Ab Kahan Doosron Ke Dukh Se Dukhi Honewaale Paath Ke Kuchh Smaraneey Bindu By Avinash Ranjan Gupta
महत्त्वपूर्ण तथ्य
पाठ ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ के कुछ स्मरणीय बिंदु -
1. पाठ ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ के लेखक निदा फ़ाज़ली हैं ।
2. सुलेमान ने चींटियों से क्या कहा?
सुलेमान चींटियों से बोले, ‘घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ, सबके लिए मुहब्बत हूँ।’ चींटियों ने उनके लिए ईश्वर से दुआ की और रास्ता पार किया फिर सुलेमान अपने लश्कर के साथ अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गए।
3. लेखक की माँ लेखक को क्या-क्या सिखाया करती थीं?
लेखक की माँ कहती थी, सूरज ढले आँगन के पेड़ों से पत्ते मत तोड़ो, पेड़ रोएँगे। दीया—बत्ती के वक्त फूलों को मत तोड़ो, फूल बद्दुआ देते हैं। दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो, वह खुश होता है। कबूतरों को मत सताया करो, वे हज़रत मुहम्मद को अज़ीज़ हैं। मुर्गे को परेशान नहीं किया करो, वह मुल्ला जी से पहले मोहल्ले में अज़ान देकर सबको सवेरे जगाता है ।
4. वर्सोवा के बदलते माहौल का वर्णन लेखक ने कैसे किया है?
वर्सोवा में जहाँ लेखक का घर है, पहले यहाँ दूर तक जंगल था। पेड़ थे, परिंदे थे और दूसरे जानवर थे। अब यहाँ समंदर के किनारे लंबी—चौड़ी बस्ती बन गई है। इस बस्ती ने न जाने कितने परिंदों—चरिंदों से उनका घर छीन लिया है। इनमें से कुछ शहर छोड़कर चले गए हैं। जो नहीं जा सके हैं उन्होंने यहाँ—वहाँ डेरा डाल लिया है।
5. पाठ का मूल उद्देश्य क्या है?
प्रस्तुत कहानी ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ में वर्तमान युग में हो रहे हैं से प्रकृति के दोहन का वर्णन किया गया है जिसके कारण प्राकृतिक असंतुलन का नज़ारा बेवक्त की बारिश, अत्यधिक गर्मी,बाढ़, सूखा, सुनामी के रूप में देखा जा सकता है।अतः, अब हमें ये स्वीकार करना ही होगा कि –
हमें प्रकृति का संतुलन नहीं बिगाड़ना चाहिए।
पशु-पक्षियों को तंग नहीं करना चाहिए तथा उनके दुख-दर्द का भी एहसास हमें होना चाहिए।
इस पृथ्वी पर सभी प्राणियों का अधिकार है।
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