Ek Phool Ki Chhah Shiyaramsharan Gupt By Avinash Ranjan Gupta
EK PHOOL KI CHAH KAVITA KA BHASHA KARYA click here
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1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
(क) कविता की उन पंक्तियों को लिखिए, जिनसे निम्नलिखित अर्थ का बोध होता है -
(i) सुखिया
के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
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(ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
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(iii) पुजारी
से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मनःस्थिति।
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(iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
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(ख) बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
(ग) सुखिया के पिता पर कौन—सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
(घ) जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस
रूप में पाया?
(ङ) इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
(च) इस कविता में से कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों को छाँटकर लिखिए -
उदाहरणः अंधकार की छाया
(i) -
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- (ii) - -
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(iii) -
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- (iv) - -
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(v) -
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क.i. नहीं खेलना रुकता उसका
नहीं ठहरती
वह पल—भर।
मेरा हृदय
काँप उठता था,
बाहर गई
निहार उसे
यही मनाता
था कि बचा लूँ
ii. ऊँचे शैल —शिखर के
ऊपर
मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण—कलश सरसिज विहसित थे
पाकर समुदित रवि—कर—जाल।
iii. भूल गया उसका लेना झट,
परम लाभ—सा पाकर मैं।
सोचा, - बेटी को माँ के ये
पुण्य—पुष्प दूँ जाकर मैं।
iv बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल—सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी,
तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी
तुझको दे न सका मैं हा!
ख. सुखिया को महामारी ने अपनी चपेट में ले लिया था। उसकी
तबीयत बहुत खराब हो चुकी थी। उसके शरीर के अंग कमजोर होकर शिथिल पड़ गए थे । वह बेहोशी
की हालत में चली गई थी। उसी अवस्था में वह अपने पिता से बोली, “मुझे माता के चरणों का एक फूल लाकर
दे दो।” यही उसकी इच्छा थी।
ग. सुखिया की इच्छा पूरी करने के लिए वे माता के मंदिर में चले
गए। सुखिया के पिता अछूत वर्ग के व्यक्ति थे। मंदिर जैसे पवित्र स्थानों में उनका जाना
निषेध था। उस समय अछूतों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। अछूत होते हुए
भी उन्होंने माता के चरणों का एक फूल प्राप्त कर लिया था परंतु इसी बीच किसी ने उन्हें
पहचान लिया। उनके इस कृत्य से लोगों ने यह घोषित किया कि मंदिर और देवी माता की पवित्रता
नष्ट हो गई है। यह एक प्रकार से देवी माँ का घोर अपमान है। यही आरोप लगाकर न्यायालय
में उन्हें सात दिन के कारावास की सज़ा दी गई।
घ. जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने सुखिया
को घर में नहीं पाया। लोगों से जानकारी मिलते ही वे शमशान की ओर भागते हुए गए पर वहाँ
उनके सगे-संबंधी पहले ही उस मृतक सुखिया का दाह-संस्कार कर चुके थे। वहाँ सुखिया की
चिता बुझी पड़ी थी। उसकी फ़ूल-सी बच्ची राख के ढेर में परिवर्तित हो चुकी थी।
ङ. इस कविता के
कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों की सूची इस प्रकार है –
i-
कितना बड़ा तिमिर आया।
ii. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची।
iii. स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा ।
iv. हुई राख़ की थी ढेरी।
iii. झुलसी-सी जाती थी आँखें।
2 -निम्नलिखित
पंक्तियों का आशय स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ—सौंदर्य बताइए
-
(क)
अविश्रांत बरसा करके भी
आँखें
तनिक नहीं रीतीं
(ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती
धधक उठी मेरी
(ग)
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी
अटल
शांति—सी धारण कर
(घ) पापी ने मंदिर में घुसकर
किया
अनर्थ बड़ा भारी
1.
कविता के इन पंक्तियों का आशय
यह है कि निरंतर सात दिन तक अपनी बीमार पुत्री से दूर रहने के कारण सुखिया के पिता
की आँखों से लगातार आँसुओं की धारा बहती रही परंतु फिर भी उनकी आँसुओं की धारा समाप्त
नहीं हुई। अर्थात अपनी बेटी का स्मरण ही उन्हें असीम दुख दे रहा था।
अर्थ-सौंदर्य- कवि ने इस पंक्ति में निरंतर
रोते रहने की दशा को अभिव्यक्त किया है। पृथ्वी की प्यास बुझाने के लिए बादल भी ज़्यादा-से
ज़्यादा एक दो दिन ही बरस सकता है परंतु अपनी बेटी की याद में सात दिनों तक लगातार रोना
इस बात को चरितार्थ कर देता है कि सुखिया के
पिता के लिए सुखिया ही उसकी एकमात्र संपत्ति थी।
2.
प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि सात दिनों के बाद कारावास से छूटने के पश्चात
जब उन्हें यह ज्ञात होता है कि उनके सगे-संबंधी उनकी मृत पुत्री का दाह-संस्कार कर
चुके हैं और जब वे अपनी बेटी की चिता के पास
पहुँचते हैं तो उनकी फूल-सी कोमल बच्ची राख के ढेर में परिवर्तित हो चुकी होती है।
ऐसा दृश्य देखकर उनके हृदय में ज्वाला भड़कने लगती है। वे समाज के ऐसे नियमों से त्रस्त
हो जाते हैं जिसकी वजह उनके जीने का एकमात्र सहारा उनसे छीन गया।
अर्थ-सौंदर्य- इन पंक्तियों में बताया गया है कि एक वास्तविक चिता तो बुझ जाती है परंतु
दूसरी ओर उस बुझी चिता और कभी न भर पाने वाली क्षति का बोध ही उनके हृदय में वेदना
का संचार करती है और उनके हृदय में भी अग्नि भड़क उठती है।
3.
