Prashn 2

2 -निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1. मनौ नीलमनिसैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघदाघ निदाघ।
3. जपमालाछापैंतिलक सरै न एकौ कामु।
    मनकाँचै नाचै बृथासाँचै राँचै रामु।।
1. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि श्रीकृष्ण ने पीले वस्त्र ओढ़ रखे हैं। उनके साँवले शरीर पर ये पीले वस्त्र बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो नीलमणि पर्वत पर प्रात:कालीन सूर्य की किरणें बिखर गईं हों। यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले शरीर की तुलना नीलमणि पर्वत से और पीले वस्त्र की तुलना सूर्य की किरणों से की गई है।
2. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी प्रचंड गर्मी के कारण पशुओं के व्यवहार में आए बदलाव के बारे में बतलाते हुए कह रहे हैं कि साँप और मोर तथा हिरण और बाघ एक दूसरे के परम शत्रु हैं पर प्रचंड गर्मी के कारण ये आपसी शत्रुता भूलकर एक ही स्थान पर बस गए हैं। ऐसे दृश्य को देखकर बिहारी जी को यह सम्पूर्ण जगत तपोवन की तरह प्रतीत हो रहा है जहाँ सब मिल-जुल कर रहते हैं। उनका मानना है कि सभी अवस्था के सकारात्मक पक्ष होते हैं। प्रचंड गर्मी के कारण वन में भाईचारे और मानवीय गुणों का संचार हो गया है।


3. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी भक्ति का सारमर्म प्रस्तुत करके आम जनता तक सच्ची बात पहुँचाना चाहते हैं। उनका मानना है कि भक्ति में भगवान अपने भक्तों की  सच्ची भावना देखते हैं। हाथ में माला धारण कर मंत्र जाप करना, राम नाम छपे वस्त्रों को धारण करना और माथे पर तिलक लगाकर घूमने से राम नहीं मिलते । यदि मन में सच्ची भक्ति नहीं है तो नाच-गाकर ईश्वर को नहीं रिझाया जा सकता। ईश्वर को प्राप्त करने का एकमात्र साधन है, मानव सेवा। “मानव सेवा सेवा ही माधव सेवा है।”

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