Bade Bhai Sahab Premchand By Avinash Ranjan Gupta By Avinash Ranjan Gupta
bade bhai sahab PAATH KE KUCHH SMARANEEY BINDU BY AVINASH RANJAN GUPTA
BADE BHAI SAHAB PAATH KA SHBDARTH click here
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक—दो पंक्तियों में दीजिए-
1. कथा नायक की रुचि किन
कार्यों में थी?
2. बड़े भाई साहब
छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
3. दूसरी बार पास होने पर
छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
4. बड़े भाई साहब
छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन—सी कक्षा में पढ़ते थे?
5. बड़े भाई साहब दिमाग को
आराम देने के लिए क्या करते थे?
1. कथा नायक की रुचि मैदान में दौड़ने, कंकरियाँ उछालने, पतंग
उड़ाने और दीवारों पर चढ़ कर कूदने में थी।
2. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल पूछते
थे “ कहाँ थे?”
3. दूसरी बार पास होने पर छोटा भाई और अधिक आज़ाद हो गया और खूब पतंगें उड़ाने लगा।
4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में पाँच साल बड़े थे और वे नवीं कक्षा में पढ़ते
थे ।
5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापियों पर और किताबों
के हाशिए पर चिड़ियों, कुत्तों,
बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे ।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम—टेबिल बनाते समय क्या—क्या सोचा और फिर उसका पालन
क्यों नहीं कर पाया?
2. एक दिन जब गुल्ली—डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा
तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
3. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी
पड़ती थीं?
4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह
देते थे और क्यों?
5. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का
क्या फ़ायदा उठाया?
1. छोटे भाई ने प्रातः 6 से 9 बजे तक तीन विषय पढ़ने का निश्चय
किया था। स्कूल से लौटकर आधा घंटा विश्राम के उपरांत रात ग्यारह बजे तक अन्य विषय पढ़ने
का टाइम-टेबल बनाया था। इसमें केवल उसने घूमने के लिए आधे घंटे का समय निर्धारित किया
था। परंतु मैदान की हरियाली, हवा के झोंके, खेल की उछल-कूद का मोह ने उसे टाइम-टेबल का पालन करने नहीं दिया।
2.
कई दिनों तक डाँट न पड़ने के कारण छोटा भाई स्वछंद होकर गिल्ली-डंडा खेलने लगा
तो बड़े भाई ने क्रोधित होकर उसे लताड़ते हुए कहा कि अव्वल आने पर तुम्हें घमंड हो गया
है लेकिन घमंड तो रावण का भी नहीं रहा। अभिमान का अंत विनाश ही होता है।
3. बड़े भाई साहब भले ही बड़े हो मगर उनमें भी लड़कपन था। वे भी
खेलना-कूदना और पतंग उड़ाना चाहते थे। लेकिन आदर्श बड़ा भाई बनने की आशा में वे खेल नहीं
पाते थे। उनका मानना था कि यदि वे ही सही रास्ते पर नहीं चलेंगे तो छोटे को ठीक कैसे
रख पाएँगे।
4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को सदा परिश्रम करने की सलाह देते थे। वे कहते थे कि
यूँ गिल्ली-डंडा,
फुटबॉल, पतंग उड़ाना तथा भाग-दौड़ करके समय बर्बाद करना
ठीक नहीं है। ऐसे तुम कभी भी परीक्षा में पास नहीं हो पाओगे। इस तरह दादा की मेहनत
की कमाई गँवाना अनुचित है। बड़े भाई साहब छोटे भाई को हमेशा सही रास्ता दिखाते थे क्योंकि
वे अपने छोटे भाई की सफलता देखना चाहते थे।
5. छोटे
भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का भरपूर फ़ायदा उठाया। उसने पढ़ना लिखना
बिलकुल छोड़ दिया और खेलने कूदने की साथ साथ पतंगें भी उड़ाने लगा।
लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1. बड़े भाई की डाँट—फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में
अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।
2. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा
के किन तौर—तरीकों पर व्यंग्य किया है?
क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?
3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती
है?
4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?
6. बड़े भाई साहब ने ज़िंदगी के अनुभव
और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?
7. बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि -
(क)
छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख)
भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है।
(ग)
भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ)
भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
1. लेखक के बड़े भाई यदि समय - समय पर उन्हें न टोकते तो हो सकता
था कि लेखक अपनी कक्षा में अव्वल न आते। लेखक
को पढ़ने-लिखने का शौक तो था ही नहीं वे तो केवल खेल-कूद में ही मस्त रहा करते थे परंतु
बड़े भाई साहब के डर से उन्हें पढ़ना पड़ता था। वास्तव में लेखक ज़हीन थे, थोड़ी-सी
परिश्रम से ही वे अपनी कक्षा में अव्वल आ जाते थे। लेकिन सफलता का श्रेय निश्चित रूप
से बड़े भाई साहब को जाता है क्योंकि वे लेखक पर अंकुश रखते थे। इस बात को स्वयं लेखक
ने भी स्वीकार किया है।
2.
पाठ में लेखक के बड़े भाई साहब ने इतिहास की घटनाओं, जामेट्री के नियमों व विधियों तथा ज़रा-सी बात
पर कई-कई पृष्ठ वाले निबंध लिखना, बालकों
में रटंत शक्ति बढ़ाने पर ज़ोर देना इत्यादि मामलों पर व्यंग्य किया है। यहाँ यह भी कहा
गया है कि शिक्षा में ज्ञानवृद्धि पर बल नहीं दिया जाता अपितु आंकड़ों तथा विवरणों का
प्रस्तुतीकरण मुख्य है। इस पाठ में परीक्षा प्रणाली पर भी प्रश्न चिह्न लगाया गया है।
3.
बड़े
भाई साहब का मानना है कि जीवन की समझ केवल पुस्तकें पढ़ने से नहीं आती। यह समझ तो जगत
में जीवन जीने से आती है। उनका यह मानना था कि अम्मा और दादा भले ही उन जितनी किताबें
न पढ़ें हों लेकिन अपने अनुभव के आधार पर उन्हें दुनियादारी की असंख्य बातें पता थीं।
ऐसी हजारों बातें प्रतिदिन के जीवन में आतीं
हैं जिनका समाधान अनुभव और समझ से होता है। बड़े भाई साहब उम्र और अनुभव को बहुत महत्त्व
देते थे।
4.
बड़े भाई साहब ने छोटे भाई को बताया कि भले ही वह पढ़ाई में उनके करीब आ गया हो
किन्तु जीवन का अनुभव उसे कम ही है क्योंकि वह छोटा है, यदि आज कोई विपत्ति आए तो वह घबरा जाएगा लेकिन यदि दादा हों तो वे किसी भी स्थिति
को बड़ी होशियारी से संभालेंगे। दादा अपनी थोड़ी-सी कमाई में कितनी समझदारी से घर चलाते
हैं, जबकि दादा हमें जो भेजते हैं, वे खर्च हो जाते हैं और फिर धोबी और नाई से मुँह चुराते हैं। ऑक्सफोर्ड से पढ़े
हेडमास्टर साहब का घर उनकी माँ चलती हैं। बड़े भाई साहब ने छोटे को कहा कि वह उसे कभी
भी गलत राह पर नहीं चलने देगा। बड़े भाई साहब की ये बातें सुनकर लेखक के मन में उनके
प्रति श्रद्धा पैदा हुई।
5.
बड़े
भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
क.
बड़े
भाई साहब अत्यंत परिश्रमी हैं।
ख.
बड़े
भाई साहब अत्यंत संयमी और कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे।
ग. बड़े भाई साहब बड़ों का आदर करते थे।
घ. बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को सदा सही रास्ते पर चलने की
सलाह देते थे।
ङ.बड़े
भाई साहब की चिंतन शक्ति उच्च कोटि की थी।
6.
बड़े भाई साहब ज़िंदगी के अनुभव को किताबी ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण बताया है।
उनका मानना था कि किसी के पास किताबी ज्ञान
कितना ही हो लेकिन उम्र के साथ जो अनुभव आता है वही जीवन में सही-गलत का फ़ैसला लेने
में अधिक मदद करता है। उनका मानना था की बुजुर्गों ने चाहे डिग्री प्राप्त न की हो
लेकिन अपने अनुभव के आधार पर उन्हें जीवन के उचित और अनुचित का सही ज्ञान होता है।
स्कूल के हेडमास्टर ने ऑक्सफोर्ड से एम. ए. किया था परंतु घर चलाने में फ़ेल हो गए।
उनका घर उनकी बूढ़ी माँ सफलता और कुशलता से चलाती हैं जो अनुभव का परिचायक है।
7.
