Chapter – 1 प्रथमः पाठः शुचिपर्यावरणम् Pratham Paatha : Shuchiparyavarnam NCERT Shemushi Class X (Subject Code-122)


प्रथम पाठः
शुचिपर्यावरणम्
          प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिकासे संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यांत्रिकबहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तनमन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं। कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदीनिर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुञ्जित वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचिपर्यावरणम्।।
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्।।
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम्। शुचि...।।1।।
कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।।
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि...।।2।।
वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्।।
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि...।।3।।
कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झरनदीपयःपूरम्।।
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि...।।4।।
हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया।।
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि...।।5।।
अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम्।
पुरकलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्।।
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि...।।6।।
प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा।।
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि...।।7।।






शब्दार्थाः
1.                 दुर्वहम् दुष्करम् कठिन, दूभर
2.                 जीवितम् जीवनम् जीवन
3.                 अनिशम् अहर्निशम् दिनरात
4.                 कालायसचक्रम् लौहचक्रम् लोहे का चक्र
5.                 शोषयत् शुष्कीकुर्वत् सुखाते हुए
6.                 तनुः शरीरम् शरीर
7.                 पेषयद् पिष्टीकुर्वत् पीसते हुए
8.                 वक्रम् कुटिलम् टेढ़ा
9.                 दुर्दान्तैः भयटरैः भयानक (से)
10.             दशनैः दन्तैः दाँतों से
11.             अमुना अनेन इससे
12.             जनग्रसनम् जनभक्षणम् मानव विनाश
13.             कज्जलमलिनम् कज्जलेन मलिनम् काजलसा मलिन (काला)
14.             धूमः वाष्पः धुआँ
15.             मुञ्चति त्यजति छोड़ता है
16.             शतशकटीयानम् शकटीयानानां शतम् सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ
17.             वाष्पयानमाला वाष्पयानानां पंक्तिः रेलगाड़ी की पंक्ति
18.             वितरन्ती ददती देती हुई
19.             ध्वानम् ध्वनिम् कोलाहल
20.             संसरणम् सञ्चलनम् चलना
21.             भृशं अत्यधिकम् अत्यधिक
22.             भक्ष्यम् खाघपदार्थ भोज्य पदार्थ
23.             समलम् मलेन युक्तम् मलयुक्त, गन्दगी से युक्त
24.             ग्रामान्ते ग्रामस्य सीमायाम् (सीम्नि) गाँव की सीमा पर
25.             पयःपूरम् जलाशयम् जल से भरा हुआ तालाब
26.             कान्तारे वने जंगल में
27.             कुसुमावलिः कुसुमानां पंक्तिः फूलों की पंक्ति
28.             समीरचालिता वायुचालिता हवा से चलायी हुई
29.             रसालम् आम्रम् आम
30.             रुचिरम् सुन्दरम् सुन्दर
31.             खगकुलकलरव खगकुलानां कलरवः पक्षियों के समूह की ध्वनि (पक्षिसमूहध्वनिः)
32.             चाकचिक्यजालम् कृत्रिमं प्रभावपूर्णं जगत् चकाचौंध भरी दुनिया
33.             प्रस्तरतले शिलातले पत्थरों के तल पर
34.             लतातरुगुल्माः लताश्च तरवश्च गुल्माश्च लता, वृक्ष और झाड़ी
35.             पाषाणी पर्वतमयी पथरीली
36.             निसर्गे प्रकृत्याम् प्रकृति में


