Prashn 3

लिखित
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 - सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?
2 - जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई?
3 – ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई हैक्या कानून भंग करना उचित थापाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
4 - बहुत से लोग घायल हुएबहुतों को लॉकअप में रखा गयाबहुतसी स्त्रियाँ जेल गईंफिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों हैअपने शब्दों में लिखिए।

1.    सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की विशेष भूमिका थी। कलकत्ता शहर की अनेक महिला समितियों ने इस स्वतंत्रता समारोह में भाग लिया। भारी पुलिस व्यवस्था की परवाह किए बिना शहर के अलग-अलग भागों से स्त्री दलों ने जुलूस में भाग लिया। मोनुमेंट पर स्त्रियों ने निडर होकर झंडा फहराया। स्त्रियों को भी कई स्थानों पर भारी मात्रा में गिरफ़्तार किया गयाउनपर लठियाँ चलाई गईं । यहाँ तक कि सुभाष बाबू के गिरफ़्तारी के बाद भी स्त्रियाँ लालबाज़ार तक आगे बढ़ती रही।
2.    जुलूस के लालबाज़ार आने पर भीड़ बेकाबू हो गई थी तथा पुलिस लोगों पर डंडे बरसा रही थी। लोगों को पकड़-पकड़ कर लॉकअप में भेजा जा रहा था। इतनी बड़ी संख्या में कभी भी स्त्रियों की गिरफ़्तारी नहीं हुई थी। लोगों का जोश थमने का नाम नहीं ले रहा था। इधर पुलिस गिरफ़्तार करती थी तो उधर से नया दल नारे लगाता हुआ बढ़ा आता था। लोग घायल हो गए थेकितनों के खून बह रहे थे परंतु जोश-उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही थी।    
3.    यह देश की स्वतंत्रता संग्राम की गाथा का वह भाग है जहाँ हर व्यक्ति आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर था। अंग्रेज़ों ने अपना कानून बनाकर आंदोलनजुलूस तथा सभाओं को गैर-कानूनी घोषित किया था किंतु अत्याचारी प्रशासन की इन घोषणाओं का जनमानस पर कोई असर नहीं हुआ। देशवासियों ने सत्ता की ज़बरदस्ती व कानून व्यवस्था को मनाने से इंकार कर दिया था।
4.    सुभाष बाबू के नेतृत्व में कलकत्तावासियों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने की ज़ोर-शोर से तैयारी की हुई थी। मोनुमेंट के पास झंडा फहराने और आज़ादी की शपथ लेने के लिए शहर के समस्त भागों से जुलूस निकल पड़े। असंख्य स्त्रियों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पुलिस लोगों की उमड़ती भीड़ को काबू नहीं कर पा रही थी। आंदोलनकारियों पर लठियाँ बरसाई गईं । लोगों ने अपना खून बहायागिरफ्तारियाँ दीं लेकिन उनके जोश में कमी नहीं आई। लोगों का जोश कलकत्ता के इतिहास में इतने प्रचंड रूप में पहले कभी नहीं देखा गया था।  

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