GAJANAN MADHAV MUKTIBODH – SAHARSH SWEEKARA HAI गजानन माधव मुक्तिबोध सहर्ष स्वीकारा है Extra Qquestions Answers


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3 Marks Questions
1.    भीतर की सरिता - ‘सहर्ष स्वीकारा हैकविता के आधार पर टिप्पणी कीजिए।
2.    कवि अपने जीवन में क्या चाहता है तथा उसकी आत्मा कैसी हो गई है?
3.    कवि ने अपनी प्रिया के चेहरे की तुलना किससे की है और क्यों?
4.    कवि के जीवन में ऐसा क्या-क्या है जिसे उसने सहर्ष स्वीकारा है?
5.    निम्नलिखित पंक्तियों का भाव तथा अलंकार-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है?
6.    कवि चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों करता है?   
7.    काव्य-सौंदर्य  स्पष्ट  कीजिए।
इसलिए  कि  जो  कुछ  भी  मेरा  है
या  मेरा  जो  होता-सा  लगता  है,  होता-सा  संभव  है
सभी  वह  तुम्हारे  ही  कारण  का  घेरा  है,  कार्यों  का  वैभव  है।
8.    ममता के बादल की मँडराती कोमलतासे कवि का क्या आशय है?     
9.    निम्नलिखित  काव्यांश  का  काव्य-सौंदर्य  स्पष्ट  कीजिए।
सचमुच  मुझे  दंड  दो  कि  हो  जाऊँ
पाताली  अँधेरे  की  गुहाओं  में  विवरों  में
धुएँ  के  बादलों  में
बिलकुल  मैं  लापता
लापता  कि  वहाँ  भी  तो  तुम्हारा  ही  सहारा  है!!
10.                       बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकार हैमें आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? बताइए।