अभ्यासः
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क)कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति?
(ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?
(ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति?
(घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्त्तुम् इच्छति?
(ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?
(च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?
2. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत
(क) प्रकृतिः + ........................ = प्रकृतिरेव
(ख) स्यात् + ........ + ........ = स्यान्नैव
(ग) ......... + अनन्ताः = ह्यनन्ताः
(घ) वहिः + अन्तः + जगति = ........................
(ङ) ......... + नगरात् = अस्मान्नगरात्
(च) सम् + चरणम् = ........................
(छ) धूमम् + मुञ्चति = ........................
3. अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत
भृशम्, यत्र, तत्र, अत्र, अपि, एव, सदा, बहिः
(क) इदानीं वायुमण्डलं .................. प्रदूषितमस्ति।
(ख) .................. जीवनं दुर्वहम् अस्ति।
(ग) प्राकृतिकवातावरणे क्षणं सञ्चरणम् .................. लाभदायकं भवति।
(घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् .................. प्रकृतेः आराधना।
(ङ) .................. समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(च) भूकम्पितसमये .................. गमनमेव उचितं भवति।
(छ) .................. हरीतिमा .................. शुचि पर्यावरणम्।
4. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितपदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं/संयोगं कुरुत
यथाजातम् = जन् + क्त
(क) प्र + कृ + क्तिन् = ..................
(ख) नि + सृ + क्त + टाप् = ..................
(ग) .................. + क्त = दूषितम्
(घ) .................. + .................. = करणीयम्
(ङ) .................. + यत् = भक्ष्यम्
(च) रम् + .................... + .................. = रमणीया
(छ) ............... + ............... + ............... = वरणीया
(ज) पिष् + .................. = पिष्टाः
5. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत
(क) सलिलम् ..................
(ख) आम्रम् ..................
(ग) वनम् ..................
(घ) शरीरम् ..................
(ङ) कुटिलम् ..................
(च) पाषाणम् ..................
6. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि लिखत
यथाविग्रह पदानि समस्तपद समासनाम
(क) मलेन सहितम् समलम् अव्ययीभाव
(ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) .................. कर्मधारय
(ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) .................. कर्मधारय
(घ) नवा मालिका .................. कर्मधारय
(ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) .................. बहुब्रीहि
(च) कज्जलम् इव मलिनम् .................. कर्मधारय
(छ) दुर्दान्तैः दशनैः .................. कर्मधारय
7. रेखाङिक्तपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
(ख) उघाने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
(ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
(घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति।
(ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विघते।



योग्यताविस्तारः
समास समसनं समासः
समास का शाब्दिक अर्थ होता हैसंक्षेप। दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से जो तीसरा नया और संक्षिप्त रूप बनता है वह समास कहलाता है। समास के मुख्यतः चार भेद हैं-
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष
3. बहुब्रीहि
4. द्वन्द्व
1. अव्ययीभाव
इस समास में पहला पद अव्यय होता है और वही प्रधान होता है।
यथानिर्मक्षिकम् मक्षिकाणाम् अभावः।
यहाँ प्रथमपद निर् है और द्वितीयपद मक्षिकम् है। यहाँ मक्षिका की प्रधानता न होकर मक्षिका का अभाव प्रधान है, अतः यहाँ अव्ययीभाव समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखें
1.     उपग्रामम् ग्रामस्य समीपे — (समीपता की प्रधानता)
2.     निर्जनम् जनानाम् अभावः — (अभाव की प्रधानता)
3.     ) अनुरथम् रथस्य पश्चात् — (पश्चात् की प्रधानता)
4.     प्रतिगृहम् गृहं गृहं प्रति — (प्रत्येक की प्रधानता)
5.     यथाशक्ति शक्तिम् अनतिक्रम्य — (सीमा की प्रधानता)
6.     सचक्रम् चक्रेण सहितम् — (सहित की प्रधानता)

