Hame Yuddh Karna Hai Avinash Ranjan Gupta
हमें युद्ध की आवश्यकता है ।
निबंध का यह शीर्षक पढ़कर पाठकों ने लेखक के
विषय में यही विचारधारा बना ली होगी कि लेखक हिंसा का परम उपासक होगा मगर लेख के
अंत होते - होते तक पाठकों कि ये विचारधारा पूर्णत: बदल चुकी होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अपने स्कूली जीवन में मैंने एक कहानी
पढ़ी थी ‘ALEXENDER
THE GREAT’ जिसका
हिन्दी रूपान्तरण था ‘महान सिकंदर’ । जिस तरह आप लोगों ने मेरे बारे में पहले से ही कुछ
विचारधारा बना ली है, ठीक उसी तरह मैंने भी यह विचारधारा बना ली
थी कि जरूर सिकंदर ने अपने जीवन काल में ऐसा कुछ किया होगा जिससे समस्त मानव जाति
का बहुत कल्याण हुआ होगा मगर मेरी विचारधारा जो मैंने ‘महान सिकंदर’ कहानी के आधार
पर सिकंदर की बना रखी थी पाठ के अंत
होते-होते तक पूरी तरह धूमिल हो चुकी थी। पाठ पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि वह
विश्व विजेता था। उसने बहुत सारे देशों और
राज्यों पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया था। अब मेरे मन में ये सवाल जाग रहे
थे कि सिकंदर कैसे महान योद्धा था या उसे महान बनानेवाले लेखकगण कैसी सोच रखते हैं
? जो उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति के लिए महान
विशेषण का प्रयोग किया जो मानव जाति को नष्ट करने में अपना सारा जीवन लगा दिया
। उसने अपने पूरे जीवन काल में न जाने
कितनी माताओं की गोद सूनी कर दी, कितनी स्त्रियों का
सुहाग उजाड़ दिया, कितने बच्चों को यतीम कर दिया और कितने ही
बूढ़े माँ-बाप का सहारा छिन लिया। ऐसे क्रूर व्यक्ति के लिए महान विशेषण का प्रयोग
करना मानव जाति को शर्मशार करने के बराबर है । मैं सिकंदर के गुरु (ARISTOTAL) अरस्तू पर भी टीका करना चाहूँगा कि इतिहास
के पन्नों में महान समझे जाने वाले गुरु अरस्तू कैसे महान गुरु थे जिसने अपने शिष्य को ऐसी रक्तपात करने कि
शिक्षा दी, जिसने अपने शिष्य को मानव जाति का विरोधी और
शासक बनने की लालशा में हत्यारा बना डाला।
मेरे
प्रिय पाठकों आज जरूरत है युद्ध की एक ऐसे युद्ध की जो हमें खुद से करनी है। आज
हमलोग वाणी को ही बाण बनाकर दूसरों के हृदय को चोटिल करते हैं, तिरछे और तीखे नेत्रों से घृणा के भले दूसरों पर बरसा कर
उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं, उनके पीठ पीछे उनकी
कटुआलोचना के हथगोले उन पर फेंकते हैं,
सामने वाले को क्षुद्र और अपने को बड़ा मानकर उनपर गंवारपन का बम बरसाते हैं। अपनी
भौहें सिकोड़कर और अपने माथे पर शिकन लाकर दूसरों से बातें करते समय उसे नीचा
दिखाते हैं मानो किसीको आहत करने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाकर प्रत्यंचा खींच रहे हों।
दूसरे के भाई-बंधु होने का दिखावा करके उनके अहित का षड्यंत्र करके अभिमन्यु को
फिर से मौत के मुँह में धकेल देते हैं। आज हमें अपने ही इन दुर्गुणों से युद्ध
करके इन पर विजय प्राप्त करनी है। किसी ने कहा था, “ MAN KNOWS MUCH GOOD THINGS, BUT HE DOES VERY VERY LESS.” इसका हिन्दी अनुवाद है, “किसी व्यक्ति को बहुत सारी अच्छी बातें पता होती हैं मगर
उनका अनुपालन वह अति कम करता है।“ हमें यह भली-भांति पता होता है कि हमें सदा सच
बोलना चाहिए, सदा सच का साथ देना चाहिए, किसी से भी
ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश, शत्रुता नहीं रखनी
चाहिए, फिर भी आज की दुनिया में इसी की भरमार नज़र
आती है इसलिए हमें युद्ध की आवश्यकता है और इस युद्ध का शंखनाद हमें आज, अभी और इसी क्षण से करना है। तभी जाकर मरणशेज पर हमें अपने
जीवन भर किए गए कार्यों पर पछतावा न होकर प्रसन्नता होगी और हँसते-हँसते इस दुनिया
से रुखसत हों सकेंगे। ये मेरी सोच है और मैंने इस पर काम करना शुरू कर दिया है और
अब मैं नहीं बदलने वाला बदलेंगे तो लोग बदलेगी तो दुनिया।
अविनाश रंजन गुप्ता
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