Biharee By Avinash Ranjan Gupta
प्रश्न—अभ्यास
1 -
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
2. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती
है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’
- स्पष्ट कीजिए।
3. सच्चे मन में राम बसते हैं - दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
4. गोपियाँ श्रीकृष्ण
की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?
5. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे
बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
1 उत्तर- बिहारी जी भीषण गर्मी का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि जेठ माह की
दोपहरी में तो छाया भी छाया ढूँढ़ने लगती है। यह छाया घने वनों मे आश्रय लेती है या
फिर घरों में छिपकर बैठ जाती है।
2 उत्तर- बिहारी जी नायिका के कोमल और पवित्र
भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए कहते हैं कि नायिका अपने कोमल भावनाओं को कागज़ पर लिखकर
नायक को देना चाहती है पर वह ऐसा नहीं कर पा रही है। नायिका नायक को मौखिक
संदेश देने में भी लजाती है। अर्थात वह न लिख पाती है न बोल पाती है। तब नायिका
को लगता है कि प्रेम में हृदय तो एक हो जाते हैं। मेरे मन में जो भी बातें हैं वह नायक
के हृदय में भी ज़रूर होंगे। अतएव मेरे दशा वे अपनी दशा से स्वयं जान लेंगे।
3 उत्तर- बिहारी जी भक्ति का सारमर्म प्रस्तुत
करके आम जनता तक सच्ची बात पहुँचाना चाहते हैं। उनका मानना है कि भक्ति में भगवान अपने
भक्तों की सच्ची भावना देखते हैं। हाथ में
माला धारण कर मंत्र जाप करना, राम नाम छपे
वस्त्रों को धारण करना और माथे पर तिलक लगाकर घूमने से राम नहीं मिलते हैं। यदि मन
में सच्ची भक्ति नहीं है तो नाच-गाकर ईश्वर को नहीं रिझाया जा सकता। ईश्वर को प्राप्त
करने का एकमात्र साधन है, मानव सेवा।
“मानव सेवा सेवा ही माधव सेवा है।”
4 उत्तर- बिहारी जी ने श्रीकृष्ण और गोपियों के बीच मुरली
के संदर्भ में हो रहे बातचीत का वर्णन किया है। गोपियाँ हर पल कृष्ण के समीप रह कर
बातें करना चाहती हैं और इसी वजह से उन्होंने
श्रीकृष्ण की मुरली कहीं छिपा दी है और झूठी कसम खाती हैं कि उन्होंने मुरली
नहीं ली है पर कसम खाते वक्त भौंहें हिलाकर हँसती हैं। उनके हाव-भाव से स्पष्ट हो जाता
कि मुरली उन्होंने ही छिपाई है।
5 उत्तर- बिहारी जी ने नायक-नायिका के मिलन पर उनकी सांकेतिक वार्तालाप और उनकी
मुख मुद्रा का अति सुंदर चित्रण किया है। इसमें नायक-नायिका से सांकेतिक भाषा में कुछ
कहता है लेकिन नायिका मना कर देती है और खीझ जाती है। उसके मना करने पर उसकी मुख मुद्रा
को देखकर नायक नायिका पर और भी रीझ जाता है। ऐसे में जब दोनों की नज़रें परस्पर मिलती
हैं तो नायिका लजा जाती है। इस प्रकार भरे भवन में दोनों नज़रों से बातें करते हैं।
2 -निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए
-
1. मनौ नीलमनि—सैल पर आतपु
पर्यौ प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ—दाघ निदाघ।
3. जपमाला, छापैं,
तिलक सरै न एकौ कामु।
मन—काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
1. प्रस्तुत दोहे में बिहारी
जी श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि श्रीकृष्ण ने पीले वस्त्र
ओढ़ रखे हैं। उनके साँवले शरीर पर ये पीले वस्त्र बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। इन्हें
देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो नीलमणि पर्वत पर प्रात:कालीन सूर्य की किरणें बिखर गईं
हों। यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले शरीर की तुलना नीलमणि पर्वत से और पीले वस्त्र की तुलना
सूर्य की किरणों से की गई है।
2. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी प्रचंड गर्मी के
कारण पशुओं के व्यवहार में आए बदलाव के बारे में बतलाते हुए कह रहे हैं कि साँप और
मोर तथा हिरण और बाघ एक दूसरे के परम शत्रु हैं पर प्रचंड गर्मी के कारण ये आपसी शत्रुता
भूलकर एक ही स्थान पर बस गए हैं। ऐसे दृश्य को देखकर बिहारी जी को यह सम्पूर्ण जगत
तपोवन की तरह प्रतीत हो रहा है जहाँ सब मिल-जुल कर रहते हैं। उनका मानना है कि सभी
अवस्था के सकारात्मक पक्ष होते हैं। प्रचंड गर्मी के कारण वन में भाईचारे और मानवीय
गुणों का संचार हो गया है।
3. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी भक्ति का सारमर्म प्रस्तुत करके आम जनता तक
सच्ची बात पहुँचाना चाहते हैं। उनका मानना है कि भक्ति में भगवान अपने भक्तों की सच्ची भावना देखते हैं। हाथ में माला धारण कर मंत्र
जाप करना, राम नाम छपे वस्त्रों को धारण करना और माथे पर तिलक लगाकर घूमने से राम नहीं
मिलते । यदि मन में सच्ची भक्ति नहीं है तो नाच-गाकर ईश्वर को नहीं रिझाया जा सकता।
ईश्वर को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है, मानव सेवा। “मानव सेवा
सेवा ही माधव सेवा है।”
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