Mujhase Jirah N Karo By Avinash Ranjan Gupta


मुझसे जिरह न करो  
मुझसे जिरह न करो,
मैं जवाब दे देता हूँ,
जो मुझसे चाँद माँगते हैं,
मैं उन्हें आफ़ताब दे देता हूँ।    
नमाज़ अदा कर आए शख़्स को भी,
मैं शराब दे देता हूँ,
और शराब से मन भर जाए तो,
मैं उसे एक गुलाब दे देता हूँ।
मुझसे जिरह न करो,
मैं जवाब दे देता हूँ।  
गमज़दा लोगों को सुनता हूँ मैं,
फिर उन्हें एक हसीं ख्वाब दे देता हूँ,
जिसमें हया लिपटती है,
उन्हें वो हिजाब दे देता हूँ।
मुझसे जिरह न करो,
मैं जवाब दे देता हूँ।  
जिन्हें कुछ लोग काफ़िर कहते हैं,
मैं उन्हें भी आदाब  दे देता हूँ,
धीरे से सही मगर उनके ख्यालों में,
ख़ुदा का शबाब  दे देता हूँ।
मुझसे जिरह न करो,
मैं जवाब दे देता हूँ।
लोग पूछते हैं मुझसे, हे नवाब,
क्या राज़ है तेरे अश्कों के पीछे,
मैं उन जनाबों को भी,
अपने अश्कों का हिसाब दे देता हूँ।
मुझसे जिरह न करो,
मैं जवाब दे देता हूँ।
                                                        अविनाश रंजन गुप्ता

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