Dhool Ramvilas Sharma By Avinash Ranjan Gupta
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक—दो पंक्तियों में दीजिए-
1- हीरे के प्रेमी उसे किस
रूप में पसंद करते हैं?
2- लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
3- मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती
है?
1. हीरे के प्रेमी उसे साफ़-सुथरा, खरादा हुआ आँखों में
चकाचौंध पैदा करे ऐसे रूप में पसंद करते हैं।
2. लेखक ने संसार में अखाड़े
की मिट्टी से सनने के सुख को दुर्लभ माना है।
3. मिट्टी की आभा का नाम
धूल हैं और मिट्टी के रंग रूप की पहचान धूल से ही होती है।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1- धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं
की जा सकती?
2- हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
3- अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
4- श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
5- इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य
किया है?
1. माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। माँ की गोद से बच्चा उतरकर मातृभूमि के संपर्क में आता है। यही मातृभूमि हमारी
प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और बच्चे
इसी मिट्टी में खेलते हैं इसलिए धूल के बिना शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती।
2. हमारी सभ्यता धूल से बचना चाहती है क्योंकि वो आसमान में घर बनाना चाहती
है। वे जीवन की मूलभूत सच्चाइयों से अंजान हैं। उन्हें दिखावटी शहरी जीवन ही जीवन का
अंतिम उद्देश्य लगने लगा है।
3. अखाड़े की मिट्टी साधारण नहीं होती है। इसे तेल और मट्ठे से सिझाया जाता
है और देवताओं पर भी चढ़ाया जाता है। अखाड़े की मिट्टी में सनने का सुख दुर्लभ है। इन्हीं
कारणों की वजह से अखाड़े की मिट्टी विशेष है।
4. योद्धा अपने देश की मिट्टी से स्नेह करता है इसलिए वह इसे माथे से लगाता
है। देशभक्त होने के कारण ही अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने आप को कुर्बान करने के लिए तैयार रहता है और यह उसकी
श्रद्धा ही है कि अनेक कष्टों को सहने के बाद भी सीमा की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर
रहता है।
5. लेखक का मानना है कि शहर के लोगों ने गुलाबी चश्मा पहन रखा है जिसकी
वजह से उन्हें वास्तविकता दिखाई नहीं पड़ती है। शहरी लोग धूल और मिट्टी से बचना चाहते
हैं जबकि सत्य तो यह है कि हम और हमारा अस्तित्व इस मिट्टी की वजह से ही है।
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1- लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?
2- लेखक
ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
3- ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन—कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
4- ‘हीरा
वही घन चोट न टूटे’- का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
5- धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
6- ‘धूल’ पाठ
का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
7- कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
1. लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ मानता है क्योंकि
यह धूल
उसके सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देती है। यह सुंदरता वास्तविक है जबकि प्रसाधन
सामग्री कृत्रिम सुंदरता का परिचायक है। ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि हमें उन दिनों की याद दिलाता है जब हमें शत-प्रतिशत कुदरत
के संरक्षण तथा उसके नियमों के दायरे में रहना पसंद था ।
2. लेखक ने धूल और मिट्टी में विशेष अंतर नहीं माना है। उनके अनुसार तो
धूल और मिट्टी में उतना ही अंतर है जितना कि शब्द और रस में देह और जान में और चाँद
और चाँदनी में होता है। ये अलग होते हुए भी एक हैं। एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व
नहीं। ठीक उसी प्रकार मिट्टी की आभा का नाम धूल है। मिट्टी के रूप रंग की पहचान धूल
से ही होती है।
3. ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अनगिनत सुंदर चित्र प्रस्तुत करती हैं-
क.
ग्रामीण परिवेश में रहने वाले शिशुओं
के मुख पर यह धूल उनके सहज पावितरत को निखार देती है।
ख.
