Plastik Ki Samsya Par Aalekh

प्लास्टिक की समस्या
          सुविधा हमारे लिए दुविधा का रूप भी ले सकती है अगर हमने समय रहते सुविधा के साधनों से होने वाले समस्याओं का संधान कर समाधान न किया तो। आज प्लास्टिक हमारी प्रतिदिन की आवश्यकता की वस्तु है। चॉकलेट का रेपर हो या फिर डायनिंग टेबल प्लास्टिक हर रूप में हमारे घर में पैर तोड़कर बैठ चुका है। दूसरी तरफ इसकी कम कीमत, मज़बूती और टिकाऊपन के कारण हम भी इसके कायल होते जा रहे हैं। प्लास्टिक का प्रयोग लगभग हर चीज़ों में होना पर्यावरण के लिए बहुत बड़े खतरे की निशानी है। प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल न होने की वजह से इसके अणु मृदा की उर्वरक क्षमता को नष्ट कर देते हैं। प्लास्टिक जलीय और थलीय जीवों के लिए भी बहुत खतरनाक है क्योंकि कचरा निष्कासन पद्धति में कचरे को या तो शहर से दूर किसी निर्जन जगह पर फेंक दिया जाता है या फिर समुद्र में। कहीं-कहीं तो शहरों के गली-कूचों में ही कचरे का ढेर लगा रहता है, जहाँ चौपाए जानवर फेंकी हुई खाद्य सामाग्री के साथ प्लास्टिक भी खा जाते हैं जिस वजह से उनकी मौत समय से पहले हो जाती  हैं। एक प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संस्था ने रिपोर्ट जारी की है कि भारत में सालाना लगभग 120000 जानवरों की मौत प्लास्टिक खाने की वजह से होती है। समुद्र में प्लास्टिक के होने से जलीय जीवों को श्वसन क्रिया में समस्या होती है और इस प्रकार पारिस्थितिकी में असंतुलन आता है।    
          प्लास्टिक का रौद्र रूप अब केवल जानवरों तक ही सीमित नहीं बल्कि हमारे खाने में भी अंडे, चावल, सेब आदि के रूप में आने लगा है। कुछ खोजपरक पत्रकारिता ने ऐसे कई मामलों का खुलासा किया है जिसमें खाद्य सामग्री में प्लास्टिक के अंश पाए गए हैं। विज्ञान ने तो यह भी प्रमाणित कर दिया है कि अगर प्लास्टिक उत्तम कोटि का न हो तो उसमें रखी हुई चीज़ें एक निश्चित समय के बाद अपनी पौष्टिकता खो देती हैं।
          इस समस्या से निजात पाने के लिए हमें सरकार पर ही निर्भर न रहकर अपनी ओर से भी कदम बढ़ाना होगा और यथासंभव प्लास्टिक के प्रयोग को कम करना होगा। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने संकर पद्धति की सहायता से ऐसे कीड़े की खोज कर ली है जो भोजन के रूप में प्लास्टिक खाते हैं। हालाँकि, यह केवल अभी शुरुआत है अगर इस खोज में सचमुच विकास हुआ तो प्लास्टिक की समस्या काफी हद तक सुलझ सकती है।  

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