2. तत्पुरुष ‘प्रायेण उत्तरपदप्रधानः तत्पुरुषःइस समास में प्रायः उत्तरपद की प्रधानता होती है और पूर्व पद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। समस्तपद में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है।
यथाराजपुरुषः अर्थात् राजा का पुरुष। यहाँ  राजा की प्रधानता न होकर पुरुष की प्रधानता है, और राजा शब्द पुरुष के विशेषण का कार्य करता है।
1.     ग्रामगतः ग्रामं गतः।
2.     शरणागतः शरणम् आगतः।
3.     देशभक्तः देशस्य भक्तः।
4.     हभीतः सिंहात् भीतः।
5.     भयापन्नः भयम् आपन्नः।
6.     हरित्रातः हरिणा त्रातः।
तत्पुरुष समास के दो भेद हैंकर्मधारय और द्विगु।
1.     कर्मधारय इस समास में एक पद विशेष्य तथा दूसरा पद पहले पद का विशेषण होता है। यथा
पीताम्बरम् पीतं च तत् अम्बरम्।
महापुरुषः महान् च असौ पुरुषः।
कज्जलमलिनम् कज्जलम् इव मलिनम्।
नीलकमलम् नीलं च तत् कमलम्।
मीननयनम् मीन इव नयनम्।
मुखकमलम् कमलम् इव मुखम्।
2.     द्विगु ‘संख्यापूर्वो द्विगुःइस समास में पहला पद संख्यावाची होता है और समाहार (अर्थात् एकत्रीकरण या समूह) अर्थ की प्रधानता होती है।
यथात्रिभुजम् त्रयाणां भुजानां समाहारः।
इसमें पूर्वपद ‘त्रिसंख्यावाची है।
पंचपात्रम् पंचानां पात्राणां समाहारः।
पंचवटी पंचानां वटानां समाहारः।
सप्तर्षिः सप्तानां ऋषीणां समाहारः।
चतुर्युगम् चतुर्णां युगानां समाहारः।
3. बहुब्रीहि ‘अन्यपदप्रधानः बहुब्रीहिः इस समास में पूर्व तथा उत्तर पदों की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है। यथा
पीताम्बरः पीतम् अम्बरम् यस्य सः (विष्णुः)। यहाँ न तो पीतम् शब्द की प्रधानता है और न अम्बरम् शब्द की अपितु पीताम्बरधारी किसी अन्य व्यक्ति (विष्णु) की प्रधानता है।
नीलकण्ठः नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः)।
दशाननः दश आननानि यस्य सः (रावणः)।
अनेककोटिसारः अनेककोटिः सारः (धनम्) यस्य सः।
विगलितसमृद्धिम् विगलिता समृद्धिः यस्य तम्।
प्रक्षालितपादम् प्रक्षालितौ पादौ यस्य तम्।
4. द्वन्द्व ‘उभयपदप्रधानः द्वन्द्वःइस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोंनों की समान रूप से प्रधानता होती है। पदों के बीच? में ‘चका प्रयोग विग्रह में होता है। यथा
रामलक्ष्मणौ रामश्च लक्ष्मणश्च।
पतरौ माता च पिता च।
धर्मार्थकाममोक्षाः धर्मश्च, अर्थश्च, कामश्च, मोक्षश्च।
वसन्तग्रीष्मशिशिराः वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।
कविपरिचय प्रो. हरिदत्त शर्मा सम्प्रति इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविघालय में संस्कृत के आचार्य हैं। इनके कई संस्कृत काव्य प्रकाशित हो चुके हैं। जैसेगीतकंदलिका, त्रिपथगा, उत्कलिका, बालगीताली, आक्रन्दनम्, लसल्लतिका इत्यादि। इनकी रचनाओं में समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश तथा स्वस्थ वातावरण के प्रति दिशानिर्देश के भाव प्राप्त होते हैं।
भावविस्तारः
पृथिवी, जलं, तेजो वायुराकाशश्चेति पञ्चमहाभूतानि प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि। एतैः तत्त्वैरेव पर्यावरणस्य रचना भवति। आव्रियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम्। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सर्वविधजीवनसुखं ददाति। अस्माभिः सदैव तथा प्रयतितव्यं यथा जलं स्थलं गगनञ्च निर्मलं स्यात्। पर्यावरणसम्बद्धाः केचन श्लोकाः अधोलिखिताः सन्ति-
यथा
पृथिवीं परितो व्याप्य तामाच्छाघ स्थितं च यत्
जगदाधाररूपेण, पर्यावरणमुच्यते।।
प्रदूषणविषये
सृष्टौ स्थितौ विनाशे च नृविज्ञैर्बहुनाशकम्।
पञ्चतत्त्वविरुद्धं यत्साधितं तत्प्रदूषणम्।।
वायुप्रदूषणविषये
प्रक्षिप्तो वाहनैर्धूमः कृष्णे बह्वपकारकः।
दुष्टैर्रसायनैर्युक्तो घातकः श्वासरुग्वहः।।
जलप्रदूषणविषये
यन्त्रशाला परित्यक्तैर्नगरेदूषितद्रवैः।
नदीनदौ समुद्राश्च प्रक्षिप्तैर्दूषणं गताः।।
प्रदूषण निवारणाय संरक्षणाय च
शोधनं रोपणं रक्षावर्धनं वायुवारिणः।
वनानां वन्यवस्तूनां भूमेः संरक्षणं वरम्।।
एते श्लोकाः पर्यावरणकाव्यात् संकलिताः सन्ति।



तत्समतद्भवशब्दानामध्ययनम्-
अधोलिखितानां तत्समशब्दानां तदुद्भूतानां च तद्भवशब्दानां परिचयः करणीयः
तत्सम  - तद्भव
प्रस्तर पत्थर
वाष्प भाप
दुर्वह दूभर
वक्र बाँका
कज्जल काजल
चाकचिक्य चकाचक, चकाचौंध
धूमः धुआँ
शतम् सौ (100)
बहिः बाहर
छन्दः परिचयः
अस्मिन् गीते शुचि पर्यावरणम् इति ध्रुवकं (स्थायी) वर्तते। तदतिरिक्तं सर्वत्र प्रतिपङ्क्ति 26 मात्राः सन्ति। इदं गीतिकाच्छन्दसः रूपमस्ति।

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