Hindi Prem By Avinash Ranjan Gupta
मेरा हिंदी
प्रेम
भाषाओं के उद्यान में हिंदी ऐसा पुष्प है जो माधुर्य,
सौंदर्य और सुगंध से भरपूर है। माधुर्य के कारण हिंदी मिष्ट है। सौंदर्य के कारण हिंदी शिष्ट है। सुगंध के कारण हिंदी विशिष्ट है। माधुर्य,
हिंदी का शिवम्
है। सौंदर्य,
हिंदी का सुंदरम्
है। सुगंध,हिंदी का सत्यम्
है। जिस भाषा में केवल गुणों के ही खान हों
उस भाषा से प्रेम हो जाना तो लाजिमी है। इस भाषा से प्रेम करने वाला मैं अकेला
नहीं बल्कि अनगिनत लोग हैं जो जाति,
धर्म, देश,
संप्रदाय आदि की सीमा को लाँघकर हिंदी के सान्निध्य में आ चुके हैं।
भारत बहुभाषी,
बहुधर्मी और धर्म निरपेक्ष देश है। भाषा के नाम पर भारत के अब तक 29 टुकड़े हो चुके
हैं जिसे राज्य के नाम से जाना जाता है और विभिन राज्यों को ‘क’, ‘ख’
और ‘ग’
श्रेणी में विभाजित किया गया है बावजूद इसके हमें ‘ख’
और ‘ग’
श्रेणी में आने वाले राज्यों जैसे- ओडिशा,
दक्षिण भारत के राज्य पूर्वोत्तर में सात राज्य जो सात बहनों के नाम से जाने जाते
हैं वहाँ भी हिंदी का विकास द्रुत गति से हो रहा है। इसका एकमात्र कारण है हिंदी
की सरलता, सरसता और सुगमता।ये हिंदी
के प्रति विशाल जन समूह का प्रेम ही है।
हिंदी भाषा की प्रशंसा में संस्कृत का यह एक श्लोक है – यथा
उच्चरते, तथा लिख्यते, यथा लिख्यते,
तथैव पठ्यते, अर्थात् हिंदी जैसे बोली
जाती है वैसी ही लिखी जाती है और जैसी लिखी होती है वैसी ही पढ़ी जाती है। हिंदी
भाषा की लिपि भाषा विज्ञान की दृष्टि से पूर्णत: सटीक है। इस भाषा का शब्द भंडार
इतना समृद्ध है कि भारतीय संस्कृति के विभिन्न घटकों को जैसे- पर्व-त्योहार,
पाक-व्यंजन और रिश्तों-नातों को परिभाषित करने की इसमें अद्वितीय दक्षता है। इस
भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भारतीय संविधान की धारा 343 से 351 तक अनेक प्रावधान
वर्णित भी हैं।
महात्मा गाँधी,
सुबासचन्द्र बोस, भगत सिंह,
सत्यनारायण मोटुरी जैसे स्वतंत्रता
सैनानियों हिंदी भाषा को ही अपने क्रांतिकारी गतिविधियों और आंदोलनों की भाषा के रूप
में स्वीकार किया था। ये उनका हिंदी के प्रति प्रेम ही था। महात्मा गाँधी ने
दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना कर अपने हिंदी प्रेम का ठोस प्रमाण
ही दे डाला। यहाँ तक कि जर्मनी के मैक्समूलर,
हंगरी की मारिया नैज्येशी और बैल्जियम के फादर कामिल बूलके ने अपना जीवन ही हिंदी
को समर्पित कर दिया।
हिंदी भाषा में अपनेपन की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है तभी तो भारत के इतिहास
में आज तक जितने भी आक्रांताओं एवं शासकों ने आर्यावर्त पावन भूमि पर कदम रखा हिंदी ने उन सभी की
संस्कृति को उनके भाषा के साथ अपनाने में कभी भी कोई भी कृपणता नहीं दिखाई। आज हिंदी
शब्दकोश में हमें पठान, बहादुर,
तकदीर, हुजूर,
कप्तान, कारतूस,
सिगरेट, रिक्शा,
चाय, स्कूल जैसे अनेक शब्द मिलते हैं वे क्रमश:
पश्तो, तुर्की,
अरबी, फारसी,
पुर्तगाली, फ्रांसीसी,
स्पेनिश, जापानी,
चीनी और अग्रेजी शब्द के उदाहरण हैं। आश्चर्य करने वाली बात यह है कि संस्कृत भाषा
और उसकी बड़ी बेटी हिंदी भाषा में रचित साहित्य का लालित्य और प्रभुत्व वैश्विक
स्तर पर इतना व्यापक है कि विश्वप्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में आपको निर्वाण,
गुरु, अवतार,
रोटी, स्वदेशी,
शैम्पू, चटनी,
पंच, मोक्ष,
बंगला ऐसे शब्द मूल रूप या थोड़े परिवर्तित रूप में मिलेंगे जो इस बात का सशक्त
प्रमाण है कि हिंदी भाषा कितनी समृद्ध है।
देश की सरहदें इन्सानों को भले ही रोक दें पर भाषा को रोक
पाना तो संभव ही नहीं है इसलिए तो विश्व के अनेक देश जैसे- नेपाल,
मॉरीशस, फिजी,
सूरीनाम, युगांडा,
ट्रिनीडाड, टोबेगो,
कनाडा, केरेबियन देश और दक्षिण अफ्रीका में हिंदी
को वहाँ की आम भाषा होने का दर्जा प्राप्त है। विकसित देशों की पंक्ति में अग्रणी
अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में हिंदी भाषा का पठन-पाठन प्राथमिक स्तर पर
अनिवार्य और उच्च प्राथमिक स्तरों पर ऐच्छिक विषय के रूप निर्धारित किया जा चुका
है। विश्व के लगभग 370 से भी ज़्यादा विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा का पठन-पाठन
स्वतंत्र विषय के रूप में किया जा रहा है जो बात का प्रमाण है कि हिंदी के चाहने
वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा
रही है।
भाषा संस्कृति की संवाहिका होती है और हिंदी भाषा भारतीय
संस्कृति की प्रतिष्ठा का पोषण करते हुए वर्तमान युग में आधुनिकता के साथ कदम से
कदम बढ़ा कर अग्रगामी है। हिंदी सिनेमा, हिंदी
धारावाहिक, हिंदी समाचारपत्र एवं
पत्रिकाएँ, कालजयी साहित्य रचनाओं पर
बन रहे वृत्तचित्र और फिल्मों ने हिंदी भाषा को बुलंदियों के नए शिखर तक पहुँचा
दिया है। यूनिकोड के माध्यम से हिंदी टंकण की सुविधा ने इन्टरनेट की दुनिया में भी
हिंदी को एक नई अस्मिता प्रदान की है।
अविनाश रंजन गुप्ता
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