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि तीव्र ज्वर के कारण सुखिया बिस्तर पर ऐसी चुपचाप
पड़ी थी मानो उसने मृत्यु से पहले की अटल शांति धारण कर ली हो।
अर्थ-सौंदर्य – अर्थ की सुंदरता यह है कि ज्वर ग्रस्त होने के कारण सुखिया की चंचलता समाप्त
हो गई थी। वह शांत भाव से चुपचाप लेटी हुई थी मानो उसने अटल शांति धारण कर ली हो।
4.
प्रस्तुत पंक्ति का
आशय यह है कि जब सुखिया के पिता सुखिया की मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर फूल लेने
चले गए तो वहाँ किसी भक्त ने इन्हें पहचान लिया और इन पर आरोप लगाते हुए सब मिलकर कहने
लगे कि इस अछूत ने मंदिर को अपवित्र और देवी
माता का घोर अपमान किया है।
अर्थ-सौंदर्य – प्रस्तुत पंक्ति में सौंदर्य यह है कि सुखिया के पिता ने कोई भी अनर्थ
वाला काम नहीं किया था। ऐसा तो समाज के उन
आभिजात्य वर्गों का मानना था कि एक अछूत ने मंदिर में प्रवेश करके अनर्थ कर दिया है।
जो इस बात को दर्शाता है कि उस समय लोगों की विचारधारा कितनी संकीर्ण थी।
3 -इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों
में लिखिए।
1.
यह कविता छुआछूत की समस्या पर केंद्रित
है। एक मरणासन्न अछूत कन्या का बाल मस्तिष्क यह मान बैठता है कि अगर उसे देवी माँ के
चरणों का एक फूल मिल जाए तो वह ठीक हो सकती है। देवी माँ के चरणों का एक फूल पाना ही
मानो उसकी अंतिम इच्छा बन चुकी हो। वह अपनी इसी इच्छा को अपने पिता के सामने प्रकट कर देती है। वत्सल प्रेमातुर
होकर सुखिया के पिता मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं। उन्हें माता के चरणों का एक फूल
भी मिल जाता है कि इसी बीच कोई उन्हें पहचान लेता है और उन पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनके इस कृत्य से मंदिर की पवित्रता और देवी
माँ का घोर अपमान हुआ है। इसी बिनाह पर न्यायालय से उन्हें सात दिनों के कारावास की सज़ा मिलती है। सज़ा भोगकर जब वे आते
हैं तब तक उनके सगे-संबंधी उनकी मृत बेटी का दाह संस्कार कर चुके होते हैं। यह कविता
उस समय के समाज में व्याप्त छुआछूत, वर्ण-व्यवस्था का सजीव चित्र अंकित करती है। आज के समाज
में भी छुआछूत, वर्ण-व्यवस्था और निर्धनता जैसे सामाजिक रोग
पूर्ण रूप से निर्मूल नहीं हो पाए हैं। इस
कविता के माध्यम से कवि हमें यही संदेश देना चाहते हैं कि मानव मानव है उसे धर्म,वर्ण, आर्थिक, सामाजिक
स्तर पर नहीं तौलना चाहिए।
लिखित
(ग) निम्नलिखित
के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - नदी किनारे अंकित पदचिह्न और सींगों के
चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास ही इस कर्दम लेख में लिखा
हो ऐसा भास होता है।
2 - “आप वासुदेव की पूजा करते हैं इसलिए वसुदेव को तो नहीं पूजते, हीरे का भारी मूल्य देते हैं किंतु कोयले या पत्थर का नहीं देते और मोती
को कंठ में बाँधकर फिरते हैं किंतु उसकी मातुश्री को गले में नहीं बाँधते!”
कम—से—कम इस विषय
पर कवियों के साथ तो चर्चा न करना ही उत्तम!
1. नदी
के किनारे जब कीचड़ ज़्यादा सूखकर ठोस हो जाता है तब दो मदमस्त पाड़े अपने सींगों से कीचड़
को रौंदकर आपस में लड़ते हैं। वे सींग से सींग भिड़ाकर लड़ते हैं जिससे कीचड़ खुद जाता है। तब नदी किनारे
अंकित पदचिह्न और सींगों के चिह्नों से मानो महिषकुल के भारतीय युद्ध का पूरा इतिहास
ही इस कर्दम लेख में लिखा हो -ऐसा प्रतीत होता है।
2.
कवि पंक से उत्पन्न
कमल की तो प्रशंसा करते हैं किन्तु पंक को महत्त्व नहीं देते। इन कवियों के मतानुसार एक अच्छी चीज़ को स्वीकार
करने के लिए उससे जुड़ी अन्य चीजों को स्वीकार करना आवश्यक नहीं। वासुदेव कृष्ण को कहा
जाता है लोग उनकी पूजा करते हैं इसका अर्थ यह नहीं कि वे कृष्ण के पिता वसुदेव की भी
पूजा करें। इसी प्रकार वे हीरे को मूल्यवान
मानते हैं परंतु उसके जानक पत्थर और कोयले को नहीं पूछते। मोती को गले में डालते हैं
परंतु मोती से जुड़ी सीप की कोई भूमिका उन्हें नहीं दिखती। कवियों के अपने तर्क होते
हैं। उनसे इस विषय पर बहस करना व्यर्थ हैं। उन्हें जो अच्छा लगे वही ठीक है। ये अपने
आगे किसी की नहीं सुनते।
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