Biharee Ke Dohon Ki shabadarthsahit Vyakhya By Avinash Ranjan Gupta
बिहारी के दोहे
बिहारी
सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ
नीलमनि—सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।
शब्दार्थ
1.
सोहत = सुंदर लगना
2.
ओढ़ैं = ओढ़ा हुआ
3.
पीतु = पीला
4.
पटु = कपड़ा
5.
स्याम = साँवला
6.
सलौनैं = सलोना
7.
गात = शरीर
8.
मनौ = मानो
9.
नीलमनि = नीलमणि
10.
सैल = पर्वत
11.
आतपु = धूप
12.
परयौ = पड़ना
13.
प्रभात = सुबह
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी
श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि श्रीकृष्ण ने पीले वस्त्र
ओढ़ रखे हैं। उनके साँवले शरीर पर ये पीले वस्त्र बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। इन्हें
देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो नीलमणि पर्वत पर प्रात:कालीन सूर्य की किरणें बिखर
गई हों। यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले शरीर की तुलना नीलमणि पर्वत से और पीले वस्त्र
की तुलना सूर्य की किरणों से की गई है।
कहलाने
एकत बसत अहि मयूर, मृग
बाघ।
जगतु
तपोबन सौ कियौ दीरघ—दाघ
निदाघ।।
शब्दार्थ
1.
एकत = एक साथ
2.
बसत = निवास करना
3.
अहि = साँप
4.
मयूर = मोर
5.
मृग = हिरन
6.
जगतु = संसार
7.
तपोबन = तपोवन पवित्र अंचल
8.
सौ = जैसा
9.
कियौ = करना
10.
दीरघ = दीर्घ
11.
दाघ = गर्मी
12. निदाघ
= ग्रीष्म ऋतु
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी प्रचंड
गर्मी के कारण पशुओं के व्यवहार में आए बदलाव के बारे में बतलाते हुए कह रहे हैं
कि साँप और मोर तथा हिरण और बाघ एक दूसरे के परम शत्रु हैं पर प्रचंड गर्मी के
कारण ये आपसी शत्रुता भूलकर एक ही स्थान पर बस गए हैं। ऐसे दृश्य को देखकर बिहारी
जी को यह सम्पूर्ण जगत तपोवन की तरह प्रतीत हो रहा है जहाँ सब मिल-जुल कर रहते
हैं। उनका मानना है कि सभी अवस्था सकारात्मक पक्ष होते हैं। प्रचंड गर्मी के कारण
वन में भाईचारे और मानवीय गुणों का संचार हो गया है।
बतरस—लालच लाल की मुरली धरी
लुकाइ।
सौंह
करैं भौंहनु हँसै, दैन
कहैं नटि जाइ।।
शब्दार्थ
1.
बतरस = बातचीत का आनंद
2.
लालच = लोभ
3.
लाल = कृष्ण
4.
मुरली = वंशी
5.
धरी = रखना
6.
लुकाइ = छिपकर
7.
सौंह = सपथ
8.
करैं = करना
9.
भौंहनु = भौंह से (Eyebrows)
10.
हँसैं
= हँसना
11.
दें = देना
12.
कहैं = कहना
13.
नटि = मुकर जाना
14. जाइ = जाना
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी ने
श्रीकृष्ण और गोपियों के बीच मुरली के संदर्भ में हो रहे बातचीत का वर्णन किया है।
गोपियाँ हर पल कृष्ण के समीप रह कर बातें करना चाहती हैं और इसी वजह से
उन्होंने श्रीकृष्ण की मुरली कहीं छिपा दी
है। श्रीकृष्ण जब गोपियों से अपनी मुरली माँगते हैं तो गोपियाँ झूठी कसम खाती हैं
कि उन्होंने मुरली नहीं ली है पर कसम खाते वक्त भौंहें हिलाकर हँसती हैं। उनके
हाव-भाव से स्पष्ट हो जाता कि मुरली उन्होंने ही छिपाई है।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे
भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।
शब्दार्थ
1.
कहत = कहना
2. नटत = मना
करना
3. रीझत
= प्रसन्न होना
4. खिझत =
गुस्सा होना
5. मिलत
= मिलना
6. खिलत = खिल
जाना
7. लजियात
= लज्जा करना
8. भरे = भरा
हुआ
9. भौन
= भवन
10.
