Mera Putra By Avinash Ranjan Gupta
आत्मज
आत्मा
की तू उपज है,
तू
परमात्मा का ही रज है,
जिसकी
उषा उत्साह बढ़ाए,
तू
हमारा वो सूरज है।
नीति में
नीरज हैं तेरे,
रूप में
धीरज है तेरे,
भौंरे जिस
पर रीझ जाएँ,
पुष्प जैसे
हैं नैन तेरे ।
तू है
अग्रज, तू अनुज है,
तू है
मथुरा, तू ही ब्रज है,
तेरा दृश्य
है मन-लुभावन,
तू
चतुर्भुज का ही द्विज है ।
धर्म का
तू बाल-ध्वज है,
कर्म का तू
इक जलज है,
मर्म तेरा
हो शोभायमान,
तू हमारा
आत्मज है।
अविनाश रंजन गुप्ता
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