DAYARI KA EK PANNA डायरी का एक पन्ना 5 MARKS QUESTIONS ANSWERS


5 Marks Questions

1.   जबसे  क़ानून  भंग  का  काम  शुरू  हुआ  है  तब  से  आज  तक  इतनी  बड़ी  सभा  ऐसे  मैदान  में  नहीं  की  गई  थी  और  यह  सभा  भी  कहना  चाहिए  कि  ओपन  लड़ाई  थी  यहाँ  पर  कौन-से  और  किसके  द्वारा  लागू  किए  गए  क़ानून  को  भंग  करने  की  बात  कही  गई  है?  क्या  क़ानून  भंग  करना  उचित  था?  पाठ  के  आधार  पर  अपने  विचार  प्रकट  कीजिए 
2.   डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फोटो भी उतरवा रहे थे? उन लोगों के फोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थीं? स्पष्ट कीजिए
3.   बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत सी स्त्रियाँ जेल गईं फिर भी इस दिन को अपूर्व कहा गया है   आपके विचार से यह सब अपूर्व क्यों था ?
5 Marks Answers
1.   जब  से  क़ानून  भंग  का  काम  शुरू  हुआ  है  तब  से  आज  तक  इतनी  बड़ी  सभा  ऐसे  मैदान  में  नहीं  की  गई  थी  और  यह  सभा  भी  कहना  चाहिए  कि  ओपन  लड़ाई  थी    यहाँ  पर  ब्रिटिश  सरकार  द्वारा  लागू  किए  गए  क़ानून  को  भंग  करने  की  बात  कही  गई  है  क्योंकि  पुलिस  कमिश्नर  ने  नोटिस  निकाला  था  कि  कानून  की  अमुक-अमुक  धारा  के  अनुसार  कोई  सभा  में  हिस्सा  लेगा  वह  दोषी  समझा  जाएगा    हमारे  विचार  से  क़ानून  तोड़ा  जाना  पूर्णतः  सही  था  क्योंकि  भारतीयों  को  स्वतंत्र  होने  का  अधिकार  था  और  अपनी  प्रसन्नता  को  दिखाने  का  भी    साथ  ही  यह  क़ानून  दमनकारी  था    अतः  इसका  विरोध  करना  पूर्णतः  उचित  था 
2.   डॉ. दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फोटो भी उतरवा रहे थे।   उन लोगों की फोटो खींचने की निम्नलिखित वजहें हो सकती थीं-
  • वह फोटो इसलिए उतरवा रहे थे ताकि अंग्रेज सरकार के जुल्म की कहानी समाचार पत्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाई जाए। 
  • उनके पास प्रमाण रहे कि किस-किस घायल की चिकित्सा उन्होंने की। 
3.   हमारे विचार से यह सब अपूर्व इसलिए था क्योंकि इस दिन बहुत अधिक लोगों ने स्वतंत्रता दिवस मनाया था   लोगों ने अपने-अपने नेताओं के संरक्षण में झंडारोहण करके विशाल सभाएँ की और जुलूस निकाले थे   ब्रिटिश सरकार के बनाए क़ानून को तोड़ने के अपराध में युवाओं, पुरुषों और स्त्रियों को पुलिस का कोपभाजन बनना पडा था   महिलाओं को जेल भी जाना पडा था   इसलिए यह दिन अपूर्व था   इस दिन बहुत अधिक लोग ,लगभग २०० कार्यकर्ता, घायल हुए थे और बंदी बनाए गए थे और कलकत्ता के नाम पर जो कलंक था कि यहाँ स्वतंत्रता के लिए कोइ काम नहीं हो रहा, वह भी धुल गया था

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