करत = करना
11.
नैननु = आँखों से
12.
सब = सारा
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी ने
नायक-नायिका मे मिलन पर उनकी सांकेतिक वार्तालाप और उनकी मुख मुद्रा का अति सुंदर
चित्रण किया है। इसमें नायक-नायिका से सांकेतिक भाषा में कुछ कहता है लेकिन नायिका
मना कर देती है और खीझ जाती है। उसके मना करने पर उसकी मुख मुद्रा को देखकर नायक
नायिका पर और भी रीझ जाता है। ऐसे में जब दोनों की नज़रें परस्पर मिलती हैं तो
नायिका लजा जाती है। इस प्रकार भरे भवन में अनेक लोगों कि उपस्थिति के बावजूद
नायक-नायिका आँखों की भाषा में बात-चीत करते हैं।
बैठि
रही अति सघन बन, पैठि सदन—तन माँह।
देखि
दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।
शब्दार्थ
1.
बैठी = बैठना
2.
अति = अधिक
3.
सघन = घना
4.
बन = वन
5.
पैठि = घुसना
6.
सदन = घर
7.
तन = शरीर
8.
माँह = में
9.
देखि – देखकर
10. दुपहरी = दोपहर
11.
जेठ = एक महीना
12. छाँहौं = छाया
13.
चाहति = चाहना
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी भीषण
गर्मी का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि जेठ माह की दोपहरी में तो छाया भी छाया
ढूँढ़ने लगती है। यह छाया घने वनों में आश्रय लेती है या फिर घरों में छिपकर बैठ
जाती है ।
कागद
पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै
सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।
शब्दार्थ
1.
कागद = कागज़
2.
लिखत = लिखना
3.
बनत = बनना
4.
क़हत = कहना
5.
सँदेसु = संदेश
6.
लजात = लज्जा करना
7.
कहिहै = कहता है
8.
सबु = सब
9.
तेरौ = तुमहारा
10.
हियौ = हृदय
11.
हिय = हृदय
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी नायिका
के कोमल और पवित्र भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि नायिका अपने कोमल
भावनाओं की अभिव्यक्ति कागज़ पर लिखकर नायक
को देना चाहती है पर वह ऐसा नहीं कर पा रही है। नायिका मौखिक संदेश देने में भी लजाती है। अर्थात वह न लिख
पाती है न बोल पाती है। तब नायिका को लगता है कि प्रेम में हृदय तो एक हो जाते
हैं। मेरे मन में जो भी बातें हैं वह नायक के हृदय में भी ज़रूर होंगे। अतएव मेरी
दशा की जानकारी नायक अपनी दशा से स्वयं जान लेंगे।
प्रगट
भए द्विजराज—कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे
हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥
शब्दार्थ
1.
प्रगट = उत्पन्न होना
2.
भए = होना
3.
द्विजराज = ब्राह्मण
4.
कुल = वंश
5.
सुबस = अपनी इच्छा से
6.
बसे = बसना
7.
ब्रज = जगह विशेष
8.
आइ = आकर
9.
हरौ = दूर करो
10.
कलेस = दुख
11.
केसव = कृष्ण
12.
केसवराइ = बिहारी के पिताजी
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी
श्रीकृष्ण से अपने सारे दुखों को दूर करने का निवेदन करते हुए कह रहे हैं कि
श्रीकृष्ण तो ब्राह्मण कुल में जन्म ग्रहण किए थे परंतु अपनी इच्छा से वे ब्रज में
आकर बसे हैं। उनके ब्रज में आकर बसने से
ब्रजवासियों का उद्धार हुआ है। हे प्रभु! अब आप केशवराई के पुत्र अर्थात मेरे भी
कष्टों का निवारण कर मुझपर अपनी असीम अनुकंपा करें।
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन—काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
शब्दार्थ
1.
जपमाला = जप करने की माला
2.
छापैं = छापा हुआ
3.
तिलक = टीका
4.
सरै = समाप्त होना
5.
एकौ = एक भी
6.
कामु = काम
7.
मन = हृदय
8.
काँचै = कच्चा
9.
नाचै = नाचना
10.
बृथा = व्यर्थ
11.
साँचैं = सच्चा
12.
राँचैं = प्रसन्न
13.
रामु = प्रभु राम
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