गाँव के अखाड़ों की मिट्टी जो तेल और
मट्ठे से सिझाई गई होती है उसे देवताओं पर चढ़ाया जाता है।
ग. गाँव
में शाम को खलिहानों से लौटते हुए गायों के खुरों से उठने वाली धूल गोधूलि के दुर्लभ
दृश्य का दर्शन लाभ कराती है।
घ. बैलगाड़ियों
के निकल जाने के बाद पीछे उड़ने वाली धूल रुई के बादल के समान दिखाई देती है।
ङ. गाँव के किसानों
के धूल और मिट्टी से सने हाथ-पैर हमरी सच्ची सभ्यता को प्रकट करती है।
4. ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’- पंक्ति के माध्यम से लेखक दिखावे और कृत्रिमता से भ्रमित हुई जनता को
यह बताना चाहते हैं कि हीरे और काँच में बहुत अंतर होता है। अज्ञानता के कारण आज की
पीढ़ी काँच को ही हीरा समझ लेती है परंतु सच्चाई तो यह है कि काँच की चमक उस समय तक
ही बनी रहती है जब तक उस पर प्रकाश पड़ रहा हो परंतु हीरा तो अँधेरे में भी चमकता है
और घनिष्ठ प्रहार से भी नहीं टूटता। यहाँ काँच शहरी सभ्यता के खोखले प्रतीकों का द्योतक है और हीरा हमारी गाँव
की प्राचीन और प्राकृतिक सभ्यता का।
5. ‘धूल’ प्रकृति का सत्य है,इसी धूल-मिट्टी से हमारा शरीर बना है। इसी धूल को कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं
में ‘धूलि’ कहकर प्रस्तुत किया है। ‘धूली’ छायावादी दर्शन है जो अस्पष्ट है। ‘धूरि’
लोक संस्कृति का जागरण है। इस शब्द का प्रयोग अभी भी भोले- भाले देहाती
अपनी आम बोलचाल की भाषा में करते हैं। गौ-गौदालों के पद संचालन से उड़ने वाली धूल को
‘गोधूलि’ कहा गया है। ये सारे शब्द लगभग एक ही हैं पर भिन्न-भिन्न
अर्थ देने में समर्थ हैं।
6. ‘धूल’ पाठ के माध्यम से लेखक
ने धूल और मिट्टी की महिमा, माहात्म्य एवं उपयोगिता का वर्णन किया है और इससे जुड़े लोग जैसे- मजदूरों
और किसानों के महत्त्व को भी स्पष्ट किया है।
लेखक का मानना है कि आज समाज में मजदूरों और
किसानों की भूमिका गौण होती दिखाई पड़ रही है उनके श्रम के अनुसार न तो उन्हें पारिश्रमिक
मिलता है और न ही सम्मान। इन सबका कारण पाश्चात्य देशों से आयतित संस्कृति है जो मनुष्य
को संवेदनहीन बना रही है।
7. लेखक का विचार है कि ‘गोधूलि’
पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं परंतु इन कविताओं में गोधूलि का वास्तविक रूप उभर कर नहीं आया है। इसका
कारण केवल कवि में वर्ण्य की कमी नहीं बल्कि
कविता के भाव को समझने के लिए पाठकों में संवेदना की कमी भी है। वर्तमान युग में जहाँ प्रतिदिन
हजारों गाँववाले रोज़ी-रोटी की तलाश में शहर
जाते हैं, दूसरी तरफ़ गाँव की प्राकृतिक सुंदरता शहर
के बनावटी दिखावे के सामने कमजोर मालूम पड़ रही है ऐसे में कविता गाँव की गोधूलि का
जीवंत रूप प्रस्तुत करने में अक्षम हैं।
लिखित
(ग) निम्नलिखित
के आशय स्पष्ट कीजिए-
1- फूल के ऊपर जो रेणु उसका शृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
2- ‘धन्य—धन्य
वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’- लेखक
इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
3- मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना
ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी
में।
4- हमारी
देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम—से—कम उस
पर पैर तो रखे।
5- वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
1. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते
हैं कि फूल के ऊपर पड़े हुए धूल के कारण ही उसकी शोभा बढ़ जाती है और शिशु के मुख पर लगी मिट्टी उसकी वास्तविक
सुंदरता को निखार देती है। अत: हमें चाहिए कि हम
कृत्रिम प्रसाधन सामग्रियों का बहिष्कार कर
प्राकृतिक उपादानों का अनुसरण करें।
2. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते
हैं कि धूल से सने बच्चे को अपने गोद में उठाने वाले व्यक्ति महान हैं । वे अपने शरीर को धूल के संपर्क में लाकर गर्व का अनुभव करते हैं।
उन्हें यह आभास है कि हमारा अस्तित्व इसी मिट्टी से बना है।
3. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना
चाहते हैं कि धूल और मिट्टी में वास्तव में
कोई अंतर नहीं है बल्कि ये एक दूसरे के परिपूरक हैं। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू
हैं जिस प्रकार चाँद से उसकी चाँदनी को अलग नहीं किया जा सकता, शब्द से रस को अलग नहीं किया जा सकता जिस प्रकार देह
से प्राण को अलग नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा होता है तो इनका वजूद ही नहीं रहेगा।
इसी प्रकार धूल और मिट्टी की कल्पना भी स्वतंत्र रूप से नहीं की जा सकती।
4. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते
हैं कि हम अपने शब्दों में भले ही अपने आपको देशभक्त कहें। देशभक्ति के नाम पर बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित कर वाहवाही लूटे मगर
इससे देशभक्ति सिद्ध नहीं होती है। इसके लिए तो हमें देश की माटी को अपने माथे से लगाना
होगा। इस मिट्टी के संसर्ग से अपने को धन्य मानना होगा और अगर इतना भी संभव न हो पाए
तो कम से कम हमें इस धरती पर पैर तो रखना ही होगा।
5. इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक यह सिद्ध करना
चाहते हैं कि हीरा अनमोल होता है । उसकी चमक सदैव कायम
रहती है और यह बहुत कीमती भी होता है परंतु काँच की चमक अल्पायु होती है। आज की पीढ़ी
काँच को सामाजिक वैभव का प्रतीक मान चुका है जिस पर यथार्थ रूपी हथोड़े का प्रहार होते
ही वह टूट जाता है जबकि हीरा यथार्थ रूपी हथोड़े
के प्रहार पर खरा उतरता है। यहाँ हीरा गाँव की अमर सभ्यता का प्रतीक है और काँच दिखावटी
नगरीय सभ्यता का।
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