Prashn 4

लिखित
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 - - - - वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि थाजिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
2 - उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।
3 - व्यथा आदमी को पराजित नहीं करतीउसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
4 - दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
5 - उनके गीत भावप्रवण थे - दुरूह नहीं।



1.    इस कथन का आशय यह है कि राजकपूर ने शैलेंद्र को पहले ही फ़िल्म की असफलता से होने वाले खतरों के बारे में आगाह किया था फिर भी शैलेंद्र फ़िल्म बनाने के अपने फैसले पर कायम रहे। शैलेंद्र तो एक महान रचना का निर्माण कर आत्मसंतुष्टि चाहते थे। धन की लालशा तो उन्हें रत्ती भर भी नहीं थी।
2.    शैलेंद्र का मानना था कि लेखक का कर्तव्य होता है कि वह सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए समाजोपयोगी रचना करें। दर्शकों की रुचि की आड़ लेकर सस्ती और अल्पायु लोकप्रियता तथा धन अर्जित न करें। ऐसा होने पर समाज की अस्मिता और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन होता है।         
3.    इस विचार का आशय यह है कि किसी भी प्रकार की व्यथा मनुष्य को आगे बढ़ने और अनुभव ज्ञान में मदद करती है। शैलेन्द्र स्वयं गीतकार थे। फ़िल्मी जगत से उनका अटूट नाता था। बावजूद इसके वे इस दुनिया के चकाचौंध में बिलकुल अंधे नहीं हुए। फ़िल्म निर्माण के खतरों को जानने के बाद भी वे अपने फैसले पर अटल रहे।
4.    इस कथन का आशय यह है कि इस फ़िल्म के खरीददार नहीं मिल रहे थे क्योंकि सभी खरीददार अपने लाभ का अनुमान लगाकर ही फ़िल्म खरीदते थे। व्यावसायिक प्रवृत्ति वाले खरीददार भावनाओं को नहीं समझ सकते। इस फ़िल्म की करुणा को समझने के लिए व्यवसायी हृदय नहीं एक संवेदनशील हृदय की आवश्यकता पड़ती थी।
5.    शैलेंद्र के गीत सरल और भावमय थे। ये गीत कठिन नहीं बल्कि इनमें भावों और विचारों की गहराई समाई हुई थी।

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