3 Marks Answers
1.    भीतर की सरिता – भीतर की सरिता से अभिप्राय है अंत:करण में बहने वाली भावनाएँ। यहाँ कवि ने हृदय में नदी का अभेद आरोपण किया है। जिस प्रकार नदी पवित्र होती है, उसका पानी, उसकी धाराएँ उसके किनारे पवित्र होते हैं। उसी प्रकार हृदय भी पवित्र और उसमें उदित सभी भाव भी पवित्र हैं। जैसे सरिता के साथ मिलकर सब कुछ पवित्र बन जाता है, उसी प्रकार कवि के भाव भी हृदय में आकर तथा उसमें प्रवाहित होकर पवित्र बन जाते हैं।
2.    कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वह प्रिया को भूलना चाहता है तथा उसके विस्मरण को शरीर, मुख और हृदय में बसाकर उसमें डूब जाना चाहता  है। कवि की आत्मा अत्यंत कमज़ोर हो गई है क्योंकि प्रिया के अत्यधिक स्नेह के कारण वह पराश्रित हो गया है। यह स्नेह उसके मन को अंदर-हीअंदर पीड़ित कर रहा है।
3.    कवि ने अपनी प्रिया के चेहरे की तुलना आकाश में मुसकुराते चंद्रमा से की है क्योंकि जिस प्रकार मुस्कराता चंद्रमा सारी रात अपनी शीतल चाँदनी धरा पर बिखेरता रहता है, उसी प्रकार विशिष्ट प्रिया का चेहरा कवि के प्रति खिलता रहता है।
4.    कवि ने जीवन के सुख-दुख की अनुभूतियों को सहर्ष स्वीकारा है। उसके पास गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, विचारों का वैभवभावनाओं की बहती सरिता है, व्यक्तित्व की दृढ़ता है तथा प्रिय का प्रेम है। ये सब उसकी प्रिया को पसंद है, इसलिए उसे ये सब सहर्ष  स्वीकार हैं।
5.    भाव- सौंदर्य:
इन  पंक्तियों  द्वारा  कवि  के  प्रेमी  रूप  का  पता  चलता  है।  वह  अपने  हृदय  को
मीठे  जल  के  स्त्रोत  के  समान  मानता  है,  जिसमें  प्रेम  रुपी  जल  कभी  समाप्त  नहीं  होता  है।  वह  अपनी  प्रिया  से  असीम  प्रेम  करता  है।  वह  जितना  प्रेम  व्यक्त  करता  है,  उतना  ही  वह  बढ़ता  जाता  है।
अलंकार-सौंदर्य:
  जाने  क्या  रिश्ता  है,  जाने  क्या  नाता  है  में  प्रश्न  अलंकार  है।
  जितना  भी  उँड़ेलता  हूँ,  भर-भर  फिर  आता  है  में  विरोधाभास  अलंकार     है।
  भर-भर  में  पुनरुक्ति  प्रकाश  अलंकार  है।
6.    कवि चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात इसलिए करता है क्योंकि उस सत्ता द्वारा ढका और घिरा हुआ उसका रमणीय प्रकाश अब उससे सहन नहीं होता। कवि के भीतर ममता के बादल की मँडराती हुई कोमलता उसे पीड़ा पहुँचाती है। उसकी आत्मा कमज़ोर और शक्तिहीन हो गई है। वह प्रिया के प्रकाश से  निकलना चाहता है। वह यथार्थ में रहना चाहता है।
7.    काव्य-  सौंदर्य:
                प्रस्तुत  काव्यांश  आरोह  भाग-2’  में  संकलित  कवि  गजानन  माधव 
                मुक्तिबोध  द्वारा  रचित  सहर्ष  स्वीकारा  है  कविता  से  अवतरित  है।
                इस  काव्यांश  में  कवि  ने  जीवन  में  अपना  सब  कुछ  असीम  सत्ता  को
                  समर्पित  किया  है।
                  खड़ी  बोली  का  प्रयोग  है।
                  मुक्तक  छंद  है  तथा  प्रसाद  गुण  है।
                  रहस्यात्मक  भावना  दृष्टिगोचर  होती  है।
                अनुप्रास,  उपमा,  संदेह  आदि  अलंकारों  की  छटा  दर्शनीय  है।
                बिंब-योजना  अत्यंत  सार्थक  एवं  सटीक  है।
                भावपूर्ण  शैली  का  प्रयोग  है।
8.    कवि ने ममता पर बादलों का अभेद आरोप किया है। जिस प्रकार बादल अपनी वर्षा से पृथ्वी को जलमग्न तथा हरा-भरा कर सबको सुख प्रदान करते हैं, उसी प्रकार प्रेम रूपी बादल अपने भावों से प्रेमीजन को आनंद प्रदान कर आनंदविभोर कर देते हैं। उनके जीवन में खुशियाँ भर देते हैं। लेकिन यहाँ कवि को प्रेम, खुशियाँ शायद अच्छी नहीं लगतीं इसलिए उन्हें ये ममता के बादलों की कोमलता भी पीड़ादायक प्रतीत होती है।   
9.    काव्य- सौंदर्य:
                प्रस्तुत  काव्यांश  आरोह  भाग-2’  में  संकलित  कवि  गजानन  माधव 
                मुक्तिबोध  द्वारा  रचित  सहर्ष  स्वीकारा  है  कविता  से  अवतरित  है।
                कवि  ने  जीवन  में  सुख-दुख,  राग-विराग,  आशा-निराशा  आदि  भावों  को  सहर्ष  स्वीकार  किया  है।
              काव्यांश  में  खड़ी  बोली  का  प्रयोग  है।
              दंड  दो  में  अनुप्रास  अलंकार  है।
              लापता  कि  वहाँ  भी  तो  तुम्हारा  ही  सहारा  है  में  विरोधाभास      अलंकार  है।
              तत्सम  शब्दावली  का  प्रयोग  है।
              व्यंजना  शब्द-शक्ति  है।
10.                        प्रस्तुत कविता में कवि एक ओर तो जीवन के हर सुख-दुःख को सहर्ष स्वीकार करता है लेकिन दूसरी ओर उसे आत्मीय जन की बहलाती सहलाती आत्मीयता भी अच्छी नहीं लगती। एक की स्वीकृति तथा दूसरे की अस्वीकृति दोनों में अंतर्विरोध है। कवि का आशय यह है कि अभी तक उसने सब कुछ सहर्ष स्वीकार कर लिया है, परंतु अब उसकी सहन-शक्ति समाप्त हो रही है। शायद आत्मिक शक्ति न होने के कारण उनके जीवन पर ऐसी परिस्थितियाँ आईं कि जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल प्रत्येक भाव को सहर्ष स्वीकार करने वाला व्यक्ति आत्मीय जन की सहानुभूति भी सहन नहीं कर सका।


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