मनाना
10.          नब्ज़ नाड़ी
11.          कुर्बानियाँ बलिदान
12.          ज़मीं ज़मीन
13.          लकीर रेखा
14.          फ़िदा = न्योछावर 
15.          हवाले  = सौंप देना 
16.          नब्ज़ = नाड़ी 
17.          गम  = दुख
18.          बाँकपन  = जवानी का जोश 
19.          वतन  = मुल्क,  देश 
20.          रुत  = मौसम
21.          हुस्न  = सुंदरता 
22.          इश्क  = प्रेम 
23.          रुस्वा = बदनाम 
24.          खूँ = खून
25.          राह  = रास्ता 
26.          कुर्बानी  = बलिदान 
27.          वीरान  – सूनी
28.          काफ़िला  = यात्रियों का दल
29.          फतह  = जीत 
30.          जश्न  = खुशी मनाना 
31.          कफ़न  = याद रखे जाने वाले किए गए काम
32.          लकीर = रेखा
33.          दामन  = आँचल 
34.          असाध्य  = लाइलाज 
35.          मुशायरा = कविता वाचन
36.          प्रागतिशील – Progressive
                                               
कर चले हम फ़िदा
कर चले हम फ़िदा जानोतन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरतेमरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
            प्रस्तुत पंक्तियों में देश के लिए अपना घर छोड़कर युद्ध के लिए गए सैनिकों के भावनाओं का वर्णन हैं। सैनिक कहते हैं की हे देशवासियों! हमने तो देश के लिए अपना तन, मन और जीवन न्योछावर कर दिया है अब यह देश तुम्हारे हवाले है। दुश्मनों से युद्ध करते समय हम घायल हो गए थे। हमारी सांसें रुकने कगी थीं  तथा नाड़ियों में रक्त भी जमने लगा था। फिर भी हमने अपने कदमों को रुकने नहीं दिया। हमारे मन में केवल एक ही प्रतिज्ञा थी की चाहे हमारे सिर ही क्यों न कट जाए, पर हम देश का सिर नहीं झुकने देंगे। हिमालय जो देश की शान है उस पर कभी भी आँच नहीं आने देंगे। मरते दम तक हमारा जोश बना रहा। अब हम शहीद होने जा रहे हैं, पर हमें पूरा यकीन है कि तुम देश कि आन, बान और शान कि रक्षा करोगे।

कर चले हम फ़िदा
ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो

            प्रस्तुत पंक्तियों में देश के लिए युद्ध पर गए सैनिक कहते हैं कि इस संसार में जीवित रहने के अनेक कारण हैं लेकिन देश के लिए मर मिटने का गौरव हर रोज़ नहीं मिलता। सैनिकों का मानना है कि जो जवानी खून में नहीं नहाती अर्थात देश के लिए बलिदान करना नहीं जानती, वह जवानी व्यर्थ है। ऐसी जवानी सौंदर्य और प्रेम दोनों को बदनाम करती है। आज धरती दुल्हन बनी है ओपुर इस दुल्हन कि रक्षा करने के लिए हम अपने प्राण देने के लिए भी तैयार हैं केवल इसी उम्मीद के साथ के हमारे बाद तुम इस धरती की रक्षा करने का संकल्प उठा लो। 

कर चले हम फ़िदा
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

            प्रस्तुत पंक्तियों में देश के लिए युद्ध पर गए सैनिक कहते हैं कि अब देश के लिए बलिदान होने कि घड़ी आ गई है। मगर हमारे बाद भी कुर्बानियों का सिलसिला बंद न होने पाए। युद्ध में जीतने भी वीर शहीद हो जाएँ अन्य आकार उनका स्थान ले लें। मृत्यु के इस जश्न के बाद ही विजय का उत्सव आता है। विजय बलिदान माँगती है। यह युद्ध कि घड़ी है जिसमें ज़िंदगी मौत को गले लगा रही है। तुम भी अपने सिर पर कफन बाँधकर देश के लिए शहीद होने को तैयार हो जाओ क्योंकि अब देश कि बागडोर तुम्हारे हाथों में हैं।
कर चले हम फ़िदा
खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

            प्रस्तुत पंक्तियों में देश के लिए युद्ध पर गए सैनिक कहते हैं कि हम देश के लिए मरने को तैयार हैं। यदि शत्रु हमारी पवित्र मातृभूमि पर कदम रखने का दुस्साहस करे तो अपने रक्त से जमीन पर रेखा खींच दो अर्थात अपना जीवन बलिदान कर कर भी शत्रु को न आने दो। हमारी सीता-सी पावन धरती के लिए तुम्हीं राम व लक्ष्मण हो। इस तरफ़ रावण रूपी किसी भी शत्रु को नहीं आने देना है। मातृभूमि कि रक्षा के लिए हम अपना सर्वस्व लुटा देने को तैयार हैं और हमारे बाद इस देश की सुरक्षा कि ज़िम्मेदारी तुम्हारे हाथों में होगी।

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