क. जब
बड़ा भाई दो बार फ़ेल हो जाता है तथा छोटा भाई कक्षा में अव्वल आकर पतंगबाज़ी में अपना
समय बिताने लगता है तो उसका बड़ा भाई समझाता है कि भले ही वह फ़ेल फो गया है किन्तु वह
बड़ा है और उसे यूँ गलत रास्ते पर न जाने देगा। बड़े भाई की बातें सुनकर छोटे भाई की
आँखें भर आईं। बड़े भाई साहब ने छटे भाई से कहा कि इस वक्त तुम्हें मेरी बारे जहर लग
रही होंगी, छोटा बोला – हरगिज नहीं।
ख. भाई साहब को ज़िंदगी का अच्छा अनुभव है। वे जानते हैं कि
दादा अपनी मेहनत की कमाई किस प्रकार हमारी पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं। परिवार का भी पालन
सही तरीके से कर रहे हैं। वह यह भी जानते हैं कि यदि वे अपने आचरण और व्यवहार पर काबू
नहीं रखेंगे तो छोटे भाई को कैसे संभाल पाएँगे।
ग. बड़े भाई साहब जब छोटे भाई को समझा रहे थे तभी संयोग से
एक कटी हुई पतंग उन दोनों के करीब से आई। उस पतंग की डोर लटक रही थी। बड़े भाई साहब
लंबे थे उन्होंने लपक कर डोर खींच ली और पतंग लेकर हॉस्टल की तरफ भागे। यह हरकत बताती
है कि बड़े भाई साहब को भी दूसरे लड़कों की तरह
पतंग उड़ाने और लूटने का मन होता था।
घ. जब भी लेखक खेलकूद में अधिक समय लगाते थे तथा पढ़ाई पर
ध्यान न देते थे तो बड़े भाई साहब उन्हें डाँटते थे। बड़े भाई साहब उन्हें हर समय दुनिया
में क्या ठीक है क्या गलत, समझाते रहते थे। वह छाते थे कि उनका छोटा भाई सदा सही रास्ते
में आगे बढ़े।
लिखित
(ग) निम्नलिखित
के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।
2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच
भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल—कूद का तिरस्कार
न कर सकता था।
3. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने?
4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी
पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर
चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन
से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
1. इस कथन द्वारा बड़े भाई साहब यह बताना चाहते थे कि किताबें पढ़कर कोई भी परीक्षा
में उत्तीर्ण हो सकता है। यह मात्र पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग है, पर जीवन
में पुस्तकीय ज्ञान से अधिक विवेक और अनुभव
की अवश्यकता पड़ती है। उनके मतानुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य बुद्धि का विकास होना चाहिए।
2.
जीवन में भले ही कितनी मुसीबतें क्यों न आ जाए, पर मनुष्य कभी भी मोह-माया से अलग नहीं रह
सकता। उसी प्रकार लेखक बड़े भाई साहब से खूब
डाँट खाने के बाद भी अपने टाइम-टेबल का अनुसरण एक दिन भी नहीं किया।
3. इस कथन का आशय यह है कि महल बनाने के लिए जिस तरह मज़बूत नींव
की आवश्यकता होती है उसी तरह बड़े भाई साहब
अपनी शिक्षा की बुनियाद पक्की करना चाहते थे। वे एक साल की पढ़ाई में दो-दो , तीन-तीन
साल लगा देते थे।
4. इस कथन का आशय यह है कि आकाश
में उड़कर नीचे आते पतंग को आकाश का राहगीर बताया गया है। वह धीमी गति से नीचे आ रही
थी, जैसे को आत्मा विरक्त होकर नीचे आ रही हो। नीचे
आती पतंग पर नज़र टिकाए लेखक उसी पतंग की दिशा की तरफ़ भागे जा रहे थे। उन्हें इधर-उधर
से आने वाली किसी भी चीज़ की कोई खबर न थी।
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