Hamid Khan By Avinash Ranjan Gupta
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बोध—प्रश्न
1. लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ?
2. ‘काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।’ - हामिद ने ऐसा क्यों कहा?
3. हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था?
4. हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया?
5. मालाबार में हिंदू—मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।
6. तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन—सा विचार कौंधा? इससे लेखक के स्वभाव
की किस विशेषता का परिचय मिलता है?
1.
लेखक भारत में रहते थे। वे तक्षशिला के पौराणिक खंडहर
देखने गए थे। एक ओर कड़कड़ाती धूप, दूसरी ओर भूख और प्यास के मारे लेखक का बुरा हाल हो रहा
था, कुछ न मिलने पर रेलवे स्टेशन से करीब पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल
पड़े और वहीं उन्हें एक होटल दिखाई दिया। यह हामिद खाँ का होटल था। लेखक का परिचय हामिद
खाँ से ऐसी परिस्थितियों में हुआ। यहीं लेखक
ने चपाती और सालन खाई। दोनों एक दूसरे से काफी प्रभावित हुए। मुस्लिम होते हुए भी हामिद
खाँ ने हिंदू लेखक की मेहमानवाजी में कोई कसर न छोड़ी।
2.
लेखक ने जब हामिद खाँ को भारत में हिंदू-मुसलमानों के सौहार्द
भरे संबंध के बारे में बताया तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। लेखक ने यह कह कि अगर हमारे यहाँ बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके
मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। लेखक ने
उसे गर्व के साथ बताया, “हमारे यहाँ हिंदू—मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं है। सब मिल—जुलकर रहते हैं! भारत में मुसलमानों
ने जिस पहली मस्ज़िद का निर्माण किया था, वह हमारे ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है। हमारे यहाँ हिंदू—मुसलमानों के बीच दंगे नहीं के बराबर
होते हैं। इन सब बातों को सुनकर हामिद खाँ
ने कहा ‘काश मैं आपके
मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।
3.
लेखक ने भारत में हिंदू-मुसलमानों के मेल-मिलाप की बातें
हामिद खाँ को बताई। लेखक ने यह कह कि अगर हमारे
यहाँ बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में
जाया करते हैं। लेखक ने उसे गर्व के साथ बताया, “हमारे यहाँ हिंदू—मुसलमान में कोई फ़र्क
नहीं है। सब मिल—जुलकर रहते हैं! भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्ज़िद का निर्माण
किया था, वह हमारे ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है। हमारे यहाँ हिंदू—मुसलमानों के बीच दंगे
नहीं के बराबर होते हैं। हामिद खाँ को लेखक की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था पाकिस्तान
में कोई भी हिंदू मुसलमानी होटल में खाने की सोच भी नहीं सकता, इसका भी एक सशक्त कारण
यह था कि पाकिस्तानी हिंदुओं की नज़र में पाकिस्तानी
मुसलमान आततायियों की औलादें मनी मानी हैं।
दोनों धर्म के लोग एक दूसरे से जितनी हो सके उतनी दूरियाँ बनाए रखते हैं।
4.
हामिद खाँ पाकिस्तान का रहने वाला एक भला आदमी था। मानवीय
भावनाओं का उसके जीवन में बहुत महत्त्व था। खाने के बाद लेखक हामिद खाँ को पैसे देना
चाहता था परंतु उसने पैसे लेने से मना कर दिया। एक रुपए के नोट को वापस करते हुए हामिद
खाँ ने कहा, “भाई जान, मैंने खाने के पैसे आपसे ले लिए हैं, मगर मैं चाहता हूँ कि
यह आप ही के हाथों में रहे। आप जब पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे
से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें।” हामिद खाँ लेखक की पाकदिली
से काफी प्रभावित हुए था इसलिए उसने लेखक से खाने का पैसा लेने से इंकार किया।
5.
मालाबार में हिंदू-मुसलमानों में परस्पर भेद-भाव नहीं
था। ये दोनों संप्रदाय धर्म के नाम पर लड़ते नहीं थे। यहाँ हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के
तीज-त्योहार में सम्मिलित होते थे। वहाँ तो अगर बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो
लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं यहाँ पर हिंदू इलाकों में मस्जिद भी देखने
को मिलते हैं। भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्ज़िद का निर्माण किया था,वह मलाबार के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है।
6.
तक्षशिला में धर्म के नाम पर दंगे-फसाद होते रहते हैं।
इन झगड़ों की खबरें समाचार पत्र में निकलती रहती हैं। ऐसी खबरें लेखक को उस समय तक ज़्यादा
प्रभावित नहीं करती थी जब तक वह तक्षशिला में हामिद खाँ से नहीं मिला था। मगर आज ‘तक्षशिला (पाकिस्तान)
में आगजनी’ - समाचार पत्र की यह खबर पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ की याद
आई। लेखक ने भगवान से विनती की, “हे भगवान! मेरे हामिद
खाँ की दुकान को इस आगजनी से बचा लेना।” लेखक के इस कथन से उनकी
मानवीय भावना का पता चलता है। उनकी दृष्टि में धर्म की प्रधानता न होकर मानवता ही प्रधान
है। लेखक के मन में हामिद खाँ के लिए भरपूर हमदर्दी व सहानुभूति थी।
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