पुस्तकों का महत्त्व Pustakon ka mahattv Importance Of Book Nad Reading By Avinash Ranjan Gupta


पुस्तकों का महत्त्व
     किसी भी चीज़ का महत्त्व उस समय ही होता है जब उसे महत्त्व देने वाले लोग हों। ईश्वर का महत्त्व है क्योंकि भक्तगण उनकी आराधना करते हैं। आजकल इंटरनेट का बड़ा महत्त्व है क्योंकि आज लगभग सभी इसके लाभ-हानि से परिचित हैं। वैसे ही पुस्तकों का महत्त्व तब ही बढ़ता है जब पाठकों का पुस्तकों के प्रति रुझान हों।
     पुस्तकें किसी भी पाठक को सम्पूर्ण रूप से धनी बनाती हैं, जैसे- पैसों से, प्रेम से, प्रसन्नता से, स्वास्थ्य से, उत्साह से, परमात्मा के साथ अपने संबंध से क्योंकि इस पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान तो पुस्तकों में ही समाहित है।
     पुस्तकों की महिमा की अगर बात करें तो इस महिमा का अंत अनंतकाल तक चलता ही रहेगा फिर भी मैं इसे लघु रूप देते हुए कुछ मुख्य बिन्दुओं को आपके सामने प्रस्तुत करूँगा। पुस्तकों ने असंख्य लोगों की ज़िंदगी में आमूल-चूल परिवर्तन लाया है। अब्राहम लिंकन ने कहा था कि ये पुस्तकें ही थी जिनकी वजह से मैं अमेरिका का 16वाँ राष्ट्रपति बन पाया। कालिदास ने अपनी कालजयी रचनाओं की रचना करके अपना नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णांकित कर लिया। इतना ही नहीं पुस्तकें समाज को नई दिशा और अन्याय के खिलाफ प्रयोग में लाए जाने वाले अस्त्र की तरह भी काम करता है तभी तो मुंशी प्रेमचंद की पुस्तक सोहजे वतन को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया गया क्योंकि इस पुस्तक की वजह से ही लोगों में देशभक्ति और आत्मसम्मान के आदर्शों का बीजवपन होना शुरू हो गया था। माखनलाल चतुर्वेदी की कविता फूल की चाह ने पराधीन भारतीय मानसिकता में स्वाधीनता की अग्नशिखा को हवा देने का काम किया। इतना ही नहीं डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव रामजी आंबेडकर की पुस्तक अछूत कौन?’ ने तो लोगों को जाति-व्यवस्था और वर्ण-व्यवस्था से ऊपर उठकर सोचने पर मज़बूर कर दिया। समाज सुधारक राजा राम मोहन राय के विचारों को जब पुस्तक का रूप मिला तो उनके विचारों को लोगों ने अपने में ऐसे समाहित कर लिया जैसे रेत अपने में पानी को समाहित कर लेती है।
     पुस्तकों में देश को ही नहीं वरन दुनिया को बदलने की ताकत होती है तो इसी दुनिया को तबाह करने वाली विनाशक शक्ति भी। वसुधैव कुटुंबकम्, सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे भवन्तु निरामय: जैसी सूक्तियाँ पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोती हैं तो दूसरी तरफ अपने कारावास काल में एडोल्फ हीटलर की लिखी पुस्तक मीन कांफ में जिसमें उन्होंने यह लिख दिया कि दूसरों से नफ़रत करके अपनी भलाई की जा सकती है और इसका परिणाम हुआ द्वितीय विश्वयुद्ध में 5.5 करोड़ लोगों की मौत।
     हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठतम विभूति, मरणजयी गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी अमरकीर्ति रामचरितमानस से प्रसिद्धि पाई। शिवाजी अपने पराक्रम और शौर्य के कारण प्रसिद्ध हुए परंतु उनके पराक्रम और शौर्य की गाथा पुस्तकों में ही वर्णित है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती आ रही है। भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर अपने गाने के फन से मशहूर हुईं पर उनके बारे में भी पुस्तकों से ही ज्ञात होता है इस तरह पुस्तकें विरासत का काम भी करती हैं।
     पुस्तकें हममें सृजनात्मकता का अद्भुत विकास करती है क्योंकि जब भी हम कुछ पढ़ते हैं तो हमारे मस्तिष्क में बिम्ब, प्रतीक, भाव दृश्य अनायास ही आने लगते हैं और ये सभी तत्त्व सृजनात्मकता के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। इतना ही नहीं इससे हमारे अंदर भी कुछ नया सृष्टि करने की ललक पैदा होती है। इस तरह पुस्तकें हमारे आंतरिक सौन्दर्य में भी  चार चाँद लगा देती है।
     पुस्तके टाइम मशीन की तरह भी काम करती है क्योंकि ये पुस्तकें हमें उस काल या समय में ले जाती हैं जिनसे हमारा कोई सरोकार नहीं होता है। पुस्तकें हमें उस युग समय या काल के बारे में बताती हैं जिस समय में हमारे पूर्वज रहा करते होंगे। ये हमें उस अलभ्य दृश्य की कल्पना करने का अवसर प्रदान करती है जो किसी भी कीमत पर संभव नहीं। इतना ही नहीं पुस्तकें हमें स्वर्गीय लेखकों, कवियों और कहानीकारों से बात करने का सौभाग्य भी प्रदान करती है।     
     पुस्तकों का महत्त्व इतना बढ़ता जा रहा है कि तकनीक ने भी इसे नए रूप प्रदान की मुहूम छेड़ रखी है जिसमें Kindle और ई-बुक सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम के रूप में सामने आ रहे हैं।   
     आजतक इस पृथ्वी पृष्ठ पर जितने भी महापुरुषों ने जन्म ग्रहण किया है उनका संबंध किसी न किसी रूप से पुस्तकों से बना ही है और आज के युग में भी जितने भी शिक्षित वर्ग समाज मे हैं उनके शिक्षित होने में भी पुस्तकों का हाथ है। पुस्तकें सचमुच महत्त्व्पूर्ण हैं। मैंने भी अपने इस लेख की तैयारी करने के लिए अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया तत्पश्चात् आपके समक्ष अपने विचार प्रस्तुत कर पा रहा हूँ। मेरा आज से यही मानना है-
मेरे दिल ने दी दस्तक
तो खोली मैंने पुस्तक
ज्ञान से भरा मेरा मस्तक
तो बात आई मेरे लब तक
कि जब तक हूँ दुनिया में
पढ़ता रहूँगा
पुस्तक; पुस्तक; पुस्तक।
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