कर्त्तव्य और इंसानियत Karttvya Aur Insaniyat By Avinash Ranjan Gupta


कर्त्तव्य और इंसानियत
बहुत दिन पहले मुझे किसी व्यक्ति से बिन माँगे मदद मिली थी। उसकी मदद से मेरी बहुत बड़ी समस्या हल हो गई थी। वो व्यक्ति मेरे ऑफिस का ही एक कर्मचारी था। चार सालों के बाद कुछ ऐसा हुआ कि मैं उस व्यक्ति से ओहदे में आगे निकल गया और एक दिन उनकी किसी गलत एंट्री की वजह से कंपनी को घाटा हुआ उनके इस लापरवाही भरे काम के लिए कमेटी की तरफ़ से मुझे उन्हें एक मेमो देना पड़ा। 
इसके बाद उनकी नज़रों में मैं गिर गया। अब वे मुझसे सही से बात भी नहीं करते हैं। पर मैं उन्हें यह भी नहीं बता सकता कि मैंने ही कमेटी वालों को उनके पिछले अच्छे कार्यों का हवाला देकर उनका ट्रांसफर रुकवाया था, उसके नाम पर जो मेमो जारी हुआ था उसे उनके पर्सनल फ़ाइल में लगने नहीं दिया था। इतना ही नहीं उनके द्वारा किए गए काम को मैं अपना समय समय देकर फिर से जाँच कर लेता हूँ और कुछ गलतियों को सुधार देता हूँ। कुछ दिनों पहले ही उनका नाम एम्प्लोयी ऑफ द मंथ में शुमार हुआ। उनकी नज़रें और एट्टीट्यूड यही कह रही थीं कि मुझे मेमो देकर तुमने गलती कर दी।
उन्होंने मेरे लिए जो किया वह इंसानियत थी, मुझे उन्हें मेमो देना पड़ा यह मेरा कर्त्तव्य था और मैंने उनकी जो मदद की वह इंसानियत थी। सब अपनी-अपनी जगह ठीक हैं। पर आज भी वो मुझसे नाराज़ हैं।


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